Shanshilta, “सहनशीलता” Hindi motivational moral story of “Sant Eknath” for students of Class 8, 9, 10, 12.
सहनशीलता
Shanshilta
एक दिन सन्त एकनाथ पूजा कर रहे थे। एक ब्राह्मण आकर उनकी गोद में बैठ गया। वे हँसकर बोले-“भैया, तुम्हारा प्रेम तो अद्भुत है। मुझे बहुत आनन्द आया।” दोपहर के भोजन के लिए थाल परोसे गये। घी परोसने के लिए एकनाथ की पत्नी गिरजाबाई जैसे ही ब्राह्मण के पास आई, वह उठकर उनकी पीठ पर सवार हो गया। संत एकनाथ ने अपनी पत्नी को कहा-“देखना, कहीं बेचरा ब्राह्मण गिर न जाये।”
पत्नी मुस्कराकर बोली- “नहीं-नहीं यह गिरेगा नहीं। मुझे हरि बेटे को पीठ पर लादे रखने का अभ्यास है। इस बच्चे को मैं कैसे गिरा दूंगी ?” ब्राह्मण शरमाकर सन्त एकनाथ के चरणों में गिरकर बोला-“महाराज ! मैं बहकावे में आ गया था कि सन्त एकनाथ को गुस्सा दिला दो तो दो सौ रुपये इनाम दिया जायेगा। तभी मैंने आपके साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया। धन्य है आपकी सहनशीलता !” सन्त एकनाथ ने प्रेम से उठाकर उसे कहा-“जाने भी दो भैया, क्या रखा है इन बातों में ? आओ हम लोग भोजन शुरू करें।’