Bin Bulaye Mehmaan “बिन बुलाये मेहमान” Hindi Essay 900 Words for Class 10, 12.
बिन बुलाये मेहमान
Bin Bulaye Mehmaan
मेहमान अनिष्टकारी होते हैं, यह विचार मेरे मन में तब आया था जब मैंने अपने घर में बहुत बड़ी संख्या में मेहमानों को देखा। कुछ को तो हम जानते थे परन्तु कुछ ऐसे थे जिन्हें हम सब बिल्कुल नहीं जानते थे, हमने उन्हें कभी नहीं देखा था और न ही उनके बारे में सोचा था। क्या आपने कभी बिना सूचना, पत्र, तार अथवा टेलीफोन के अपने घर में इतने अधिक मेहमानों के आने के बारे में सुना या अनुभव किया है।
यह घटना पिछली दीवाली को घटी थी। हम सभी को हमारे एक मित्र के घर पर खाने पर बुलाया गया था। मेरी माता जी बीमार थीं और उन्हें दीवाली की खुशी में बाहर खाना खाने की कोई इच्छा नहीं थी। वे कुछ भी न खा सकती थीं। फिर भी वह साथ देने के लिए। हमारे साथ आ गई थीं। पुरुषों ने खाना समाप्त कर लिया था और स्त्रियां खाने पर बैठने ही वाली थीं कि हमारा नौकर भागा हुआ आया और चाबियाँ मांगने लगा। उसने यह भी बताया कि बड़ी संख्या में मेहमान आये हैं। मैं बड़ा खुश हुआ क्योंकि मेरे साथ खेलने के लिए कोई मित्र नहीं था परन्तु जब मैंने अपनी मां की ओर देखा तो वह बहुत चिन्तित दिखाई दीं। जबकि सच्चाई यह है कि मेरी मां हमेशा मेहमानों का स्वागत करती हैं। हमारे घर में सदा ही एक-दो मेहमान रहते हैं। परन्तु अब स्थिति भिन्न थी। वे स्वस्थ नहीं थीं और न ही उनको कोई ऐसी सूचना थी। हमारे पास एक ही नौकर था। इसका अर्थ हुआ कि मां को परिश्रम करना पड़ेगा। जैसे ही हम बच्चों ने खाना समाप्त किया, हम अपने पिताजी के साथ घर आये। वहां पर हमारे तथाकथित चाचाजी और उनके मेहमान बड़े आनन्द से बैठे थे। इनमें से मैं केवल पिताजी के धर्म-भाई बने चाचाजी और उनकी पत्नी को ही जानता था परन्तु बड़ी आयु के अन्य पुरुष और महिलाएं सब मेरे लिए नये थे।
अब मुझे इन सबके लिए चाय बनानी थी। मैं 4-5 कप चाय तो बिना किसी की सहायता लिए बना सकता हूँ, परन्तु 15-20 लोगों के लिए चाय कैसे बनाता ? फिर भी नौकर की सहायता से मैंने चाय बना दी। मेरी माँ इस बात का विशेष ध्यान रखती हैं कि चाय के साथ खाने को भी कुछ हो। अतः मैंने भी अपनी बीमार माँ द्वारा दीवाली के लिए बनाई गई खाने की कुछ चीजें प्लेटों में रख दीं। मेहमानों ने पलक झपकते ही सब कुछ चट कर दिया। मैं बहुत हैरान हुआ कि इतना सब कुछ वे इतनी जल्दी कैसे खा गये। मैं अभी इस बारे में सोच भी नहीं सका था कि किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा: “कुक्की, तुम्हारी मम्मी बहुत अच्छा चूड़ा बनाया है और चकली बड़ी खस्ता है ! हमारे लिए थोड़ी और ले आओ।” मुझे उनकी यह बात अच्छी नहीं लगी परन्तु मैं कर भी क्या सकता था। मैं उनके द्वारा मांगी चीजें लेकर गया और वे दानवों की तरह हड़प कर गये। फिर बाहर से एक और आवाज आयी “कुक्की, बाहर ड्राइवर बैठा है। उसे भी चाय और कुछ खाने को देना न भूलना।” चाय के बाद उन सबों में ताजगी आ गई (ऐसा उन्होंने कहा था)।
इसी दौरान मैं मम्मी के पास गया और घर में आये मेहमानों की वास्तविक संख्या के बारे में उन्हें बताया। उन्हें गुस्सा तो बहुत आया परन्तु उन्हें काम करने के लिए घर आना पड़ा। जब हम आये तो कुछ मेहमान अपनी टांगों को मेज पर और सिर को कढ़ाईदार गद्दों पर रखकर आराम फरमा रहे थे। बच्चे रेडियो से छेड़खानी कर रहे थे। खाली प्याले और प्लेटें कुर्सियों के पास इधर-उधर बिखरे पड़े थे। मम्मी अन्दर से तो जल रही थीं परन्तु अपने होंठों पर मुस्कान बिखेर कर उन्होंने मेहमानों का स्वागत किया। मैं उनकी दोहरी भूमिका से आश्चर्यचकित रह गया।
कुछ देर आराम करने के बाद मेहमान खरीददारी आदि के लिए बाहर चले गये। बेचारे पिताजी को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मेरे पिताजी हमेशा कहा करते हैं: “कुक्की, जब तुम्हारी माँ का मिजाज अच्छा होता है तो वह भारतीय होती हैं परन्तु जब मिजाज बिगड़ जाता है तो वह लाल भारतीय (रेड इंडियन) होती हैं।” मैंने समझ लिया कि वे अब लाल भारतीय हैं जब उन्होंने गुस्से से कहा : “यह क्या है ? क्या आपका मित्र यह समझता है कि हमारा घर सराय और ढाबा है ? उसका बिना सूचना के इतने लोगों को ले आने का क्या मतलब है।” कुछ इस प्रकार से वे बोलती रहीं। मुझे अपने पिताजी पर तरस आया क्योंकि उन्हें बिना किसी कसूर के यह सब कुछ सुनना पड़ा।
किसी तरह मम्मी ने खाना पकाया। मेहमान लगभग 9 बजे रात को आये और खूब छक कर खाया यद्यपि पहले वे कह रहे थे कि उन्हें भूख नहीं है।
वे केवल आधे दिन के लिए अर्थात् 1 बजे दोपहर से लेकर रात्रि 11 बजे तक हमारे घर में रहे परन्तु मैं उनसे पूरी तरह तंग आ गया था। और मेरी बीमार माँ को इतना काम करना पड़ा जिस पर आप विश्वास ही नहीं कर सकेंगे। परन्तु खाना बनाने में मैंने मम्मी की सहायता की। मेरी आयु का लड़का और क्या कर सकता है ?
अब मेरी सबसे बड़ी अभिलाषा यह है कि वे मेहमान मेरे इस निबन्ध को पढ़ें ताकि उनको यह पता लग सके कि इतने लोगों के साथ और वह भी बिना किसी सूचना के आकर उन्होंने हमें कितना कष्ट पहुँचाया।