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Hindi Essay on “Sikh Dharm” , ”सिक्ख धर्म” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

सिक्ख धर्म

Sikh Dharm

सिक्ख धर्म कोई धर्म न होकर एक पंथ है, जिसके प्रवर्तक गुरु नानक देव हैं। यह हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है। कुछ लोग इसे अलग धर्म मानने की भूल करते हैं। गुरु नानक देव का जन्म सन 1469 में लाहौर प्रांत में रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालूचंद था। वे मुंशी के पद पर कार्यरत थे।

नानक जब कुछ बड़े हुए तब मौलवी कुतुबद्दीन ने उन्हें फारसी का ज्ञान कराया। मौलवी साहब सूफी संत थे। नानक ने फारसी के अलावा संस्कृत और हिंदी का भी ज्ञान प्राप्त किया।

अपने इस अध्ययन के साथ-साथ उन्होंने धर्म के विषय में भी अपना ज्ञान बढ़ाना शुरू कर दिया। जब उनके पिता को इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने पुत्र को घर-परिवार की स्थिति के बारे में समझाया। उन्होंने नानम को खाने-कमाने के लिए कोई काम शुरू करने के लिए कहा। इसका नानक पर कोई असर नहीं हुआ। इस स्थिति को समझते हुए पिता ने उनका विवाह कर दिया। विवाह के बाद भी उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखाई दिया। उनके पिता ने उन्हें एक नौकरी दिलवा दी, किंतु वे अपनी नौकरी के प्रति जरा भी जागरुक नहीं थे। वे नौकरी पर जाने की बताय पास ही के एक जंगल में जाते थे। वहां वे रामानंद और कबीर की रचनाओं को पढ़ा करते थे। इस प्रकार इन संतों की कही हुई बातों ने नानक की जीवन धारा ही बदल दी।

नानक जाति-पाति तथा मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे। नानक ने अपने धर्म में गुरू के महत्व को सर्वोच्च स्थान दिया है। उनका तर्क है कि इस एक ईश्वर की उपासना के लिए गुरु का होना अनिवार्य है। यही कारण है कि सिक्ख धर्म में गुरु परंपरा आज भी बनी हुई है।

अपनी बातों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए नानक ने दूर-दूर तक यात्रांए कीं। उनका प्रिय शिष्य मर्दाना उनके साथ रहता था। मर्दाना बहुत अच्छा भजन-गायक था। नानक अपने उपदेश से लोगों का मन मोह लेते थे। उन्होंने जगह-जगह अपने विचार रखे। गुरु नानक देव के विचारों से लोग बहुत प्रभावित हुए। उनकी यात्राओं में चार यात्राओं का बहुत ही महत्व है। वे बड़ी यात्रांए मानी गई हैं। उन्हें ‘उदासियां’ कहा जाता है।

सन 1538 में गुरु नानक देव की मृत्यु हो गई थी। नानक देव के बाद उनके शिष्य अंगद गुरु बने। सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने नानक के उपदेशों तथा रामानंद और कबीर की रचनाओं को ‘गं्रथ साहब’ नामक ग्रंथ में संकलित कराया। दसवें गुरु गोविंद सिंह ने इस ग्रंथ को गुरु का सम्मान दिया। तब से यह ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब कहलाता है। नौवें गुरु तेग बहादुर का मुगलों द्वारा शीश काटने के बाद गुरू गोबिंद सिंह ने अपने शिष्यों से कच्छा, कड़ा, कंघी, कृपाण और केश-ये पांच ककार धारण करने के लिए कहा। यही नहीं, उन्होंने सिक्खों को युद्ध के लिए तैयार किया। तभी से सिक्खों का एक संप्रदाय तैयार हो गया, जिसे खालसा नाम से जाना जाता है।

गुरु नानक देव का कहना था कि सभी धर्मों का सार एक ही है। उनके अनुसार-

‘अव्वल अल्लाह नूर नुमाया कुदरत दे सब बंदे।

एक नूर से सब जग उपज्या कौन भला कौन मंदे।।’

जिस प्रकार कबीर ने बाहरी दिखावे की भत्र्सना की है उसी प्रकार गुरु नानक देव ने समाज में फैले आडंबरों एंव द्वेषभाव की आलोचना की। गुरु नानक का कहना था-जो व्यक्ति ईश्वर की इच्छा के सामने अपने को समर्पित कर देता है, उसे उसका लक्ष्य प्राप्त हो जाता है।

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