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Archive by category "Hindi (Sr. Secondary)" (Page 278)
कर्म-प्रधान विश्व रचि राखा Karm Pradhan Vishv Rachi Rakha ‘कर्म-प्रधान विश्व रचि राखा’ यह उक्ति श्रीमदभगवद गीता के इस सिद्धांत या कर्मवाद सिद्धांत पर आधारित है कि ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’ अर्थात इस संसार में बिना फल या परिणाम की चिंता किए निरंतर कर्म करते रहना ही मानव का अधिकार अथवा मानव के वश की बात है। दूसरे रूप में इस कथन की व्याख्या इस तरह भी की जा सकती है-फल...
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July 19, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
सादा जीवन उच्च विचार Sada Jivan Uchch Vichar निबन्ध नंबर :- 01 इस तरह की सहजता, स्वाभाविकता बहुत बड़ा गुण है। परंतु आज का युग प्रदर्शन और कृत्रिमता का युग बनकर रह गया है। आज तडक़-भडक़ को ही विशेष एंव अधिक महत्व दिया जाने लगा है। तन पर पहनने वाले कपड़े हों या घरों-दफ्तरों के उपकरण और उपयोगी सामान सभी जगह प्रदर्शनप्रियता के कारण कोरी चमक-दमक का बोलबाला है। सादगी और...
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July 19, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
भावना से कर्तव्य ऊंचा है Bhavna se Kartavya uncha hai संसार में असंख्य प्राणी हैं। उनमें सर्वाधिक और विशिष्ट महत्व केवल मनुष्य नामक प्राणी को ही प्राप्त है। इसके मुख्य दो कारण स्वीकार किए जाते या किए जा सकते हैं। एक तो यह कि केवल मनुष्य के पास ही सोचने-समझने के लिए दिमाग और उसकी शक्ति विद्यमान है, अन्य प्राणियों के पास नहीं। वे सभी कार्य प्राकृतिक चेतनाओं और कारणों से...
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July 19, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
मजहब नहीं सिखाता अपास में बैर रखना Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna निबंध नंबर :- 01 अच्छाई हमेशा अच्छाई रहती है। उसका मूल स्वरूप-स्वभाव कभी विकृत नहीं हुआ करता। उस पर किसी एक व्यक्ति या धर्म-जाति का अधिकार भी नहीं हुआ करता। अपने मूल स्वरूप में मजहब भी एक अच्छाई का ही नाम है। मजहब, धर्म, फिरका, संप्रदाय और पंथ आदि सभी भाववाचक संज्ञांए एक ही पवित्र भाव और...
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July 19, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
अंत भला तो सब भला Ant Bhala, to Sab Bhala अक्सर कहा-सुना जाता है कि कर भला, हो भला, अंत भला तो सब भला। परंतु जीवन और संसार में क्या भला और बुरा है, क्या पुण्य है और क्या पाप है, इस संबंध में कोई भी व्यक्ति अंतिम या निर्णायक रूप से कुछ नहीं कह सकता। मेरे लिए जो वस्तु भक्ष्य है, स्वास्थ्यप्रद और हितकर है, वही दूसरे के लिए अभक्ष्य,...
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July 19, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
वही मनुष्य है कि जो.. राष्ट्र और मानवतावादी कवि स्वर्गीय राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्ध कविता की पंक्ति है यह सूक्ति, जो इस प्रकार है : ‘वही मनुष्य है कि जो मनुश्य के लिए मरे।’ अर्थात मनुष्यता की भलाई के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देने वाले को ही सच्चा मनुष्य कहा जा सकता है। कितनी महत्वपूर्ण बात कही है महाकवि ने अपनी इस सूक्ति में! अपने लिए तो...
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July 17, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
पराधी सपनेहुं सुख नाहीं Paradhi Supnehu Sukh Nahi निबंध नंबर :- 01 कुछ कवियों की जो अनेक प्रचलित सूक्तियां लोक प्रचलित हैं, उनमें से यह एक महत्वपूर्ण, प्रेरणादायक सूक्ति है। यह कहावत या सूक्ति महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अपने महाकाव्य ‘रामचरित मानस’ के किसी प्रसंग में कही गई है। इसका सीधा सरल अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी भी स्तर पर, किसी भी रूप में पराधीन अर्थात गुलाम होता है, वह...
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July 17, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment
बिजली : आधुनिक जीवन की रीढ़ Bijli : Adhunik Jeevan ki Ridh आज बिजली के अभाव में एक पल भी बिता पाना कष्टकर हो जाया करता है। बिजली! हाय बिजली! एक क्षण के लिए भी यदि कहीं बिजली गुल हो जाती है, तो चारों तरफ हाय-तोबा मच जाती है। लगता है, जैसे तेज गति से भाग रही गाड़ी को अचानक ब्रेक लग जाने से वह एक झटके के साथ रुक गई...
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July 17, 2017 evirtualguru_ajaygourHindi (Sr. Secondary), Languages1 Comment