Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Sahitya Samaj ka Darpan” , ”साहित्य समाज का दर्पण है” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Sahitya Samaj ka Darpan” , ”साहित्य समाज का दर्पण है” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

साहित्य समाज का दर्पण है

Sahitya Samaj ka Darpan

                                प्रस्तावना- भारत के प्राचीन साहित्य को चाहे हम देख, मध्य और आधुनिक काल के साहित्य पर हम नजर डाले- हर काल का साहित्य उस देश काल के समाज का दर्पण रहा है। विदेशी यात्रियों फाह्नान, मेगस्थनीज, ने भारत यात्रा करते समय जो कुछ अपने संस्मरण लिखें उससे उस समय की देश की आर्थिक स्थिति, सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था का पता आज आसानी से चल जाता है।

                                महान अर्थशास्त्री चाणक्य ने ‘चाणक्य नीति‘ में जो कुछ लिखा वह चन्द्रगुप्त मौर्य कालीन सभ्यता, राजव्यवस्थ्सा का आईना हमारे सामने प्रस्तुत करता है। मुगल काल में फिरदौसी का ‘बाबर नामा‘ मुगल काल की व्यवस्था और समाज का पता देता है। आधुनिक भारत में जो कुछ लिखा जा रहा है वह देश की तरक्की, खुशहाली की ओर बढ़ते कदमों की बात का पता देता है तथा जंगे आजादी के पूर्व जो कुछ लिखा गया अंग्रेजों की क्रूरता, निरंकुशता की जानकारी हम भारतवासियों को देता है।

                                इस प्रकार साहित्य द्वारा उस समय व चाल के अनुभवों एवं अनुभूतियों की अभिव्यक्ति होती है। अनुभूतियां साहित्यकार के अन्तमर्न के माध्यम से उत्पन्न होती है। कवि और साहित्यकार अपने युग-वृक्ष को अपने दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं को अपनी अनुभूतियों व्यक्त करते हैं जिससे नई पीढ़ियां उसके मधुर फल का आस्वादन कर सकें।

                                साहित्य का अर्थ- कवि एवं साहित्यकार द्वारा जिसमें उनके अन्तर्मन की भावना को व्यक्त किया जाता है, साहित्य कहलाता है। यह मानव के सामाजिक सम्बन्धों को अधिक शक्तिशाली, मजबूत एंव दृढ़ बनाने में मदद करता है, क्योंकि इसमें सम्पूर्ण मानव जाति का हित निहित रहता है। साहित्य द्वारा ही साहित्यकार अपने भावों एंव विचारों को समाज के सामने प्रस्तुत करता है।

                साहित्यकार का महत्व- आधुनिक युग में समाज के लिए साहित्यकार अत्याधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है, क्योेंकि ये हमारे समाज के मस्तिष्क और मुख है। साहित्यकारों की पुकार पूरे समाज की पुकार होती है।

                                साहित्यकार समाज के भावों और विचारों को अपने साहित्य में व्यक्त कर उन्हें अत्यधिक सजीव एवं शक्तिशाली बनाता है। उसकी रचना में समाज के भावों की झलक मिलती है। उसके माध्यम से ही हम समाज के हृदय तक पहुंचते है। मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास और कहानी सद्साहित्य में आते हैं जिन्हें पढ़ते हुए पाठक हर पृष्ठ पर उस काल की सामन्ती, जमीनदारी और साहूकारी व्यवस्था के दोषों से आक्रोशित हो उठता है।

                                साहित्य और समाज का पारस्परिक सम्बन्ध-साहित्य और समाज का सम्बन्ध कोई नया नहीं अपितु यह बहुत पुराना है। साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब है। बिना समाज की शोभा, उसकी यश सम्पन्नता एंव मान मर्यादा साहित्य पर ही अवलम्बित हैं इस प्रकार साहित्य समाज भिन्न नहीं हैं। ये दोनों एक ही है। यदि समाज शरीर है तो साहित्य उसका मस्तिष्क।

                                सामाजिक परिर्वतन और साहित्य- साहित्य और समाज का यह सम्बन्ध केवल मौखिक ही नहीं है। यह अटूट सम्बन्ध साहित्य के पन्नों में भी लिखित है। फ्रांस की क्रान्ति के जन्मदाता वहां के साहित्यकार रूसों और वाल्टेयर थे।

                एक बार हम फिर मुंशी प्रेमचन्द के साहित्य की ओर लौट कर आते है उन्होनें अपने उपन्यासों में भारतीय किसानों एवं उनके ग्रामीण जीवन की दुःखभरी दास्तान को जिस मार्मिक रूप से व्यक्ति किया है उसके जमींदारों द्वारा किसानों पर घोर अत्याचार को दिखाया जाता रहा है। जिससे क्षुब्ध होकर जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का जोरदार समर्थन हुआ। जिसकी वजह से जमींदारी प्रथा को समाप्त किया जा सका।

                साहित्य की शक्ति- निश्चित ही साहित्य में जो शक्ति विद्यमान होती है, वह तोप, तलवार में भी नहीं पायी जाती है।

                साहित्य द्वारा ही यूरोप में धार्मिक रूढ़ियों का अंत सम्भव हुआ। अन्य देशों का उत्थान भी उसी के माध्यम से हो सका। मुंशी प्रेमचन्द को ‘कलम का सिपाही‘ इसीलिए कहा गया क्योंकि उन्होनें अपनी लेखनी से जन-चेतना जगायी।

                                साहित्य का लक्ष्य- साहित्य हमारे आन्तरिक भावों को जीवित रखकर हमारे व्यक्तित्व को स्थिर रखता है। वर्तमान भारत में आज जो परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं, वे सब पश्चिम जगत को साहित्य की ही देन हैं।

                                पुराने समय में रोम ने यूनान पर राजनीतिक विजय प्राप्त की थी, किन्तु यूनान ने अपने साहित्य के माध्यम से रोम पर मानसिक एवं भावात्मक रूप से विजय प्राप्त की। इस प्रकार साहित्य की विजय निश्चित है जबकि शस्त्रों की अनिश्चित।

                                अंग्रेजी हुकूमत- शस्त्र द्वारा भारत को गुलाम नहीं बना सके। उन्होनें भारत को गुलाम बनाने के लिए अपने साहित्य के प्रचार हमारे साहित्य का ध्वंस किया।

                                यह उसी अंग्रेजी का प्रभाव है कि हमारे सौदंर्य सम्बन्ध विचार, हमारी कला का आदर्श, हमारा शिष्टाचार आदि सभी यूरोप की तरह ही होते जा रहे हैं। यदि भारत की संस्कृति और सभ्यता का प्राचीन विरासत को सुरक्षित रखना है तो मोरोपीय संस्कृति से किनाराकशी करके अपने प्राचीन भारतीय साहित्य का प्रचार-प्रसार करना होगा ताकि नई पीढ़ी के स्वस्थ मानसिकता मिल सके।

                                साहित्य पर समाज का प्रभाव- यह कथन बिल्कुल सत्य है कि साहित्य और समाज दोनों कदम से कदम मिलाकर चलते हैं। इस कथन की पुष्टि भारतीय साहित्य का उदाहरण देकर स्पष्ट किया जा सकता है। भारतीय दर्शन अत्यन्त सुखान्तवादी है। इस दर्शन के अनुसार मृत्यु और जीवन अनन्त हैं तथा इस जन्म मंे जो प्राणी एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं, वे अपने जन्म में अवश्य एक होते हैं।

                                भारतीय साहित्य के नाटक भी अत्यन्त सुखान्त रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से भारतीय साहित्य आदर्शवादी भावों से परिपूर्ण और सुखान्तवादी दृष्टिकोण पर आधारित है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अंग्रेजों की दासता से युक्त दिलाने के लिए ‘अंधेर नगरी चैपट राजा‘ नाटक लिखा। कुछ पृष्ठों के इस नाटक द्वारा लेखक ने इस बात का संदेश दिया कि अंग्रेज किस तरह के हुकूमत करने वाले शासक हैं।

                                उपंसहार- उपरोक्त बातों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि समाज और साहित्य मे आत्मा ओर शरीर जैसा सम्बन्ध होता है। समाज और साहित्य एक-दूसरे के पूरक है। किसी भी देश काल में जैसा समाज होता है वैसा ही साहित्य रचा जाता है। समाज के शोषण, अराजकता अन्याय से बचाने के लिए आदि काल से साहित्यकार जाररूक रहे हैं। जनचेतना जगाने के साथ-साथ राजसता चलाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान करते रहे हैं। महापंडित, आचार्य, लेखक चाणक्य का दृष्टांत सबके सामने हैं-नंद वंश के अत्याचार से राज्य की जनता को मुक्ति दिलाने के लिए चाणक्य ने न सिर्फ नंद वंश ने नंद शासन महानन्द को राजसता उखाड़ फेकी, चन्द्रगुप्त मौर्य को राजसता पर आसीन कर या बलिका ऐसे साहित्य की रचना थी। जिससे राज्य को अपने कर्तव्य को ज्ञान रहे और वह प्रजापालक बनकर राजसता को सम्भाल सकें।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *