Shishtachar “शिष्टाचार” Hindi Essay 700 Words for Class 10, 12.
शिष्टाचार
Shishtachar
शिष्टाचार का अर्थ होता है, व्यक्ति का सौहार्दपूर्ण व सभ्य आचरण। अच्छे आचरणों वाला व्यक्ति जहाँ समाज का आभूषण है वहीं अशिष्ट व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। किसी कार्य में शिष्टाचार अलंकार के समान होता है, क्योंकि यदि कोई बात भली प्रकार से या मीठी बोली में कही जाए तो इसका महत्त्व बहुत बढ़ जाता है।
विश्व में शिष्टाचार श्रेष्ठ महापुरुषों के आचरण की एक प्रमुख विशेषता रही है। ईसा अपने अनुयायियों के पैर धोते थे और श्री कृष्ण ने अपने ब्राह्मण अतिथियों के पैर धोये थे। जार्ज वाशिंगटन ने एक नीग्रो द्वारा अभिवादन किये जाने पर अपना टोप उतार कर उसका उत्तर दिया था। उनके एक मित्र ने एक नीग्रो को टोप उतार कर इतना सम्मान देने के लिए उनकी आलोचना की तो उन्होंने उत्तर दिया कि वह शिष्टाचार के मामले में एक नीग्रो को अपने से आगे नहीं बढ़ने दे सकते।
शिष्टाचार किसी भी धन, सौन्दर्य अथवा योग्यता से अधिक मूल्यवान सम्पत्ति है क्योंकि यह विकास तथा प्रेम का केन्द्र बिन्दु है। मनुष्य की वाणी और कार्यकलापों में शिष्टाचार का होना उसका श्रेष्ठतम गुण होता है। एक फ्रांसीसी महिला ने तो यहाँ तक कहा था कि वह शिष्टाचार के उल्लंघन को कदापि सहन नहीं कर सकती चाहे उसे कितना ही अपमान क्यों न सहना पड़े। अतः, सभ्य व्यवहार और शिष्टाचार मनुष्य की बहुमूल्य निधियाँ हैं। यदि कोई व्यापारी सभ्य और विनम्र नहीं हैं तो वह अपने ग्राहकों को खो देता है। अशिष्ट सरकारी कर्मचारी का सम्मान कोई नहीं करना चाहता। यदि कोई वकील अदालत में सफल होना चाहता है तो उसे अपने मुवक्किलों से सभ्य व्यवहार करना होगा। यदि कोई प्रोफेसर लोकप्रिय होना चाहता है तो उसे अपने विद्यार्थियों से शिष्टता से पेश आना ही होगा। चीनी दार्शनिक कन्फ्यूसियस ने कहा है कि शिष्टाचार युक्त व्यक्ति ही अच्छा पड़ोसी हो सकता है, कोई बुद्धिमान व्यक्ति अगर इस गुण से वंचित है तो वह कहीं नहीं रह सकता। इसी प्रकार से प्रधानाचार्य का प्रबन्ध-व्यवस्था को ठीक रखने के लिए अपने स्टाफ के साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। विक्रेता को अपना माल बेचने के लिए, किसी विद्यार्थी को अपने सहपाठियों से सम्मान प्राप्त करने के लिए, मालिक को अपने नौकर से काम करवाने तथा अपने प्रति उसके सम्मान को बनाये रखने के लिए जो बात सबसे अनिवार्य होती है वह है शिष्टाचार ।
जो व्यक्ति सभ्य आचरण वाला नहीं है वह कभी शिष्ट नहीं बन सकता। इस पर प्रकाश डालते हुए डाक्टर जानसन ने स्पष्ट किया कि शिष्ट और अशिष्ट व्यक्ति में अन्तर केवल यही है कि एक तो हर व्यक्ति को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है और दूसरा अपने प्रति घृणा उत्पन्न कर लेता है। उन्होंने कहा था, “पहले को आप तब तक प्यार करें जब तक घृणा करने का कारण उसमें न मिले और दूसरे से तब तक घृणा करें जब तक प्यार करने का कोई कारण उसमें न मिले।” यह कथन सच ही है कि, “शिष्टाचार से मानव में मानवीय गुणों का विकास होता है और इसके अभाव में उसमें पराभव की प्रवृत्तियाँ पनपने लगती हैं।”
शिष्टाचार व्यक्तित्व विकास का माध्यम है जो मानव स्वभाव की श्रेष्ठता तथा आत्मा के सौन्दर्य में वृद्धि करता है। व्यक्ति चाहे कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो, यदि उसका आचरण और व्यवहार शिष्ट न हो तो उसे गलत समझा जा सकता है, क्योंकि जिन लोगों के सम्पर्क में वह आता है उनके लिए वह रुचिकर नहीं होता। दूसरी ओर, यदि कोई धोखेबाज व्यक्ति भी अपने व्यवहार में शिष्ट तथा स्वभाव में सौहार्दपूर्ण और मधुर होगा तो वह भद्र पुरुष समझा जा सकता है और अपने साथियों के स्नेह और विश्वास का पात्र बन सकता है। शिष्टाचार का प्रभाव सकारात्मक होता है।