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Hindi Essay on “Sadachar” , ”सदाचार ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

सदाचार – सच्चरित्रता

Sadachar – Sacharitrata

निबंध नंबर : 01 

सच्चरित्रता व्यक्ति का वह व्यवहार होता है जो किसी को हानि नही पहुँचाता, बल्कि जो सभी का हर प्रकार से शुभ एव हितकारी होता है तथा जिसके लिए कुछ भी छिपाने व मिथ्या भाषण की आवश्यकता नही पडती | सच्चरित्र वाला व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार से जीवन तथा समाज में सभी को शीघ्र एव सहज ही प्रभावित कर लिया करता है | इस कारण सभी लोग उसका सम्मान भी करते है तथा उसकी हर बात का विश्वास भी करते है |

कोई भी समाज व्यक्तियों के समूह से बना करता है | जिस समाज के सभी व्यक्ति चारित्रिक और नैतिक दृष्टि से अच्छे होते है वह समाज संसार से दुसरे के सम्मुख आदर्श स्थापित कर सकता है | सच्चरित्रता मानव के व्यक्तित्व का दर्पण है | हृदय की विशालता , त्याग, सेवाभाव, क्षमाशीलता ,विनय, ईमानदारी , सत्य भाषण, धैर्य, कर्त्तव्यपरायणता, कष्ट, सहिष्णुता , प्रतिज्ञा-पालन, आत्मसंयम तथा उदारता आदि गुणों का सामाजिक रूप ही चरित्र है | ऐसा गुणवान अथवा सच्चरित्र व्यक्ति ही विश्व को समृद्धि की राह दिखाता है |

चरित्र की वास्तविक कसौटी व्यक्ति के जीवन में आने वाली संकट की घड़ी है | जो मानव जीवन में आपदाओं से नही डरता है , वह समाज का अग्रणी नेता बनता है | परन्तु जो मानव किसी भी कारण से अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाता है , वह कायरो की भांति अपमानित होता है अर्थात उसका लोग – परलोक दोनों ही बिगड़ जाते है |

सच्चरित्रता के निर्माण का एकमात्र साधन सत्संगति है | चरित्र- निर्माण  के लिए सबसे उपयुक्त समय शैशवकाल व शिक्षण काल होता है | अंत : माता- पिता को अपने बच्चो का इस समय विशेष ध्यान रखना चाहिए | उन्हें सत्साहित्य पढने के लिए देने चाहिए | मनोरंजन के लिए शिक्षाप्रद चलचित्र दिखलाने चाहिएँ | कुसंगति से दूर रखना चाहिए | महापुरुषों के प्रवचन सुनाने चाहिएँ | तभी हम किसी व्यकित अथवा बालक को सच्चरित्र बना सकते है |

चरित्र बल जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है | जिस व्यक्ति का चरित्र नष्ट हो जाता है उसके पास कुछ नही बचता | तभी विद्वानों के ठीक ही खा है – ‘धन गया कुछ नही गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया परन्तु चरित्र गया तो सब कुछ गया’ | किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके नागरिको के चरित्र पर ही निर्भर करती है | देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के कुछ समय पश्चात से हमारे देशवासियों का निरन्तर चारित्रिक पतन होता जा रहा है | इसी कारण आज चारो और मूल्यहीनता ,आचार-विचार की भ्रष्टता आदि का राज कायम है | एक बार फिर से लोगो के चरित्र को ऊचा उठाकर ही आज के अराजकतापूर्ण वातावरण से छुटकारा पाया जा सकता है | अन्य कोई उपाय नही है |

 

निबंध नंबर : 02

सदाचरण

Sadacharan

                                मनुष्य के सर्वागीय विकास में उसके आचरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसका अच्छा आचरण उसे परिवार व समाज में विशेष स्थान दिलाता है। सदाचारी व्यक्ति का सभी आदर करते हैं तथा वह सभी के लिए प्रिय होता है। सदाचरण के बिना किसी भी समाज में मनुष्य प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता। सदाचारी होने के लिए यह आवश्यक है कि वह दुर्गुणों से बचे तथा सद्गुणों को अपनाए।

                                हमें सदैव सत्यवादी होना चाहिए। सभी मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति ईष्र्या तथा घृणा का भाव नहीं होना चाहिए। मनुष्य कर दूसरों के प्रति घृणा व ईष्र्या का भाव, दूसरे के प्रति अलगाव उत्पन्न करता है परंतु सदाचरण से दूसरों के हदय मे विशेष स्थान पाया जा सकता है। सदाचरण से परस्पर प्रेम व आदर-भाव बढ़ता है।

                                मनुष्यों को दूसरों के प्रति कभी भी इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए जिसे वह स्वयं के लिए पंसद नहीं करता हो। उसे दूसरों के प्रति नम्रता का व्यवहार रखना चाहिए। नम्र व्यवहार रखने के लिए किसी प्रकार की धन की आवश्यकता नहीं होती परंतु यह सत्य है कि नम्रता के द्वारा दूसरों के हदय पर स्थाई प्रभाव डाला जा सकता है।

                                सदाचारी व्यक्ति किसी भी कमजोर व वृद्ध की उपेक्षा नहीं करता है। वह यथासंभव उनकी मदद करता है। अपने से कमजोर व्यक्ति को वह यथोचित रूप में सहयोग कर उसे सामथ्र्यवान देखना चाहता है। वृद्ध के प्रति वह सदैव आदर-भाव रखता है तथा उनकी आवश्यकताओं के प्रति जागरूक रहता है।

                                छात्रों के लिए सदाचरण से तात्पर्य है कि वे अपने माता-पिता व गुरूजी का आदर करें तथा उनकी आज्ञा का पालन करें। अपने से कमजोर छात्रों तथा दीन-दुखियों की मदद करें। परस्पर ईष्र्या-भाव को त्याग कर मेल-जोल से रहें। यदि कोई उनकी किसी प्रकार से सहायता करता है तो उसके प्रति धन्यवाद का भाव रखें।

                                इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि मित्रों, संबंधियों व अन्य व्यक्तियों से बातचीत करते समय हमारी भाषा स्पष्ट, शुद्ध एवं मधुर हो ताकि दूसरों को वह अप्रिय लगे। वाणी की तीव्रता इतनी हो कि सामने वाला व्यक्ति आपकी बात को स्पष्ट रूप से सुन सके। यदि कोई हमारे प्रति कटु शब्द को प्रयोग करता है तो ऐसी परिस्थिति में भी हमें अपना आपा नहीं खोना चाहिए। मधुरता, प्यार, सहयोग व अपनेपन के द्वारा कठोर से कठोर हदय पर भी विजय पाई जा सकती है। यहाँ निम्नलिखित प्रसिद्ध दोहा उल्लेखनीय है –

                               ऐसी बानी बोलिए, मन का आप खोय।

                                औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। 

                सदाचारी व्यक्ति सदैव दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करता है। सभी परिस्थितियों में वह अपने सभी कर्तव्यों का निर्वाह करने का यथासंभव प्रयास करता है। वह ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था रखता है तथा स्वयं के लिए, अपने परिवाजनों व समस्त मानव जाति के कल्याण व उत्थान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है।

                                जीवन पर्यत सदाचरण में रहने वाला व्यक्ति जहाँ भी जाता है अपना एक अमिट प्रभाव छोड़ जाता है। वह सभी के लिए प्रिय एवं सम्मान का पात्र होता है। सदाचारी व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माता-पिता, वंश एवं राष्ट्र का नाम ऊँचा करते हैं। कृष्ण के कारण ही उनके माता-पिता एवं उनके वंश को प्रसिद्धि मिली। आर्दश पुत्र राम के कारण उनके माता-पिता धन्य हो गए।

 

निबंध नंबर : 03

सदाचार का महत्त्व

Sadachar ka Mahatva

प्रस्तावना- संसार को सभ्यता और संसार का पाठ पढ़ाने वाले देष के महापुरूष, साधु-संत, भगावान अपने सदाचार के बल पर ही संसार को शंति एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाने में सफल रहे। गौतम बुद्ध सदाचार जीवन अपना कर भगवान कहलाये-उनके विचार, आचरण और बौद्ध धर्म भारत से फैलता हुआ एषिया के अनेक देषों में पहुंचा। मनुष्य सदाचार की राह पकड़ कर मनुष्य से ईष्वर तुल्य हो जाता है।

                सदाचारी मनुष्य को सदा सुख की प्राप्ति होती है। वह धर्मिक, बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। सदाचार के बहुत से रूप हैं; जैसे माता-पिता और गुरू की आज्ञा का पालन करना उनकी वन्दना, परोपकार, अहिंसा, नम्रता और दया करना। इसीलिये नीतिकारों ने कहा है-

                                आचाराल्लभते हयायुराचारादीप्सिताः प्रजा।

                                आचाराद्धनमक्ष्यामाचारो हन्त्यलक्षणम््।।

                इसका अर्थ है-सदाचार से आयु और अभीष्ट सन्तान प्राप्न होती है। सदाचार से ही अक्षय धन मिलता है। सदाचार ही बुराइयों को नष्ट करता है।

                सदाचार का अर्थ-सज्जन शब्द संस्कृृत भाषा के सत्् और आचार शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ है-सज्जन का आचरण ! सत्य, अहिंसा, ईष्वर, विष्वास, मैत्री-भाव, महापुरूषों का अनुसरण करना आदि बातें, सदाचार में आती हैं। सदाचार को धारण करने वाले व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति दुराचारी कहलाते हैं। सदाचार का संधिविच्छद सद््$आचार बनता है। जो इन सबमें अच्छा है, वहीं सदाचारी है।

                दुराचारी व्यक्ति सदैव दुःख प्राप्त करता है-वह अल्पायु होता है और उसका सब जगह निरादर एवं अपमान होता है। सदाचाररहित व्यक्ति धर्म एवं पुण्य से हीन होता है।

                कहा गया है-“आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नही कर पाते।“

                सदाचारी व्यक्ति से देश, राष्ट्रय और समाज का कल्याण होता है। सदाचार से मनुष्य का आदर होता है, संसार में उसकी प्रतिष्ठा होती हैै। भारतवर्ष में हर काल में सदाचारी महापुरूष जन्म लेते रहे हैं।

                श्री रामचन्द्र मर्यादा पुरूषोत्तम, भरत, राणा प्रताप आदि सदाचारी यहां पुरूष थे। सदाचार से मनुष्य राष्ट्र और समाज का कल्याण करता है। इसीलिये हमें सदाचार का पालन करना चाहिये। मनु ने कहा है-

                “समस्त लक्षणों से हीन होने पर भी जो मनुष्य सदाचारी होता है, श्रद्धा करने वाला एवं निन्दा न करने वाला होता है, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है।“

                सदाचार का महत्त्व-भारतीय संस्कृृति पूरे भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस संस्कृति में सदाचार का विशेष महत्त्व है। जिस आचरण से समाज का सर्वाधिक कल्याण होता है, जिससे लौकिक और आत्मिक सुख प्राप्त होता है, जिससे कोई व्यक्ति कष्ट का अनुभव नहीं करता, वह आचरण ही सदाचार कहलाता है। सदाचार और दुराचार में भेद करने की सामथ्र्य केवल मनुष्य में है। पशु, कीट आदि में नही! इसीलिये नीतिकारों ने शास्त्रों में सदाचार था। पालन करने का निर्देश दिया है।

                सच्चरिता-सच्चरित्रा सदाचार का महत्त्वपुर्ण अंग है। यह सदाचार का सर्वोत्तम साधन है। इस विषय में कहा गया है-“यदि धन नष्ट हो जाये तो मनुुष्य का कुछ भी नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है पर चरित्रहीन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है।“

                शील अथवा सदाचार की महिमा हमारे धर्म-ग्रन्थों में अनेक प्रकार से की गई है। मह््ाभारत की एक कथा के अनुसार-एक राजा का शील के नष्ट होने पर उसका धर्म नष्ट हो गया, यश तथा लक्ष्मी सभी उसका साथ छोड़ गयीं। इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य सभी विद्वानों ने शील, सदाचार एवं सच्चरित्रता को जीवन में सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इसे अपना कर मनुष्य सुख-शान्ति पाता है समाज में प्रतिष्ठित होता है।

                धर्म की प्रधानता- भारत एक आध्यात्मिक देश है। यहां की सभ्यता एवं संस्कृृति धर्मप्रधान है। धर्म से मनुष्य की लौकिक एवं अध्यात्मिक उन्नति होती है। लोक और परलोक की भलाई भी धर्म से ही सम्भव है। धर्म आत्मा को उन्नत करता है और उसे पतन की ओर जाने से रोकता है। धर्म के यदि इस रूप् को ग्रहण किया तो धर्म को सदाचार का पर्यायवाची कहा जा सकता है।

                दुसरे शब्दों मेें सदाचार में वे गुण हैं, जो धर्म में हैं। सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिति सम्भव है। जो आचारण मनुष्य को ऊंचा उठाये, उसे चरित्रवान बनाय, वह धर्म है, वही सदाचार है। सदाचारी होना, धर्मात्मा होना है। इस प्रकार सदाचार को धारण करना धर्म के अनुसार ही जीवन व्यतीत करना कहलाता है। सदाचार को अपनाने वाला आप ही आप सभी बुराइयों से दूर होता चाला जाता है।

                सदाचार की शक्ति- सदाचार मनुष्य की काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार आदि तुच्छ वृृत्त्यिों से रक्षा करता है। अहिंसा की भावना जाग्रत होती है। इस प्रकार सदाचार का गुण धार करने से मनुष्य का चरित्र उज्ज्वल होता है, उसमें कत्र्तव्यनिष्ठा एवं धर्मनिष्ठा पैदा होती है। यह धर्मनिष्ठा उसे अलौकिक शक्ति की प्राप्ति में सहायक होती है। अलौकिक शान्ति को प्राप्त करके मनुष्य देवता के समान पूजनीय और सम्मानित हो जाता है।

                सदाचार  सम्पूर्ण गुणों का सार-सदाचार मनुष्य के सम्पूर्ण गुणों का सार है। सदाचार मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। इसकी तुलना में विश्व की कोई भी मूल्यवान वस्त नहीं टिक सकती। व्यक्ति चाहे संसार के वैभव का स्वामी हो या सम्पूर्ण विधाओं का पण्डित यदि वह सदाचार से रहित है तो वह कदापि पूजनीय नहीं हो सकता। पूजनीय वही है जो सदाचारी है।

                मनुष्य को पूजनीय बनाने वाला एकमात्र गुण सदाचार ही है। सदाचार का बल संसार की सबसे बड़ी शक्ति है, जो कभी भी पराजित नहीं हो सकती। सदाचार के बल से मनुष्य मानसिक दुर्बलताओं का नाश करता है तथा इसके बिना वह कभी भी अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए जीवन में उन्नति करना हो तो सदाचारी होने का संकल्प सवसे पहले लेना चाहिये।

                उपसंहार-वर्तमान युग में पाश्चात्य पद्धति की शिक्षा के प्रभाव से भारत के युवक-युवतियों सदाचार को निरर्थक समझ्ाने लगे हैं। वे सदाचार विरोधी जीवन को आदर्श मानने लगे हैं। इसी कारण आज हमारे देश और समाज की दुर्दशा हो रही है। युवक पतन की ओर बढ़ रहा है।

                बिगड़े हुए आचरण की रक्षा के लिए युवक वर्ग को होना चाहिये। उन्हें राम, कृृष्ण, युधिष्ठिर, गांधी एवं नेहरू के चरित्र आदर्श मानकर सदाचरण अपनाना चाहिये, अन्यथा वे अन्धकार में भटकने के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं कर पायेगे।

                सदाचार आचरण निर्माण का ऐसा प्रहरी है जो मन को कुविचारों की ओर जाने से रोकता है। मन की चंचलता पर मानव ने काबू पा लिया तो उसने पूरे विश्व को अपने काबू में कर लिया। स्वामी राम कृृष्ण नरमहंस, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द ऐसे सदाचारी पुरूष हुए हैं, जिन्होंने अपने आचरण और विचारों से पूरे विश्व को प्रभावित किया। जिस पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने में आज का युवा लगा हुआ है, उसी पाश्चात्य सभ्यता के देशों में जाकर स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचारों से वहां के बड़े-बडे विद्वानों को नतमस्तक होने पर विवश कर दिया। 

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