Hindi Essay, Moral Story “Aab-Aab kar mar gaye, raha sirhane pani” “आब-आब कर मर गए, रहा सिरहाने पानी” Story on Hindi Kahavat for Students
आब-आब कर मर गए, रहा सिरहाने पानी
Aab-Aab kar mar gaye, raha sirhane pani
एक बनिया व्यापार करने काबुल गया। काबुल में फारसी बोली जाती थी और बनिया फारसी जानता नहीं था। इसलिए उसे लोगों को अपनी बात समझाने और दूसरों की बात समझने में बहुत दिक्कत होने लगी। बनिया पढ़ा तो था ही, उसने थोड़े ही दिनों में फारसी भाषा सीख ली। वहां वह फारसी भाषा में बातें करता और फारसी में ही व्यापार का हिसाब-किताब रखता।
जब वह वापस आया, तो उसने फारसी भाषा में बात करना छोड़ा नहीं। देशी-विदेशी व्यापारियों और राज्य के कर्मचारियों के बीच फारसी भाषा बोलकर उसने अपना रुतबा जमा लिया था। अपने घर तथा आस-पड़ोस में भी कभी-कभी थोड़ा-बहुत फारसी बोलता था। जबकि फारसी न तो घर के समझते थे और न पड़ोस के।
गर्मी के दिन थे। लू चल रही थी। इसी मौसम में बनिया बीमार पड़ गया। बाहर वाले कमरे में तख्त बिछा हुआ था। उसी पर उसका बिस्तर लगा दिया गया। सिर की ओर घड़े में पानी भरा रहता और फल भी रखे रहते।
तबीयत बिगड़ती चली गई। एक दिन तेज बुखार आया और बनिया बेहोश रहने लगा। बनिये को जोर की प्यास लगी, तो ‘आब-आब’ कहकर चिल्लाता रहा। वहां घर और पड़ोस के लोग इकठे थे। कोई भी नहीं जानता था कि आब को पानी कहते हैं। हालत बिगड़ती रही और वह आब-आब कहता रहा। अंततः उसके प्राण-पखेरू प्यासे ही उड़ गए।
बनिये के मरने की खबर सुनकर बिरादरी, पड़ोसी, व्यापारी आदि तमाम वर्ग के लोग इकट्ठे हुए। बनिये के बारे में तरह-तरह की बातें लोग कर रहे थे। एक ने कहा-“लाला काबिल आदमी थे, लेकिन दिखावे की जिंदगी जीने लगे थे। जब देखो तब फारसी बोलते रहते थे।”
दूसरे व्यक्ति ने कहा-“इसी दिखावे का ही खामियाजा भुगतना पड़ा लाला को, वरना पानी का घड़ा तो सिरहाने रखा हुआ था, लेकिन घर में कोई नहीं जानता था कि आब पानी को कहते हैं।” वहां आए तमाम लोगों में से ही किसी ने फकीराना अंदाज में कहा-
‘काबुल गए मुगल बन आए, बोलन लागे बानी।
आब-आब कर मर गए, रहा सिरहाने पानी ॥’