Hindi Essay-Paragraph on “International Year of the Child” “अंतर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष” 500 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.
अंतर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष
International Year of the Child
‘अंतर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष’ एक वैश्विक आयोजन निया को यह अनुभव हुआ कि बच्चे ही किसी देश के भविष्य हैं। बच्चे तरह-तरह की समस्याओं से जकड़ कर या तो असमय काल कवितत हो जाते हैं या विकलांग हो जाते हैं या कुपोषण के शिकार होने से स्वस्थ, सुंदर, सुजैल नागरिक नहीं हो पाते हैं। बच्चों की अधिकांश समस्याएं स्वास्थय से संबंधित है। शेष समस्याएं शिक्षा-दीक्षा से संबंधित है। अंतर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष के आयोजन का मुख्य उददेश्य बच्चों की देखभाल के लिए उसके समुचित विकास, के लिए विश्वस्तर पर आंदोलन शुरू करना और इस आंदोलन का मुख्य अभिप्राय है बच्चों के प्रति दुनिया के लोगों को जागरूक करना।
सन् 1979 ई. में संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर अंतर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष का आयोजन किया गया, जो बच्चों के भविष्य के प्रति दुनिया के लोगों के चितित होने का प्रमाण है। बालक प्रवृत्ति की अनुपम कृति है। यही विश्व का भावी कर्णधार है। आज का बालक ही कल के विश्व का निर्णायक और संचालक होगा। अतः बालक जितने सुयोग्य, शक्तिशाली और कर्मठ बनेगा, उसी अनुपात में वह विश्व की सेवा में सक्षम होगा। बालक निर्मल, निर्बल, निश्छल और निर्विकार होते हैं। बच्चे चाहे जिस जाति, वर्ग, वर्ण, देश के हों उनमें पारस्परिक सौहार्द और प्रेम होता है। बच्चे स्वाभाविक रूप से बिना किसी भेदभाव में एकीकत हो जाते हैं।
यदि हम बालकों के इस भाव-बोध को विकसित और सुरक्षित कर सकें, तो विश्व की अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व का सबसे बड़ा और व्यापक संगठन है। यह एक ऐसी संस्था है जो मात्र युद्ध रोकने और मानव जाति को विनाश से बचाने का ही शोत्र नहीं करती, बल्कि मानव जाति के उत्थान, उसके पिछड़ेपन, भूख आदि को मिटाने के लिए भी संघर्ष करती है। इसी संस्था के अंतर्गत वर्ष 1971 ई. में अंतर्राष्ट्रीय बाल वर्ष का आयोजन किया गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के सभी देशों का आह्वान किया है कि वे अपनेअपने देश के बालकों के कल्याण के लिए विविध कार्यक्रम चलाए। सन् 1979 ई. को दृष्टि में रखकर आह्वान किया। यह संस्था विश्व के बच्चों के लिए दवाइयां, पौष्टिक आहार आदि की व्यवस्था करने को अपना मुख्य कर्तव्य समझती है।
भारत में बालकों की स्थिति विश्व के अन्य देशों की तुलना में दयनीय रही है। यहां बालकों को शिक्षा तो दूर, उन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाता है। पौष्टिक आहार के अभाव में बालकों को कई प्रकार के कुपोषण जनि रोग पाए जाते हैं। बाल मृत्युदर भी अधिक है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों से प्रभावित होकर भारत सरकार ने भी प्रयास जारी किए हैं। सरकार बच्चों की शिक्षा पर अधिक जोर दे रही है। बाल-श्रम को रोकने तथा बाल-शिक्षा को बढ़ाने हेतु आंगनबाड़ी, प्राथमिक विद्यालय आदि पर काफी रुपये खच कर रही है। इन विद्यालयों में पिछड़ों तथा गरीबों के बच्चे शिक्षा ग्रहण के साथ पोषाहार भी प्राप्त करते हैं।
उन्नत देशों का कर्तव्य है कि वे पिछड़े देशों के बच्चों के जीवन-उत्थान हेतु आर्थिक और शैक्षणिक सहातया दें। विकसित देशों ने इस क्षेत्र में कुछ कार्य अवश्य किए हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ का अंतर्राष्ट्रीय बाल वर्ष का उद्देश्य पावन रहा है। यदि विश्व को शांति-सुरक्षा और विकास की ऊंची मंजिल तय करनी है, तो यह बालकों के विकास में सर्वस्व लगा दे। हम आशावादी बने रहे कि आगे आने वाला समय उन्नत और समृद्ध भारत को बनाएगा।






















