Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Holi Ka Tyohar”, “होली का त्योहार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
होली का त्योहार
Holi Ka Tyohar
होली त्योहार एक है, लेकिन पूरे देश में अगर होली खेलने के तरीके खोजने निकलें, तो इसी त्योहार के न जाने कितने रूप निकल आएँगें। दरअसल, हर जगह होली खेलने के तरीके और उससे जुड़ी अनूठी परंपराएँ हैं। जैस की बरसाने की लठमार होली को तो सब जानते हैं। बहुतों ने उसे टीवी पर या असल में देखा भी होगा, लेकिन हरियाणा में भी होली खेलने का तरीका कुछ ऐसा ही है। वहाँ लठ की जगह कोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। एक कपड़े को, जो अक्सर महिलाओं का दुपट्टा होता है, कसकर काफी कड़ा कर लिया जाता है और उससे महिलाएँ पुरूषों की पिटाई करती हैं। इस पिटाई के लिए भाभी देवर का रिश्ता काफी मशहूर है। बंगाल में रंगों के लिए हर सिंगार के फूल को पूरे साल रखा जाता है, सिर्फ रंग बनाने के लिए। यह त्वचा के लिए काफी अच्छा होता है और होली इसी से खेली जाती है। लेकिन सबसे पहले कृष्ण की मूर्ति के पैरों मंे गुलाल डाला जाता है। होली के दिन सुबह-सुबह घर के छोटे सदस्य निकल पड़ते हैं रंग लगाने। यहाँ सुबह की होली सूखी होती है और दोपहर को हर सिंगार से निकाला हुआ रंग लगाया जाता है। लोग जब होली खेलकर घर पहुँचते हैं तो अपने माता-पिता के पैरों में थोड़ा रंग डालते हैं। उस दिन शाम को नहाने के बाद सब एक-दूसरे के घर जाते हैं और बुजुर्गों के पैरांे में चुटकी भर रंग डालकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
शांतिनिकेतन की होली तो देश भर में मशहूर है। यहाँ फूलों से होली खेली जाती है। इसकी शुरूआत विश्वभारती के संस्थापक गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने की थी, इसलिए लोग इस होली से जुड़ना गर्व की बात समझते हैं।
महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर इसे शिगमा कहा जाता है और गोवा में शिगमोत्सव। तटीय इलाकों में इस उत्सव की धूम देखने लायक होती है। मछुआरों के नृत्य और उनकी मस्ती को देखकर तो कोइ भी झूम सकता है।
पंजाब मे होली का अलग ही रंग देखने को मिलता है। यहाँ होली के दौरान कुश्तियों के मुकाबले होते हैं। होली से अलग इसी दौरान होला मोहल्ला भी मनाया जाता है, जिसमें बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं। इन जुलूसों मे तलवारों और लाठियों के करतब देखने लायक होते हैं। राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलता है। यहाँ होली के दिन हाथियों के खेल होते हैं। राजे-रजवाड़ों की होली भी यहाँ जबर्दस्त होती है। राजाओं के कुछ वंशज अपने यहाँ उसी तरह होली मनाते हैं, जैसे राजा प्रजा के साथ मनाया करते थे।
राजस्थान के ठीक दूसरी तरफ उत्तर पूर्व में मणिपुर में होली छह दिन का त्योहार होता है। इसके लिए लोग काफी दिन पहले से पैसा इकट्ठा करना शुरू करते हैं। फागुन की पूर्णिमा से इसकी शुरूआत होती है। घास-फूस से एक झोपड़ी बनाई जाती है और इसे जलाया जाता है। अगले दिन सुबह लोग गुलाल खेलने निकल पड़ते हैं। इस दौरान यहाँ कृष्ण भक्ति का आलम भी देखने लायक होता है। भक्त गुलाल खेलते हैं, कृष्ण भक्ति के गीत गाते हैं और कृष्ण मंदिर के सामने सफेद कपड़ों और पीली पगड़ियांे में नृत्य करते हैं।
जिस देश में होली इतना बड़ा उत्सव हो, उसी देश के एक हिस्से में होली बिल्कुल नहीं मनाई जाती। सुनने में यह बात काफी अजीब लगती है, लेकिन दक्षिण केरल में होली मनाने की कोई पंरपरा नहीं है। खैर, आपके आसपास जो होली मन रही है, वो पूरे देश का संगम है, क्योंकि यहाँ पूरे देश के लोग रहते हैं। तो आप भी इस बेहतरीन संगम का लुत्फ उठाने निकल जाइए और सबको कहिए होली मुबारक।
होली का त्योहार
होली रंगों के त्योहार के रूप में जानी जाती है। ये फाल्गुन मास में फरवरी और मार्च की बीच, में पड़ती है।
इसका उद्भव पौराणिक कथा में मिलता है। राजकुमार प्रहलाद भगवान विष्णु का पुजारी था। उसके पिता राजा हृण्यकश्यप को प्रहलाद का यह कार्य अच्छा नहीं लगता था। उसकी अनेक धमकियों के बावजूद प्रहलाद ने भगवान विष्णु की पूजा जारी रखी। वह अपने पुत्र की हत्या करना चाहता था। उसने ऊँचे पहाड़ से नीचे फेंक कर उसे मारने का प्रयास किया। अगली बार उसे प्रहलाद को गर्म खम्बे के साथ बांध दिया परन्तु प्रहलाद फिर भी नहीं मरा। तब होलिका, राजा की बहन, प्रहलाद को गोद में बिठा कर आग में बैठ गई। उसे यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। होलिका जल गई परन्तु प्रहलाद बिना किसी अनिष्ट के बच गया। इसलिए प्रहलाद के बचने की खुशी में होली मनाई जाती है। तब से होली खूब धूम-धाम से मनाई जाती है।
यह त्योहार कटाई से पहले आता है। नया अनाज आग में भून कर मित्रों और सम्बन्धियों में प्रसाद रूप बांटा जाता है।
इस त्योहार के एक रात पहले बड़ी अग्नि जलाई जाती है। औरतें अग्नि में मिठाई और पुजा सामग्री भेंट करती हैं। लोग तब स्वस्थ और समस्या रहित वर्ष की कामना करते हैं। होली के दिन लोग इस अग्नि की राख को अपने माथों पर मल कर अग्नि के प्रति अपना आदर प्रकट करते हैं और फिर एक दूसरे पर रंग मलते हुए घर-घर जाते हैं। बच्चे खासकर इस त्योहार का आनन्द लेते हैं। वे खूब खेल-कूद करते हैं और एक-दूसरे पर रंग भरा पानी उडेलते हैं।
औरतें गुंजिया बनाती हैं। जो कि मैदे और चीनी से बनती हैं और दूसरे नमकीन आदि बनाती हैं। वे ये भोज उन मेहमानों को खिलाती हैं जो उन के घर बधाई देने आते हैं। मीटा पेय पदार्थ में नशीली भांग मिलाने की भी प्रथा है। इसे पी कर लोग नशिया जाते हैं। बहुत-सा गाना बजाना और नाचना भी होता है।
इस रंगीन त्योहार का एक बुरा पक्ष भी है। क्रीड़ा करने के बहाने बहुत से लोग औरतों के साथ दुराचार भी करते हैं। बच्चे भी गुज़रने वालों और सड़क पर जाती हुई सवारियों पर पानी के गुब्बारे फेंकते हैं। इस से हर साल कई दुर्घटनाएँ होती है। लोग एक दूसरे पर रसायन, रंग रोगन, और मिट्टी कीचड़ फेंकते हैं जिससे कई चर्म और आँखों के रोग हो जाते हैं। कई बार आँखें अंधी भी हो जाती है। पानी से भरे गुब्बारों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई है।
ये सच है कि होली जो खुशी के त्योहार के रूप में मनाई जानी शुरू हुई थी, पिछले कुछ सालों से ऐसा त्योहार बन गई है। जिसको ज़्यादातर लोग नापसन्द करते हैं। इसलिए हम यह प्रण लें कि अगले साल तब हम होली मनाऐं तो इससे जुड़ी सभी बुरी प्रथाओं से दूर रहें।