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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Kshetravad Samasya evm Samadhan”, “क्षेत्रवाद – समस्या एवं समाधान ” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

क्षेत्रवाद – समस्या एवं समाधान 

Kshetravad Samasya evm Samadhan

 

अन्य विकासशील देशों की तरह भारत भी क्षेत्रवाद की समस्या से ग्रसित है। क्षेत्रियतावाद से तात्पर्य है किसी देश के उन छोटे-छोटे क्षेत्रों से, जो आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि कारणों से अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं। इसके अंतर्गत संबंधित क्षेत्र-विशेष के लोग अपने लिए और अधिक अधिकारों की माँग सदैव करते हैं।

क्षेत्रवाद का अर्थ यह भी होता है किसी क्षेत्र के लोगों की उस भावना एवं प्रयत्नों से जिनके द्वारा वे अपने क्षेत्र विशेष की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि शक्तियों में वृद्धि करना चाहते हैं। विकासशील देशों में यथोचित आर्थिक विकास नहीं हो पाने के कारण उसके सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं नहीं हो पाता, फलस्वरूप वहाँ राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या बनी रहती है।

भारत की एकता में क्षेत्रीयतावाद रोड़े का काम कर रही है। संविधान के प्रावधानों के बावजूद क्षेत्रीय स्वतंत्रता की मांग उठती रही है। भारत में अनेक राज्य किसी न किसी अंतर्राष्ट्रीय सीमा-विवाद, जल-विवाद या पृथक राज्य की माँग में आज लिप्त है। सभी अपने-अपने स्वार्थों के अनुसार समय-समय पर अपनी मांगों को रखते हैं। इसके चलते भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। किसी भी आधार पर क्षेत्रवाद की भावना विकसित न होने पाए, इसके लिए संविधान में इकहरी नागरिकता की व्यवस्था की जानी चाहिए। |

भारत एक बहु रंगी, भाषी, जाति, धर्म, क्षेत्र वाला देश है। यहाँ तरह-तरह के लोग निवास करते हैं। अगर हम इतिहास देखें तो इसी सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता का लाभ उठाते हुए विदेशी शक्तियों ने इसका शोषण किया।

अंग्रेजों ने भारत के प्रांतों का स्वार्थपूर्ण विभाजन किया तथा इस तरह के बीज बो दिए जिसके विषाक्त फल भारत आज भी तोड़ रहा है। भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली पर उनके द्वारा डाली गई फूट को अभी तक नहीं भर पाया।

भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के अनेक कारण बताए गए हैं। भारत में कुछ ऐसे बड़े राज्य हैं जिनके छोटे-छोटे महत्वपूर्ण क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इकाई बन सकते हैं। जैसे आंध्रप्रदेश के तेलंगाना राज्य से (संघर्ष अभी जारी है), मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ ने (अलग राज्य का दर्जा मिल चुका है), उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बाँटने का प्रस्ताव (मायावती सरकार ला रही है) अगर अलग राज्य का दर्जा प्राप्त कर लें तो वे कई भारतीय राज्यों से भी बड़े हो जाएंगे।

भाषा एवं संस्कृति की विविधता भी कभी-कभी क्षेत्रवाद को जन्म देती है, जैसे अगर हम गुजरात जाएँ तो गुजराती का बोलबाला रहेगा, पंजाब जाएं तो पंजाबी का इसी तरह से हर राज्य की अपनी संस्कृति व भाषा हो गई है। अगर उनमें भी भिन्नता आ जाए तो फिर उनके भी टूकड़े हो जाते हैं।

ऐसा नहीं की क्षेत्रवाद की भावना आजादी पूर्व नहीं थी, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी क्षेत्रीयता की भावना थी जिनमें से कुछ आजादी के बाद अधिक उग्र हुई तो कुछ शांति से जारी रहीं।

अनेक बार ऐसा हुआ है कि केन्द्र सरकार जिसमें किसी एक दल का महत्वपूर्ण स्थान है, राज्यों के विरोधी दलों की सरकार के साथ पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाती है। इससे समस्या और अधिक जटिल हो जाती है।

अगर हम झारखण्ड, असम, उत्तराखंड, पंजाब, महाराष्ट्र, आंध्रा आदि का इतिहास देखें तो हमें पता चलेगा कि इन सभी क्षेत्रीय आंदोलन के पीछे लगभग एक ही समान कारण है।

अतः सरकार चाहे वह केन्द्र की हो या संबंधित राज्य की अगर वह सहयोगी रूख अपनाए तो इसका समाधान संभव हो सकता है।

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