Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Swadesh Prem” , ”स्वदेश प्रेम” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Swadesh Prem” , ”स्वदेश प्रेम” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem

Best 4 Essay on ” Swadesh Prem”

निबंध नंबर : 01 

स्वदेश का अर्थ है अपना देश अर्थात अपनी मातृभूमि | यह वह स्थान होता है जहाँ हम पैदा होते है, पलते है और बड़े होते है | जननी तथा जन्मभूमि की महिमा का स्वर्ग से बढकर बताया गया है | जिस देश में हम जन्म लेते है तथा वहाँ का अन्न, जल, फल, फूल आदि खाकर हम बड़े होते है उसके ऋण से हम उऋण नही हो सकते है | मातृभूमि के महत्त्व को संस्कृति की इस कहावत में वर्णित किया है – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात जन्म देकर पालन-पोषण करने तथा प्रत्येक आवश्यक वस्तु प्रदान करने वाली मातृभूमि का महत्त्व तो स्वर्ग से भी बढ़ कर है | यही कारण है कि स्वदेश से दूर जाकर मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी भी एक प्रकार की उदासी व रुग्णता (Home sickness) का अनुभव करने लगते है |

स्वदेश प्रेम मानव में ही नही, पशु –पक्षियों तथा किट – पतंगो में भी निरन्तर तरंगित होता रहता है | पशु-पक्षी दिन भर दूर-दूर तक विचरण करने के बाद सांय को सूर्यास्त के बाद अपने – अपने स्थानों को लौट आटे है | विदेश में बैठे हुए व्यक्ति भी स्वदेश-प्रेम से पीड़ित रहते है | अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के सामने व्यक्ति अपने प्राणों तक के महत्त्व को तुच्छ मान लेता है | वह अपनी सभी सुख – सुविधाएँ यहा तक कि अपने प्राण भी उस पर न्यौछावर कर देने से नही झिझकता |

विश्व में अनेक ऐसे नर-रत्न हुए है जिन्होंने स्वदेश प्रेम के कारण हँसते हँसते मृत्य का आलिंगन किया है | इसी स्वदेश प्रेम की भावना से प्रेरित होने पर महाराणा प्रताप ने अनेको कष्ट शे तथा शहीद भगतसिंह हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर झूल गे थे | देश की रक्षा के लिए अपने तन-मन को न्यौछावर कर देने वाले व्यक्ति अमर हो जाते है | इसी स्वदेश प्रेम के कारण राष्ट्रपिता गाँधीजी ने अनेको कष्ट सहे, जेलों में गए तथा अन्त में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए | पं. जवाहर लाल नेहरु जी ने भी इसी राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत –प्रोत होकर अपने राजसी सुखो का त्याग कर दिया | इनके अतिरिक्त छत्रपति शिवाजी , रानी लक्ष्मीबाई , तांत्या टोपे, गुरु गोविन्दसिंह आदि वीरो ने भी हँसते- हँसते स्वदेश की रक्षा में अपने प्राण अर्पित कर दिए | जिस देश में ऐसे सच्चे देशभक्त होते है, उस देश का कोई बाल भी बांका कैसे कर सकता है ? हमारे देश की धरती अपने इन महान वीरो की स्मृति को अपने ह्रदय से छिपा कर रखेगी |

अंत : हम जिस देश में जन्म लेते है, पलते है तथा बड़े होते है उसके प्रति हमारा विशेष कर्त्तव्य हो जाता है | उस देश से हमे सच्चे ह्रदय से प्रेम करना चाहिए | तथा उसकी प्रगति के लिए अथक प्रयास करना चाहिए | यदि देश पर आपत्ति आती है तो हमे तन, मन और धन से सदैव तत्पर रहना चाहिए | यही कम सबका कर्त्तव्य है |

 

निबंध नंबर –  02 

 

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem

प्रस्तावना सारे संसार के लोगों में स्वदेश प्रेम का बहुत महत्व है। हम भारतवासियों में तो इसका महत्व कुछ और भी अधिक है। हमारे देश में तो माता और जन्मभूमि की महिमा को स्वर्ग से भी बढ़कर वताया गया है। जिस देश में हम जन्म लेते हैं, जिस देश की मिट्टी में पलकर बड़े होते हैं, जिस देश का अन्न, जल, फल, फूल, खाकर बड़े होते हैं, उसके ऋण से हम कभी मुक्त नहीं हो सकते। अत: हमें अपने देश की अधिक-से-अधिक सेवा वरनी चाहिये।

जन-जन में स्वदेश प्रेम की भावना-स्वदेश प्रेम मनुष्यों में ही नहीं, अपितु कीट-पतंगों एवं पशु-पक्षियों में भी होता है। विदेश में बैठे व्यक्ति भी स्वदेश प्रेम से पीड़ित रहते हैं। स्वदेश प्रेम की भावना से प्रेरित होने पर ही महाराणा प्रताप ने अनेकों कष्ट सहे, शहीद भगत सिंह हँसते-हँसते फांसी के फन्दे पर झूल गये। गाँधी जी ने भी अनेक कष्ट सहे, पर स्वदेश प्रेम पर अडिग रहे।

पं० नेहरू जी ने भी इसी भावना से ओत-प्रोत होकर अपने राजस्व को त्यागा। उन्होंने स्वदेशी को अपनाया। इनके अलावा अन्य कई महापुरुषों ने इसी स्वदेश प्रेम के कारण अपने-अपने प्राणों का वलिदान दिया। अत: जो इस प्रकार अपने देश के लिए अपना तन मन सच न्यौछावर कर देते हैं,  वे मरकर भी अमर हो जाते हैं।

उपसंहार – हमें भी अपने देश के लिए अथक प्रयास करने चाहियें। यदि देश पर विपति आती है तो हमें तन, मन, धन से सदैव उसकी रक्षा करनी चाहिये। यही सच्चा स्नश प्रेम हैं। स्वदेश का अर्थ है अपना देश। अपना देश वह है जहां इन्सान रहता हैं, जन्म लेता है जहां उसका पालन-पोषण होता है। जलयान पर रहने वाले पक्षी के लिए जलयान ही उसका ‘स्वदेश’ होता है। जलयान अथाह सागर में पड़ा डोलता और लहरों का सफर करता रहता है। जहाज का पंछी उड़कर, धूमधाम कर पुन: जहाज पर आकर बसेरा करता है। इसीलिए कहा गया है-‘ज्यों जहाज का पंछी, उड़ पुनि जहाज पर आवे।’ जब एक पंछी की यह प्रकृति है तो हम तो इन्सान हैं। हमें अपने देश से और भी अधिक प्रेम होना चाहिये। हमारा यह परम कर्तव्य होना चाहिये कि देश किसी आपदा में हो तो पूरे देश के नागरिक देश की आपदा को स्वयं की आपदा मानें और ऐसा देशवासियों ने पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश युद्ध के समय कर दिखाया। देश के वीर जवानों के लिए युवाओं ने अपना खून दिया तो महिलाओं ने अपने शरीर के आभूषण उतारकर देश की झोली में डालकर अपने स्वदेश प्रेम की भावना प्राणप्रण से उजागर की।

निबंध नंबर –  03

 

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem

स्वदेश प्रेम के द्वारा मानव को सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। इसकी तपस्या की अग्नि से निकलकर उसका जीवन कुन्दन बन जाता है और वह सेवा तथा परोपकार का हलाने लगता है। यह तो प्राणी मात्र की बपौती है। प्रत्येक प्राणी को अपने जन्म-स्थान से बहुत प्रेम होता है। पशु-पक्षी दिन भर किसी भी स्थान पर फिरते रहते सूर्य के अस्त होने पर अपने स्थानों को लौटने लगते हैं। उसी प्रकार विदेश में बैठे हुए मानव को स्वदेश प्रेम की याद सताया करती है, वह वहाँ पर बैठकर स्वदेश के काल्पनिक चित्र देखा करता है।

सैंकडों वर्षों की परतंत्रता के बाद अब हमारा देश स्वतन्त्र है। उसकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने  लिए बहुत से कार्य करने हैं। अनेक समस्याओं की उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाना है। बेकारी की समस्या का समाधान करना है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली के सब कार्य सच्चे देशभक्तों के द्वारा ही हो सकता है। वे ही सच्चे राष्ट्र के कर्णधार हैं। उन्हीं के बल पर राष्ट्र शक्तिशाली बन सकता है।

राष्ट्रनायक महाराणा प्रताप को ही लीजिए, जिसने तन, मन और धन से स्वदेश की रक्षा की। हिन्दू गौरव गुमान शिवा ने देश को परतंत्र करने वालों के छक्के छुडा दिए। पर आज के अणु युग में वैज्ञानिक आविष्कारों से ही देश शक्तिशाली बन सकता है। अतः प्रत्येक देश-भक्त को धर्म का पक्षपात छोड़कर स्वदेश के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।

इसी स्वदेश प्रेम के कारण राष्ट्रपिता गांधी ने अनेक कष्ट सहन किए और अन्त में उसी के लिए बलिदान हो गए। लोकनायक श्री जवाहरलाल नेहरू ने इसी के लिए आनन्द भवन का राजसी जीवन त्याग दिया था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने विदेश में बैठकर स्वदेश को स्वतंत्र करने के लिए फिरंगियों से युद्ध किया। वास्तव में ये लोग ही भारत माता के सच्चे सपूत बने।

हमारा कर्तव्य है कि स्वदेश को इतना उन्नत कर दें कि वह विश्व के उच्चतम राष्ट्रों में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सके। यदि हम इतना नहीं कर सकते हैं तो हमारा जीवित रहना व्यर्थ है और हमारी गणना पशुओं में की जा सकती है। अतः प्रत्येक को स्वदेश-प्रेमी होना चाहिए।

निबंध नंबर –  04

 

स्वदेश प्रेम

Swadesh Prem

 

स्वदेश प्रेम का अर्थ है-अपने देश से प्यार करना तथा उसकी उन्नति और रक्षा के लिए अपना तन, मन, धन मातृभूमि के चरणों में अर्पित कर देना । मातृभूमि के प्रति निष्ठा रखना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण है । वैसे भी जहाँ कोई व्यक्ति रहता है उस स्थान के साथ उसको स्वाभाविक ही प्यार हो जाता है । मनुष्य अपनी आजीविका कमाने के लिए चाहे जितना मर्जी अपने देश से दूर चला जाए फिर भी उसका मन अपने देश के लोगों से लगा रहता है और जब वह कभी विदेश से वापस आता है तो जो सुख, आराम और शान्ति उसे अपने देश में आकर मिलती है शायद उसे और कहीं प्राप्त नहीं होती। अंग्रेज़ी में कहावत है-East or west, home is the best. अर्थात् जो सुख छज्जू के चौबारे, वह बलख न बुखारे ।

अपनी मातृभूमि से प्यार करने की भावना मनुष्य में स्वाभाविक तौर पर होती है । जिस व्यक्ति में अपनी मातृभूमि के लिए प्यार नहीं है, वह मनुष्य मनुष्य न होकर एक पशु के समान है और उसका जीवन बिल्कुल अर्थहीन है । एक कवि ने ठीक ही लिखा है-

भरा नहीं जो भावों से, बहती जिससे रसधार नहीं

वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं

वह व्यक्ति जिसको अपने गौरव और देश के प्रति लगाव नहीं है वह व्यक्ति निरा पश के समान है और वह व्यक्ति बिना प्राणों के ही मानों सांस ले रहा है ।

देश की चहुँमुखी उन्नति के लिए स्वदेश प्रेम परम आवश्यक है । देश का सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए देशवासियों का देशभक्त होना नितान्त आवश्यक है । जो देशवासी देश के कल्याण में अपना कल्याण, देश के सुख समृद्धि में अपनी समद्धि समझते हैं वह देश निरन्तर उन्नति के पथ पर सदा अग्रसर होता है। इसलिए अपने देश से प्यार करना हमारा नैतिक कर्तव्य है । जिस देश के लोगों में देश का प्यार नहीं होता वह देश सदा गुलामी की जंजीरों में जकडा रहता है।

देशभक्त गुलामी की जंजीरों को काटने के लिए जेलों की यातनाएँ सहन करते हैं,फांसी के रस्सों को हंसते-हंसते चूमते हैं । हमारे देश का इतिहास ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। मुगल शासनकाल में महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी आदि देशभक्त वीर अत्याचारी शासकों के विरुद्ध युद्ध करते रहे । अंग्रेज़ों के शासनकाल में भी 1857 में लाखों वीरों ने अपने देश को स्वतन्त्र करवाने के लिए हंसते हंसते अपने प्राण बलिदान कर दिए । शायद उनके सामने एक ही लक्ष्य था, एक ही उद्देश्य था और वह था-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर प्यारी है ।

इसी प्रकार 1962 में चीन के साथ युद्ध के समय, 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारतीयों में देश प्रेम की भावना अद्वितीय थी । हाल ही में हुए कारगिल युद्ध में अनेक वीर भारतीय जवानों ने अपने प्राण न्योछावर किए।

हमारा यह परम कर्तव्य है कि हम देश भक्तों के मार्ग का अनुसरण करते हुए सच्चे अर्थों में सच्चे देश भक्त बनें। अपने स्वार्थ का त्याग करके यह सोचना चाहिए कि कुर्सी बड़ी है या देश? देश के हित के आगे सभी चीजें तुच्छ हैं। हमें सभी प्रकार की संकीर्णता से ऊपर उठकर केवल देश की खुशहाली और समृद्धि में अपना योगदान देना चाहिए और भ्रष्टाचार.जो देश की जड़ों को खोखला कर रहा है, को समाप्त करना चाहिए ।

अन्त में हम उन असंख्य वीर सैनिकों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने अपने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया । ऐसे देश भक्तों के लिए एक फूल की मार्मिक उक्ति भी उसके देश प्रेम को ही प्रदर्शित करती है-

मुझेतोड़लेनाबनमाली, उसपथपरदेनातुमफैंक

मातृभूमिपरशीशचढ़ाने, जिसपथजावेंवीरअनेक

जयहिन्दू ! जयभारत !

निबंध नंबर –  05

स्वदेश-प्रेम

Swadesh-Prem

स्वदेश-प्रेम की महत्ता

प्राणी मात्र का धन

राष्ट्र के कर्णधार

सच्चे सपूत

स्वदेश-प्रेम अपने आप में एक गौरव लिए हुए है। इसी के द्वारा मानव को सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। इसकी तपस्या की अग्नि से निकल कर उसका जीवन कुंदन बन जाता है और वह सेवा और परोपकार का देवता कहलाने लगता है।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

अर्थात माता और जन्म भूमि की महिमा स्वर्ग से बढ़कर होती है, जिस देश की धूलि में हम लोट-लोट कर बड़े होते हैं, जिसके अन्न और जल से देह की वृद्धि होती है, जिसके प्राकृतिक रम्य दृश्यों को देखकर आनंद-विभोर हो जाते हैं उससे हम कभी भी उऋण नहीं हो सकते। अत: स्वदेश की जितनी भी सेवा की जाए उतनी ही थोड़ी है। स्वदेश प्रेम तो प्राणी मात्र की बपौती है। जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने पर पशु-पक्षी भी अपने स्थानों को लौटने लगते हैं। उसी प्रकार विदेश में बैठे हुए मानव को स्वदेश-प्रेम की याद सताया करती है, वह वहीं पर बैठकर स्वदेश-प्रेम के काल्पनिक चित्र देखा करता है। स्वदेश-प्रेमी भी आज के युग में कितने ही प्रकार के देखे गए हैं। कुछ उनमें से केवल स्वदेश प्रेम का आडंबर ही बनाए रखते हैं और आपत्तिकाल में बगले झाँकने लगते हैं, लेकिन जो सच्चे भक्त होते हैं वे देश-हित कार्य में तन-मन और धन से लग जाते हैं। वे कठिन-से-कठिन यातनाओं को सहकर हँसते-हँसते स्वदेश की मान रक्षा के लिए फाँसी का आलिंगन कर लेते हैं। ऐसे ही भक्तों से देश गौरवान्वित होता है। सैकड़ों वर्षों की परतंत्रता के बाद अब देश स्वतंत्र हुआ है। उसकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ने कार्य करने हैं। अनेक समस्याओं की उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाना है, बेकारी का समस्या का समस्या का समाधान करना है वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोषों का निवारण करना है। ये सब कार्य सच्चे देश भक्तों के द्वारा ही हो सकते हैं। वे ही सच्चे राष्ट्र के कर्णधार हैं। इसी स्वदेश प्रेम के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अनेकों कष्ट सहन अंत में उसी के लिए बलिदान हो गए। ऐसे ही लोग वास्तव में भारत माता के सच्चे सपूत हैं। हमारा कर्तव्य है की स्वदेश को इतना उन्नत कर दें कि वह विश्व के उच्चतम राष्ट्रों में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सके, यदि हम इतना नहीं कर सकते हैं तो हमारा जीवित रहना व्यर्थ है और हमारी गणना पशुओं में की जा सकती है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

commentscomments

  1. Iishmeet says:

    Wow so awesome it is so essay

  2. Neha says:

    This essay is very good. When I read that essay I can feel love towards my india

  3. HARSHITA KULHARI says:

    only by commenting good and awesome, you can’t become a patriotic person like them who fought to save India and their motherland.

  4. Ashish togda says:

    This essay is very good because what we deserve for our country that all in it. It touch my heart

  5. Adityatiger says:

    Its good but not enough for me…..

  6. riddima singh says:

    it could have a few more points

  7. DIVYANSH Rai says:

    This essay is very very good because what ever we deserve for our country is listed all in it
    👌

  8. SUSHANT says:

    OWSOME

  9. Sathiya says:

    It was a nice and alot helpful for me ……
    👌👌👌

  10. Misbahul Haq says:

    That is nice and so helpful for me

  11. Roshan says:

    Mst essay awesome👍👍👌👌

  12. swara says:

    Mst h mere to hosh hi ud gaye.😐😇😀😢😐😀👍👌😀😇😐😋😃☺😊😧😧☺😃😋😎😊🙇😭

  13. Sanaya says:

    Wow! this easy was very good….. We have to care about our country our India our motherland. Who our country they are great people I salute to them we have save country It’s really touch to my I Love my country my country is the best 😘😘😍😍🥰🥰🥰😘😍😍😎😎😎🤩🤩

  14. Abhishek Singh says:

    Please write a essya on प्रेम और स्वार्थ

  15. Parul Sharma says:

    i love India

  16. Suraj says:

    Our motherland I’m proud of u jai hind it touch my heart

  17. Fouziya says:

    Wow there are three-three eeassy which help me to write assignments alot I 💖 it too much those who had written this eassy is a real swedesh premi like me and my family I love this eassy and my motherland India… WOW WOW WOW AWESOME 💝💝💝

  18. Fouziya says:

    Wow there are three-three eassywhich help me to write my assignments and even this eassys are very helpful for everybody. I💖it. Those who had written this eassys is real swadesh premi like me and my family…
    WOW WOW WOW …. AWESOME 💝💝💝💝💝

  19. Anwar Ali says:

    Right

  20. Hemant says:

    I love my country

  21. Aishwarya says:

    This essay was so helpful for me 😊
    By the way how many bts army are here 💜💜

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *