Mere Jeevan ka Sabse Dukhad Din “मेरे जीवन का सबसे दुःखद दिन” Hindi Essay, Nibandh 600 Words for Class 10, 12 Students.
मेरे जीवन का सबसे दुःखद दिन
Mere Jeevan ka Sabse Dukhad Din
जिन्दगी विभिन्न घटनाओं और परिणामों के योग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इनमें से कुछ घटनाएँ और परिणाम हमें प्रसन्नता और सन्तोष प्रदान करती हैं। हम उन्हें अपनी स्मृति में संजोये रखना चाहते हैं, जबकि कुछ ऐसी होती हैं जो उदासी और निराशा लाती हैं। हर व्यक्ति ऐसी घटनाओं को भूल जाना चाहता है। किसी दिन का महत्त्वपूर्ण बनना या न बनना उस दिन की घटनाओं की प्रवृत्ति पर सर्वथा निर्भर करता है। मेरी जिन्दगी में ऐसे कई दिन आए जिनसे कई स्मृति जुड़ी है और जो अब भी मुझे सुख और सांत्वना देती हैं। किन्तु मेरी जिन्दगी में एक ऐसा दिन भी आया जिसे मैं भुला देना चाहता हूँ।
एक दिन विद्यालय बन्द था। सभी कार्यालय भी बन्द थे। घर के सभी पुरुष या स्त्री सदस्य घर पर ही थे। हम सभी सहज मुद्रा में थे। मेरे पिताजी ने हम सभी को फिल्म कलाकारों द्वारा आयोजित रंगारंग कार्यक्रम में ले जाने का निश्चय किया था। हम सभी प्रसन्न थे। किन्तु किस्मत हम सभी पर हँस रही थी। इसने हम लोगों के साथ कुछ और ही खेल खेलना था ।
मेरी माँ ने स्वादिष्ट चीजें जैसे समोसे, पकौड़े और हलवा हमारे नाश्ते के लिए बनाया था। हम सभी गप-शप कर रहे थे और विविध भारती से प्रसारित मधुर गीत सुन रहे थे। हम लोग इस प्रकार छुट्टी का सदुपयोग कर रहे थे, तभी डाकिया ने दरवाजे पर दस्तक दी। उसने मेरे पिताजी को तार दिया। ज्यों ही मेरे पिताजी ने इसे पढ़ा उनका चेहरा उतर गया। मेरे पिताजी के बड़े भाई का असमय और दुखद देहांत हो गया था। इससे हम सभी दुःखी हो गए। हम लोगों ने बाहर घूमने का इरादा छोड़ दिया।
मेरे पिताजी ने मेरे छोटे भाई को हमारे चाचाजी को यह समाचार देने मोती बाग भेजा। जिस बस में वह यात्रा कर रहा वह रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। हमें इसका पता चार घण्टे बाद चला जब लोकनायक अस्पताल के अधिकारियों ने फोन द्वारा यह सूचना दी कि मेरे भाई को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया है। उसे गहरी चोट पहुँची थी। हम लोग अस्पताल की ओर निकल पड़े। अपने छोटे भाई को दर्द में कराहते देख मेरी आँखों में आँसू भर आये। मेरे पिताजी भी बहुत दुःखी थे।
जैसे ही हम लोग घर पहुँचे, मेरी बहनें और अन्य लोग मेरे छोटे भाई की हालत के बारे में पूछने लगे। इस प्रकार जब मैं उनके प्रश्नों को तुष्ट कर रहा था, मैंने अपने बड़े भाई के सबसे घनिष्ट मित्र श्री ज्ञानचन्द की आवाज सुनी। वह बहुत ही उदास लग रहा था। जब उसने अन्दर आकर हम सभी को दुःख में डूबा देखा तो वह हैरान हो गया। उसके मस्तिष्क में एक द्वन्द्व होने लगा क्योंकि उसे हम सभी से कुछ अवश्य कहना था। जब मैंने उससे पूछा कि वह क्यों इतना चिन्तित दिख रहा है तो उसने मुझसे कहा कि उसका भाई, जो दो या तीन महीने पहले प्रतियोगी परीक्षा में बैठा था, वह उसमें उत्तीर्ण नहीं हो सका। उसे भी दुर्घटना का समाचार बताया गया। वह भी उससे बहुत दुःखी हुआ।
मैं अपनी बैठक के एक कोने में बैठा सोच रहा था कि किसी की जिन्दगी में भाग्य या किस्मत कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। मैं घटना को बुद्धिसंगत बना देने की कोशिश कर रहा था और अपने आपको और दुःखद समाचार या घटना को सहने के लायक तैयार कर रहा था। ईश्वर का धन्यवाद कि दुःखद समाचार आने वहीं थम गए। लेकिन उस दिन इतने अधिक दुःखद समाचार सुने कि आने वाले समय की अपेक्षा वह दिन सदैव मुझे चुभता रहेगा।