Hindi Essay, Moral Story “Jiski lathi, uski bhains” “जिसकी लाठी, उसकी भेंस” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
जिसकी लाठी, उसकी भेंस
Jiski lathi, uski bhains
नदी पार करते ही जंगल का रास्ता शुरू हो जाता था। आगे-आगे भैंस चली जा रही थी, पीछे-पीछे पंडित जी। चलते-चलते पंडित सोचता भी जा रहा था कि जमींदार के यहां पहली संतान हुई थी, वह भी लड़का। बड़ी धूम-धाम से मनाया था लड़के का जन्मदिन। जमींदार के वंश की आगे की परंपरा खुल गई थी। जमींदार के यहां पांच भैंस थीं। आज खुशी-खुशी से जमींदार ने मुझसे कहा था कि यजमानी में जिस भैंस को चाहो ले लो।
पंडित आज मन पसंद की भैंस यजमानी में पाकर बहुत प्रसन्न था। जिंदगी में पहली बार किसी ने यजमानी में इतनी बड़ी चीज दी थी। पंडितजी पहलवानी के शौकीन थे, इसलिए अब दूध की कमी नहीं रहा करेगी।
राह में यही सब सोचता पंडित चला जा रहा था। जंगल की पगडंडी से होता हुआ एक अहीर चला आ रहा था। उसके हाथ में लाठी थी। पगडंडी से आता हुआ वह पंडित के पास से ही निकला। अहीर पंडित से बात करते हुए साथ-साथ चलने लगा। भैंस को देखकर अहीर की नीयत खराब हो गई। वह पंडित से बोला, “पंडितजी! आप पूजा-पाठ करने वाले आदमी, भला आप कहां भैंस की देखभाल कर पाएंगे। जंगलों में चराना और तालाब में स्नान कराना, यह सब आपके बस की बात नहीं है। आप यजमानी करेंगे या भैंस की देखभाल करेंगे।”
पंडित उसकी बात सुनता जा रहा था, और भैंस को हांकता जा रहा था। पंडित उसकी बात सुनने के बाद बोला-
“अहीर देवता, तुम कहना क्या चाहते हो?” अहीर बोला, “भाई, यही कि भैंस मुझे दे दो। आप देखभाल नहीं कर पाओगे।”
पंडित बोला, “अपने लिए लाया हूं, तुझे क्यों दे दूं?”
अहीर बोला, “यह लाठी देखी है, एक सिर पर पड़ी, तो खोपड़ी फूट (खरबूजे की एक अन्य प्रजाति) की तरह खिल जाएगी। तू भी यजमानी में से मुफ्त में लेकर आया है।”
अहीर का शरीर अच्छा गठा हुआ था। वैसे तो पंडित भी कम नहीं था, लेकिन पंडित लड़ने वाला आदमी नहीं था। पंडित के दिमाग में एक बात घर कर गई थी कि अहीर लाठी के बल पर उछल रहा था। पंडित लाठी के बारे में सोचता रहा। पंडित थोड़ा रुककर बोला, “अहीर देवता, यदि तुम ब्राह्मण की कोई वस्तु बिना कुछ दिए लोगे, तो घोर नरक में जाओगे। भैंस ले रहे हो, तो कुछ तो देना ही पड़ेगा।”
अहीर बोला, “पंडितजी, मेरे पास तो कुछ नहीं है। घर होता तो और बात थी।” उसने जेब में हाथ डाला, तो कुछ नहीं निकला। पंडित की नजर लाठी के ऊपर थी।
पंडित बोला, “कुछ नहीं, यह लाठी तो है। शकुन के तौर पर इसे दिया जा सकता है।” पंडित ने सामने देखा कि लगभग दो फलाँग पर गांव दीख रहा है। रास्ता भी बीच गांव से होकर जा रहा है।
अहीर ने तुरंत अपनी लाठी पंडित को दे दी। भैंस तो रास्ते पर चल ही रही थी। पीछे-पीछे ये दोनों बातें करते हुए चले जा रहे थे। अहीर खुश था कि भैंस मेरी हो गई। अहीर कभी-कभी हांक लगाते हुए हाथ लगा देता था भैंस के। गांव में थोड़ी दूर पहुंचते ही एक मिठाई की दुकान मिली। वहां कुछ लोग बैठे हुए थे। पंडित ने अहीर से कहा, “अहीर देवता, मैं यहां रुककर पानी पिऊंगा। तुम जहां जा रहे हो, निकल जाओ।”
अहीर भैंस हांककर चलने लगा, तो पंडित ने कहा, “कहां ले जा रहे हो मेरी भैंस को।” अहीर बोला, “पंडित, भैंस मेरी है। क्यों रोकते हो?” पंडित बोला, “तेरी भैंस है? तू कहां से लाया?’
अहीर थोड़ा पंडित की ओर बढ़ा तो पंडित बोला, “दूर रहना, नहीं तो सिर के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा।” दोनों को झगड़ते देखकर वहां के लोगों ने बीच-बचाव किया। तू-तू, मैं-मैं की आवाज सुनकर तमाम लोग आ गए। मुखिया का घर सामने ही था। वे घर पर थे। झगड़ा देखकर वे भी आ गए। एक ने कहा, “थोड़ा रास्ता दो, मुखिया आ गए। अभी निपटारा होता है।”
एक ने बगल से चारपाई लाकर बिछा दी। मुखिया उस पर बैठ गए। मुखिया ने पूछा, “क्या बात है?” दुकान पर बैठे लोगों ने बताया कि दोनों बातें करते चले आ रहे थे। यहां आते ही, दोनों झगड़ने लगे। जो ये लाठी लिए हैं, इसने इससे कहा कि मैं थोड़ा रुकूँगा। तुम्हें जहां जाना हो जाओ। इतने पर खाली हाथ वाला बोला कि वह भैस मेरी है। दोनों झगड़ने लगे।
मुखिया ने दोनों की ओर देखा, फिर अहीर की तरफ देखते हुए कहा, भाई, लाठी इसके हाथ में है। भैंस को हांकता वह ला रहा है। तुम खाली हाथ आ रहे हो। फिर तुम्हारी भैंस कैसे हो गई?’
अहीर तुरंत बोला, “वह लाठी मेरी है।” इस बात पर मुखिया ने पूछा, “तेरी लाठी है, तो इसके हाथ में कैसे आ गई? झूठ बोलते हो।“
अहीर की यह बात सुनकर सदा लोग हंस पड़े। बात जो मजेदार थी। हर कोई जानना चाहता था कि यह मामला क्या है? मुखिया ने जब पांडित से पूछा तो उसने पूरी घटना सुना दी। सुनते ही अहीर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
मुखिया ने कहा, “अहीर तो मेरे गांव में भी हैं। पर ऐसा वाकिया तो पहली बार सुन्न रहा हूं। ब्राह्मण की यजमानी की चीज भी नहीं छोडी तूने।
इतना कहकर मुखिया ने सोचा, कि लाठी ब्राह्मणा देवता के पास ही रहने दो। अहीर को दिलवाने से पंडित निहत्था हो जाएगा और आगे रास्ते में फिर बदमाशी कर सकता है।
मुखिया ने अहीर से कहा, देख रहे हो। लाठी किसके हाथ में है?
जिसकी लाठी, उसकी भैंस‘।