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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Garibi Hatao”, “गरीबी हटाओ” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

गरीबी हटाओ

Garibi Hatao

प्रस्तावना : यह कथन हमारे हृदय में चेतना भर देता है। कि यदि देश को पुनः ‘सोने की। चिडिया’ के रूप में देखना है तो न केवल ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को बुलन्द करना है अपितु उसके सहयोगी एवं मूलभूत तत्त्वों की। ओर भी दृष्टिपात करना होगा; क्योंकि परिवार, समाज या देश कुछ। भी हो निर्धनता उसका सबसे बड़ा कलंक है। गरीब की कोई सहायता नहीं करता, कहते हैं गरीबी में आटा गीला’ होता है। दरिद्र के लिए सम्पूर्ण संसार शून्य होता है जैसा कि नीतिकार का कथन है- ‘सर्व शून्या दरिद्रता’ इसीलिए ‘दारिद्रय मनन्तकं दु:खम्’ कहा गया है। वास्तव में संसार में धर्म, कर्म सब कुछ टका ही है। जिसके घर में टका (पैसा-रुपया) नहीं है, वह बाजार में टकटकी लगाकर देखा, ही करता है अथवा हा टका हा टका कह कर टकटकाया करता है। जैसे कि कवि ने टके पर टकटकी लगाई है-

टका धर्म टका कर्म, टका हि परमं पदम् ।।

यस्य गृहे टका नास्ति, हाट के टके टकायते ।।”

 

गरीबी हटाओ’. आन्दोलन का जन्म: भारत निश्चय रूप से पहले वैभव सम्पन्न था। यहाँ कभी घी-दूध की नदियाँ बहती थीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् वही भारत दारिद्र्य का शिकार हुआ। इस दरिद्रता के राक्षस को भगाने के लिए हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने ‘आराम हराम है’ के नारे से देश के लोगों को सजग किया। नेहरू जी के महाप्रयाण के पश्चात् भारत की बागडोर भारत रत्न श्री लालबहादुर शास्त्री ने सँभाली जिन्होंने हमारे अन्त:करण में ‘जय वान जय किसान’ का मंत्र फेंका; किन्तु चन्द मासों में ही चल बसे।

इस रिक्तता की पूर्ति हेतु विधाता ने बहुमुखी प्रतिभा की देवी श्रीमती इन्दिरा गाँधी को प्रस्तुत किया। इन्होंने देश के दारिद्रय को मिटाने के लिए ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलन्द किया।

श्रीमती इंदिरा गाँधी और भारत : जन्म के समय से ही श्रीमती इन्दिरा गाँधी राजनैतिक वातावरण में पनपी । वह प्रारम्भ से ही साहसी तथा धैर्यशाली रही हैं।

श्रीमती इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार द्वारा ‘बैंकों का राष्ट्रीयकरण’ और ‘भूतपूर्व राजाओं के प्रीवीपर्स क़ी समाप्ति’ करने से जनता को विश्वास हो गया था कि देश को निर्धनता की जिस वत्ति ने जकड़ रखा था उसे तोड़ने में वे अवश्य ही सफल होंगी। आज की स्थिति से स्पष्ट है कि श्रीमती इंदिरा गाँधी ने जो पीछे हटाने के भाषण दिए हैं, वे उन पर आजीवन कटिबद्ध रही हैं। उन्होंने गरीबी हटाने के लिये कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जैसे जमीन और शहरी सम्पत्ति पर सीमा निर्धारण रोजगार के नये प्रयोजन, बीमा कम्पनियों तथा बैंकों के राष्ट्रीयकरण । आजकल तस्करों को पकड़ कर, कीमतों का न्यूनतम निर्धारण कराकर समाज को एक समान बनाने में वे रणचण्डी का कार्य करती रहीं। उनके जलते जोश में श्री जयप्रकाश जी ने घृत का कार्य किया है।

निर्धनता के कारण : भारत को लक्ष्य समाजवादी समाज की रचना करना है। समाजवाद की प्राप्ति के लिए गरीबी का समापन आवश्यक है। इसको दूर करने के उपायों के पूर्व इस गरीबी के कारण क्या हैं ? उनको जान लेना परमावश्यक है। विचार करने पर निर्धनता । के निम्न कारण दष्टिगोचर होते हैं –

(i) वर्ण-भेद: भारतीय समाज श्रमिक तथा मजदूर दो भागों में । विभाजित है। एक ओर महलों का सुख बड़े-बड़े धनिक लोग भोग रहे हैं उनके कुत्ते तक माल उड़ा रहे हैं, तो दूसरी ओर गरीबों के दुर्बल बच्चे रूखे-सूखे टुकड़ों को तरस रहे हैं।

(ii) जनसंख्या की असाधारण वृद्धि: आज देश की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है, न केवल व्यक्ति ही अपितु पशुओं की संख्या में भी अपार वृद्धि हो रही है। फातू पशुओं को चारा खिलाने में भी पर्याप्त उत्पादन क्षेत्र बेकार चला जाता है। इससे गरीब देश और अधिक गरीब होता चला जा रहा है।

(iii) राष्ट्रीयता का अभाव: आज भारत की जनता अपने राष्ट्रीय कर्तव्य को नहीं समझती है, आए दिन होने वाली हड्ताले इसका प्रतीक हैं। हम तोड़-फोड़ कर राष्ट्र की सम्पत्ति का विनाश करते हैं। इसके बनाने में पुन: धन का व्यय होता है जिससे गरीब अपने और आगे पैर बढ़ाती है।

(iv) भ्रष्टाचार: आज के भ्रष्टाचारी बड़े-बड़े व्यापारी विदेशों में अपने खाते खोल कर विदेशों का पेट भर भारत को और अधिक निर्धन बना रहे हैं।

कृषि व कुटीर उद्योगों की अविकसित अवस्था – यहाँ की कृषि वही प्राचीन ढंग लिये हुए दारिद्र्य का कारण बनी है। दुर्बल बैलों तथा साधारण हल का प्रयोग कम अन्न उत्पादन करता है। कच्चे तथा निर्मित माल के लिए बाजारों का उचित प्रबन्ध न होने से कुटीर उद्योगों का विकास भी नहीं हो रहा है।

गरीबी दूर करने के उपाय : गरीबी को दूर करने का प्रमुख साधन कृषि का विकास ही है। नये-नये वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से आज ‘ अधिक अन्न उपजाओ जग में यश-लाभ कमाओ’ के नारे को सार्थक करना चाहिए। कृषि प्रधान देश में यदि कृषि की दशा में सुधार हो जाए, तो आधी गरीबी स्वत: कूच कर जायेगी। हमें विदेशी ऋण न लेकर स्वावलम्बी बनना चाहिए और अथक परिश्रम करना चाहिए।

हम भारतीयों की नस-नस में आज राष्ट्रहित की भावना भर जानी चाहिए।

उपसंहार : हर्ष की बात है कि हमारी भारतीय सरकार आज कृषि के सुधार के साथ ही मूल्य निर्धारण करके साथ में तस्करों को मजा चखा रही है। हम सभी भारतीय सरकार को सहयोग देकर इस गरीबी के राक्षस को कमर कसकर अबकी बार भगा कर ही विराम लें।

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