Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mahangai ki Samasya”, “महँगाई की समस्या” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
महँगाई की समस्या
Mahangai ki Samasya
महँगाई की समस्या आज विकट हो गयी है। कुछ धनाढ्यों को छोड़कर समाज का प्रत्येक वर्ग इससे प्रभावित है। जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति में ही सबकी शक्तियाँ चुकी जा रही हैं। जब जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने में ही व्यक्ति का ध्यान केन्द्रित हो, तो वह जीवन के अन्य कलात्मक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, बौद्धिक, सौंदर्यबोध आदि ऐसे विविध पक्षों का कैसे स्पर्श कर सकता है ? उसका जीवन तो मानो आर्थिक समस्याओं से जूझने का मात्र एक साधन हो गया है। व्यक्ति के जीवन की अर्थवता महँगाई की समस्या से संघर्ष करने में ही परिलक्षित होने लगी है। कमरतोड़ महँगाई के कारण समाज के बहुसंख्यक लोगों का अन्य जवलन्त समस्याओं की ओर ध्या नही नहीं जाता। इनकी समस्त शारीरिक तथा बौद्विक शक्तियाँ महँगाई की समस्या से आक्रांत हैं। इनके जीवन मे रचनात्मक कार्यों का कोई स्थान हो ही नहीं सकता। धनिक वर्ग को महँगाई से कम जूझना पड़ता है किन्तु उसकी सभी शक्तियाँ किसी प्रकार से धन जोड़ने में ही लगी रहती हैं और यही वर्ग महँगाई की समस्या का निर्माण करने में बहुत कुछ उतरदायी है। कहने का तात्पर्य यह है कि महँगाई ने कुछ को छोड़कर देश की अधिकांश आबादी के दिलो-दिमाग पर प्रभाव डाला है और इसका परिणाम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है। मनुष्य का जीवन केवल पेट की समस्या से संघर्षरत होने तक ही यदि सीमित रहता है, तो उसकी भूमिका समाज के विभिन्न क्षेत्रों में मानवता के उन्नत स्तर की दृष्टि से दिवास्वप्न हो जाएगी। अतः इस समस्या के कारणों पर ध्यान देना होगा।
जमाखोरी तथा मुनाफाखोरी का जो सबसे बड़ा घातक परिणाम देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है वह है काले धन का समानान्तर अर्थव्यवस्था के रूप में अस्तित्व। ऐसा अनुमान है कि काले धन की विकास दर प्रति घंटा दो करोड़ रूप्ये है। अंतर्रराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार हमारे देश में काले धन की मात्रा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग पचास प्रतिशत है। भावों को बढ़ाने में इस काले धन की सीधी और सपाट भूमिका है। काले धन वाले कालाबाजारी के धंधों मंे लगे हैं। महँगाई बढ़ाने में काला धन अपनी घिनौनी भूमिका अदा कर रहा है। इस काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था को चलाने में राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा हाथ है। सारी चुनाव प्रक्रिया काले धन पर आधारित है। चुनाव की प्रक्रिया के महँगे होने से पैसा देने वाले व्यक्ति का महत्व बढ़ा हाथ है। सारी चुनाव प्रक्रिया काले धन पर आधारित है। चुनाव की प्रक्रिया के महँगे होने से पैसा देने वाले व्यक्ति का महत्व बढ़ जाता है और पैसा लेने वाले व्यक्ति भ्रष्टाचार को रोकने की नैतिक शक्ति से रहित होकर असहाय रूप में सब प्रकार के काले धंधों को पनपने देने के लिए बाध्य होता है। इससे भी वस्तुओं के भाव बढ़ते हैं। राजनीतिज्ञों का भ्रष्ट होना भी महँगाई को बढ़ाने में सहायक है।
जनसंख्या वृद्वि भी मँहगाई बढ़ाने में एक प्रमुख कारक है। देश में उपलब्ध साधन जनसंख्या की वृद्वि के अनुपात में कम हैं। जनसंख्या में वृद्धि को रोकने के अथक प्रयासोें के बावजूद आबादी बढ़ती जा रही है। आज देश की आबादी एक अरब के पार कर गयी है। इस आबादी के लिए रोटी, कपड़ा तथा मकान जुटाना कितना महँगा तथा कठिन होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। स्थिति विस्फोटक है। महँगाई को कम करने के लिए कतिपय सुझाव दिए जा रहे हैं। इन सुझावों के अनुरूप आचरण करने से महँगाई में काफी कमी लायी जा सकती है-
- राष्ट्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि करना। इसके लिए कर्मचारियों के मन में प्रेरणा जगाना आवश्यक होगा। उद्योगपतियों को कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखते हुए व्यवहार करना होगा तभी उत्पादन बढ़ सकेगा और वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धि के परिणामस्वरूप कीमतें कम होगी और महँगाई कम होगी।
- जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए देश में जागृति उत्पन्न करनी होगी। सरकारी तथा निजी दोनो स्तरों पर इसके लिए प्रयत्न करने होंगे। परिवार-नियोजन के लिए आर्थिक तथा पदोन्नति सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी। जनसंख्या विस्फोअ के दूरगामी परिणामों से लोगों को परिचित कराना होगा।
- चुनावी प्रक्रिया को कम खर्चीला बनाने के लिए चुनाव व्यवस्था में सुधार करने होंगे। चुनाव प्रक्रिया बहुत महँगी है। कोई भी राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचारी हथकंडे अपनाये बिना चुनाव नहीं जीत सकता है। काले धन की महिमा इस दृष्टि से सर्वविदित है। काले धन से लड़ा गया चुनाव नैतिक मूल्यों के उत्थान का कारण नहीं बन सकता। यह तो मुनाफाखोरी, जमाखोरी तथा कालाबाजारी के लिए ही सहारा बनेगा। चुनाव-प्रक्रिया को सस्ता बनाने से उससे उत्पन्न भ्रष्टाचार को रोकने में सफलता मिलेगी और परिणामतः महँगाई कम होगी।
- व्यापारियों तथा उद्योगपतियों की व्यक्तिवादी लाभ की मनोवृत्ति को आमूल-चूल बदलना होगा, राष्ट्रभक्ति की प्रखर भावना के आधार पर। राष्ट्र के सर्वागीण विकास की दृष्टि से उनकी महत्वपूर्ण भूमिका की ओर उनका ध्यान आकर्षित करना होगा। सरकार को ऐसे कानून बनाने होंगे जिनसे उनके उद्योग धंधों में भ्रष्टाचार को प्रभुत्व न मिल सकें इससे भी महँगाई में फर्क पड़ेगा।
महँगाई एक अंतर्रराष्ट्रीय समस्या है। संसार मंे जो कुछ होता है उससे हम अप्रभावित नहीं रह सकते। फिर भी अपने देश में बने कारणों को हम दूर कर सकते हैं, जिनके आधार पर हमारी अर्थव्यवस्था चरमराती है और महँगाई बढ़ती है। ऐसा करने के लिए आवश्यकता है, राष्ट्रीय संकल्प की और उसके लिए राष्ट्रीय संस्कार तथा संचेतना की। राष्ट्र के कर्णधार यदि अपने व्यक्तिगत तथा दलगत स्वार्थ से ऊपर उठकर विचार करें तो देश महँगाई को नियंत्रित कर सकता है।