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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aatankvad ki Samasya aur Samadhan”, “आतंकवाद की समस्या और समाधान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

आतंकवाद की समस्या और समाधान

Aatankvad ki Samasya aur Samadhan

                आज विश्व का आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। आतंकवाद का सबसे क्रूर सितम्बर 2001 में अमेरिका पर हुआ जिसने सारे विश्व को हिलाकर रख दिया। इसकी परिणति अफगानिस्तान के साथ युद्ध से हुई। इस घटना के लिए ओसामा बिन लादेन को जिम्मेदार ठहराया गया, जिसके षड्यंत्र के फलस्वरूप अमेरिका के प्रसिद्ध ’ट्विन टावर’ ध्वस्त हो गए और हजारों व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा था। इसी घटना के फलस्वरूप अमेरिका को आतंकवाद का घिनौना चेहरा वास्तविक रूप में नजर आया। यद्यपि भारत उसे अनेक वर्षो से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के बारे में लगातार सूचित कर रहा था, लेकिन उसने इसे कभी गंभीरता से लिया ही न था। 2008 में भारत के अनेक नगरों पर आतंकवाद हमले हुए।

                भारत गत 15-20 वर्षो से आतंकवाद का दुष्प्रभाव झेल रहा है। पहले पूर्वाेतर भारत में तथा फिर एक दशक तक पंजाब इसका केन्द्र बना। वहाँ हजारों बेगुनाह व्यक्ति मारे गए। इस आतंकवाद में पंजाब के कुछ गुमराह युवक भी शामिल थे। सरकार के काफी प्रयासों के पश्चात् वहाँ शांति का वातावरण बना। अब वहाँ शांति है तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह कार्य कर रही है।

                वर्तमान समय में आतंकवादी गतिविधियों का केन्द्र जम्मू-कश्मीर है। वहाँ एक प्रकार से पाकिस्तान छद्म युद्व कर रहा है। पाकिस्तान अपने देश के युवकों को लालच देकर और धर्म के नाम पर भड़काकर आतंकवादी कार्यवाहियों की ट्रेनिंग देता है और फिर उन्हें किसी भी तरह भारत की सीमा में प्रवेश करा देता है। पाकिस्तान के तथाकथित राष्ट्रपति द्वारा विश्व समुदाय को दिए गए शांति के आश्वासनों के बावजूद वह इस प्रकार की आंतकवादी हरकतों को बढ़ावा देने में संलग्न हैं। उसकी कथनी और करनी में भारी अंतर है। जम्मू-कश्मीर में प्रतिदिन किसी-न-किसी आतंकवादी हमले की सूचना पढ़ने-सुनने को मिल जाती है। इन दुष्प्रवृत्तियों ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों को बेअसर करने का हरसंभव प्रयास किया, पर वे सफल हो न पाए। वहाँ चुनाव ठीक-ठाक ढंग से संपन्न हो गए। इससे उनकी बौखलाइट और भी बढ़ गई।

                इन आतंकवादी घटनाओं के केन्द्र बदलते रहते हैं। जम्मू-कश्मीर में तो गतिविधियाँ चरम-सीमा पर हो ही रही हैं, इसके साथ-साथ देश के अनय हिस्सों को भी आतंकवादी अपना निशाना बना रहे हैं। 13 दिसम्बर, 2001 को भारत की संसद पर इन आंतकवादियों ने हमला बोल दिया। हमारे सुरक्षाकर्मियों के साहस और सुझ-बूझ से बहुत बड़ा हादसा टल गया। इसमें 6-7 सैनिक शहीद हुए तथा आतंकवादी मारे गए। आतंकवादियों की हिम्मत तो देखिए कि वे लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था तक जा पहुँचे। ये लोग अत्यंत सुनियोजित ढंग से आक्रमण करते हैं। मार्च 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आक्रमण किया गया तथा सिंतबर 2002 में गुजरात के ’अक्षरधाम’ मंदिर को निशाना बनाया गया। इसके पश्चात् 24 नवम्बर 2002 को रघुनाथ मंदिर मंे दो आतंकवादी फिर से घुस गए। इसमें 7 निर्दोष लोगों को जान गंवानी पड़ी तथा 55 व्यक्ति घायल हुए। मथुरा के मंदिर में भी उनकी हिट लिस्ट में हैं। इस प्रकार आतंकवादी भारत की सांप्रदायिक एकता को भंग करने के प्रयास में जुटे हैं। वे देश को धर्म के आधार पर बाँटकर अपना उल्लू सीधा करन चाहते हैं।

                2008 में जयपुर, अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली में सीरियल बलास्ट हुए। इनमंे सैंकड़ों व्यकितयों की जानें चली गई। सरकार केवल ब्यानबाजी करके और अफसोस प्रकट करके चुप रह जाती है। वह आंतकवादियों को सजा तक नहीं दे पाती। जिसके कारण आतंकवादियों के हौसले और भी बढ़ गए और उन्होंने सरकार की इसी कमजोरी का लाभ उठाते हुए 26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के रेलवे स्टेशन, होटल व गैस्ट हाऊस को निशाना बनाकर उनमें घुसपैठ की तथा गोलियों की बौछार कर दीं और सैंकड़ों लोगों तथा सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी। सरकार ने इस घटना को भारत पर हुआ सबसे बड़े आंतकी हमला बताया लेकिन फिर भी कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की।

                टातंकवाद की समस्या पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। तदर्थवाद से काम चलने वाला नहीं है। इन आतंकवादी संगठनों को निर्दयतापूर्वक कुचला जाना आवश्यक है। इसके साथ विभिन्न स्तरों पर अनेक बार शांति वार्ताएँ हो चुकी हैं जिनका परिणाम शून्य रहा है। भविष्य में भी इनसे कुछ विशेष उम्मीद नही ंकी जा सकती है, अतः इस प्रकार समस्या का समाधान खोलना अंधेरे मंे भटकना है। अधिकांश भारतीय चाहते हैं कि हमारी सेनाओं को गुलाम कश्मीर और पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरांे पर हमला कर नष्ट कर देना चाहिए। आतंकवादी गतिविधियों के प्रति किसी भी प्रकार का नरम रूख अपनाना आत्महत्या के समान होगा। आंतकवाद के नासूर का इलाज करना ही होगा। इस काम के लिए दृढ़संकल्प की आवश्यकता है। आतंकवाद देश की प्रगति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। यह हजारों लोगोें की बलि ले चुका है। भारत के दो प्रधानमंत्री इसके शिकार हो चुके हैं। सहनशक्ति की एक सीमा होती है, इसके बाद यह कायरता कहलाती है। दिनकर जी ने ठीक कहा है-

                                                सहनशीलता, क्षमा, दया को, तभी पूजता जग है।

                                                बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।

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