Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aaj ki Yuva Pidhi”, “आज की युवा पीढ़ी ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
आज की युवा पीढ़ी
Aaj ki Yuva Pidhi
जब समाज निर्माण के संदर्भ मे युवा-पीढ़ी की भूमिका की चर्चा की जाती है तो स्वभावतः अनेक प्रश्न उत्पन्न होने लगते हैं। इनमें महत्चपूर्ण प्रश्न यह है कि युवा पीढ़ी में किन व्यक्तियों को रखा जाए। आज सामान्य रूप से युवा-पीढ़ी के अंतर्गत विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले युवक-युवतियों को लिया जाता है, किन्तु युवा-पीढ़ी के अन्तर्गत उन युवक-युवतियों को भी परिगणित किया जा सकता है जो स्कूल-काूलेजों की अपेक्षा खेतों, कारखानों, मिलों, फैक्ट्रियों आदि में कार्यरत हैं।
आशय यह है कि छात्र-छात्राओं के अतिरिकत युवक-युवतियों को भी इस पीढ़ी में लिया जाता है। वैसे युवा अथवा वृद्व होना जीवन के बीते हुए वर्षो पर निर्भर नहीं करता। ऐसे अनेक प्रौढ़ अथवा वृद्व व्यक्तियों को देखा जा सकता है जिनमें युवकों की अपेक्षा अधिक उतसाह, उल्लास, ऊर्जा है जो आलस्य व निष्क्रियता से ग्रस्त कहे जा सकते हैं। यहाँ हम यही कहना चाहते हैं कि यौवन व वृद्वावस्था का प्रत्यक्ष संबंध व्यक्ति की मानसिकता के साथ होता है। यौवन को जीवन के उपवन का वसन्त कहा जाता है। जिस प्रकार वसन्त ऋतु आने पर संपूर्ण प्रकृति के भीतर हषोल्लास की तरंगें उठने लगती हैं, रूप या सौदंर्य की अनेक छवियाँ अनायास प्रस्फुटित होने लगती हैं, उसी प्रकार यौवन आने पर व्यक्ति के जीवन में एक प्रकार की आशा, अभिलाषा, कर्म-प्रेरणा तथा निर्माणकारी क्षमता अंकुरित होने लगती है।
नई एवं पुरानी पीढ़ियों का तुलनात्मक अध्ययन: जहाँ नई पीढ़ी जीवन के अनेक क्षेत्रों में अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी का स्वाभाविक रूप से अनुकरण करती है, वहाँ अनेक क्षेत्रों मंे उसका पुरानी पीढ़ी के साथ मतभेद तथा कभी-कभी संघर्ष भी देखने को मिलता है। दोनों पीढ़ियाँ अपने-अपने स्थान पर स्वयं को अधिक गुणवान् और समर्थ समझती हैं। इसका परिणाम होता है दोनो पीढ़ियों में पारस्परिक संघर्ष।
नई पीढ़ी समाज के भीतर जहाँ परिवर्तन के हर नए मोड़ का स्वागत करते समय अतिरिक्त भावकुता का परिचय देती है, वहाँ पुरानी पीढ़ी अपनी सीमाओं के कारण यथास्थितिवादी, अपरिवर्तनशील तथा पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होती है। दो पीढ़ियों का यह वैचारिक मतान्तर प्रायः प्रत्येक युग में रहा है। प्रकृति का यह स्वाभाविक नियम है कि वृक्ष की शाखाओं पर लहराने वाले पते पतझड़ आने पर झर जाते हैं, उनके स्थान पर नए पते प्रकृति की शोभा और सज्जा करने लगते हैं। बाह्म प्रकृति का यह नियम मानव के भीतर भी देखा जा सकता है। अभिप्राय यह है कि नवीन औा पुरातन एक-दूसरे के विलोम न होकर परस्पर पूरक हुआ करते हैं।
युवा पीढ़ी की अब तक की भूमिका: मध्य युग का इतिहास साक्षी है कि इन दोनों पीढ़ियों में सहअहस्तित्व व सद्भाव बराबर बना रहा है। जैसे-जैसे आधुनिकता, विज्ञान पर आश्रिम भौतिकवाद तथा पाश्चात्य जीवन-मूल्यों की छाप भारतीय जीवन पर पड़ती गई, वैसे-वैसे इन दोनों पीढ़ियों के मध्य होन वाली स्थिति का लाभ राजनीति ने सदा ही उठाया है। विगत शताब्दी में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मंच पर घटित होने वाली घटनाएँ यही प्रमाणित करती हैं।
एक समय था जबकि देश की प्रत्येक प्रगति, चाहे व ह धार्मिक हो या आर्थिक, चाहे व सामाजिक हो या वैदेशिक, सभी राजनीति के अंन्तर्गत आती थी, परन्तु आज के युग में राजनीति शब्द का अर्थ इतना संकुचित हो गया है कि अब इसका अर्थ केवल वर्तमान सरकार का विरोध करना ही समझा जाता है।
भारतवर्ष एक गणतंत्र देश है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि देश की नीति का संचालन करते हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति शासन में अपना प्रतिनिधित्च चाहता है। अपने स्वार्थ में दूसरों को बहकाने का प्रयास करता है। यह गंदी दलबंदी ही आज की राजनीति है, जिससे दूर रहने के लिए विद्यार्थियों से कहा जाता है। विद्यार्थियों के पास उत्साह है, उमंग है, पंरतु साथ-साथ अनुभवहीनता के कारण जब शासन उनके विरूद्व कार्यवाही करता है, तब उस समय उन पथभ्रष्ट करने वाले नेताओं के दर्शन भी नहीं होते। जनता कहती है कि स्वतंत्रता संग्राम में विद्यार्थियों को भाग लेने के लिए प्रेरणा देने वाले आज उन्हें राजनीति से दूर रहने के लिए क्यांे कहते हैं ? निःसंदेह विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेने का अधिकार है, पर देश की रक्षा के लिये, उनके सम्मान एवं संवर्धन के लिये, न कि शासन के कार्य के लिए विघ्न डालने और देश में अशांति फैलाने के लिये।ं
विद्यार्थी का परम कर्तव्य विद्याध्ययन ही है, इसमें दो मत नहीं हो सकते। उन्हें अपनी पूरी शक्ति ज्ञानाज्र्रन मंे ही लगानी चाहिये। अब भारतवर्ष स्वतंत्र है। अपने देश की सर्वांगीण उन्नति के लिये एवं पूर्ण समृद्वि के लिये हमें अभी बहुत प्रयत्न करने हैं। देश को योग्य इंजीनियरों, विद्वान डाक्टरों, साहित्य मर्मज्ञ विद्वानों, वैज्ञानिकों और व्यापारियों की आवश्यकता है, इसकी पूर्ति विद्यार्थी ही करेंगे।