Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay-Paragraph on “Meri Priya Pustak” “मेरी प्रिय पुस्तक” 600 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.

Hindi Essay-Paragraph on “Meri Priya Pustak” “मेरी प्रिय पुस्तक” 600 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.

मेरी प्रिय पुस्तक

 

पुस्तकों के महासमुद्र में सभी पुस्तकों का अध्ययन कर पाना संभव नहीं है। फिर भी, अभी तक मैंने जितनी पुस्तकों का अध्ययन किया है या गुरुजनों, बुजुर्गों एवं पूर्वजों से जिनके बारे में चर्चाएं सुनी हैं, उन सबमें तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ मेरा सर्वाधिक प्रिय गंथ है। यदि हिंदी के विशाल सागर में केवल ‘रामचरितमानस’ रह जाए, तो हिंदी दरिद्र नहीं हो सकती है। इस महाकाव्य में नाम तो राम का है, लेकिन गाथा जन-जन की। इसीलिए तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ भारत के महलों एवं झोंपड़ियों में समान रूप से विराजती है। केवल विराजती ही नहीं अपितु पूजित भी है। डॉ. राहुल के शब्दों में, “रामचरित मानस भारतीय संस्कृति का आलोक ग्रंथ है। यह सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मतानुसार, ‘तुलसी के मानस’ में जो शील, शक्ति की सौंदर्यमयी स्वच्छ धारा निकली उसने जीवन की प्रत्येक स्थिति में पहुंचकर भगवान के स्वरूप का प्रतिबिंब केणक दिया। इस दृष्टि से तुलसीदास सांस्कृतिक क्रांति के अगुवा कहे जा सकते हैं।

सत्य और त्याग ये दो भारतीय संस्कृति के बीजमंत्र हैं। इस महाकाव्य के नायक श्रीराम सत्य और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। अतः तुलसीकृत रामचरितमानस में भारत की संस्कृति विराजती है। इस महाकाव्य के सभी पात्र भारतीय संस्कृति के अनुरूप हैं। राम जैसा पुत्र, भरत-लक्ष्मण जैसा भाई, सीता जैसी पत्नी, हनुमान जैसा सेवक, सुग्रीव एवं विभीषण जैसा मित्र का आदर्श रामचरित मानस हमारे सामने प्रस्तुत करता है।

श्रीराम को राजगद्दी पर आसीन रहना चाहिए था, लेकिन पिता की आज्ञानुसार राजमहल का सुख त्यागकर वे जंगल में एक तपस्वी की तरह मारे-मारे फिरे।

कठिन भूमि कोमल पद गामी।

कवन हेतु विचरह वन स्वामी ॥

यह त्याग और अनुशासन का एक अनूठा उदाहरण है। श्रीराम एक आदर्श भाई है। लक्ष्मण को मूर्छित देख ये विलाप करते हुए कहते हैं-

अस विचारि जिय जाग हूं ताता।

मिलई न जगत सहोदर भ्राता ॥

इससे समाज में भाई की महत्ता स्थापित होती है। मित्र के कष्ट से द्रवित होकर श्रीराम कहते हैं-

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।

तिम्हहि बिलोकत पातक भारी॥

सीताजी इस महाकाव्य की नायिका हैं। इनके द्वारा भी भारतीय नारी की संस्कृति का पूर्ण रूपेण पालन हुआ है। राम के साथ अपने वन गमन का औचित्य ठहराते हुए कहती हैं-

जिय बिनु देह नदी बिनु बारी!

तैसीनु नाथ पुरुष बिनु नारी ॥

रामचरित मानस में हनुमान एक आदर्श सेवक हैं। उनका कहना हैं-

राम काज किन्हे बिना मोहिं कहां विश्राम।

राम एक आदर्श राजा है। उनका सिद्धांत हैं-

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।

सो नृप अवस नरक अधिकारी ॥

इसी प्रकार इस महाकाव्य के अन्य पात्र भी मर्यादित हैं। इतना ही नहीं, मानस की एक यह भी विशेषता है कि इसमें पशु-पक्षी को भी देवतुल्य चित्रित किया गया है। यथा-हनुमानजी, जामवंतजी, गरुड़जी, काक भुशंडीजी इत्यादि।

रामचरित मानस साहित्यिक दृष्टि से भी बेजोड़ ग्रंथ हैं। इसकी चौपाइयां, छंद, सरठे, दोहे अनुपम अर्थ एवं ऊंचे भावों के साथ निहित हैं।

छंद सोरठा सुंदर दोहा।

सोई बहुरंग कमल कुल सोहा ॥

भक्तगण तो इन्हें गा-गाकर भाव-विभोर हो नाचने लगते हैं। यह ग्रंथ ज्ञान का भंडार है। सभी वेदों के सारतत्त्व का निचोड़ जिस सहज ढंग से इस ग्रंथ में समाहित किया गया है, वह अन्यंत्र दुर्लभ है। मानस की निम्नांकित चौपाई में ब्रह्म, माया एवं जीव की सरलतम व्याख्या प्रस्तुत की गई है-

उमय बीच सिय सोयइ कैसी।

ब्रह्म जीव बीच माया जैसी ॥

धर्म-अधर्म अथवा पाप-पुण्य की एक व्यावहारिक व्याख्या इस पुस्तक में की गई है-

परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

पर पीड़ा सम नहीं अध भाई ॥

यह पुस्तक हमें कर्म करने की प्रेरणा देती है।

कर्म प्रधान विश्व करि राखा।

जो जस करहिं तो तस फल चाखा ॥

वस्तुतः रामचरित मानस एक ऐसी कामधेनु है, जिसकी दुग्ध धारा न सूखी है, न कभी सूखेगी, क्योंकि इसमें भारतीय संस्कृति की आत्मा बसती है। महाकवि तुलसी की रचना रामचरितमानस हिंदी साहित्य के ललाट पर चमचमाती बिंदी हैं।

सच मानो, तुलसी न होते तो हिंदी कहीं पड़ी होती।

इसके माथे पर रामायण की बिंदी नहीं जड़ी होती।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *