Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Prantiyata Ka Abhishap” , ”प्रांतीयता का अभिशाप” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Prantiyata Ka Abhishap” , ”प्रांतीयता का अभिशाप” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

प्रांतीयता का अभिशाप

Prantiyata Ka Abhishap

देश एक शरीर है, प्रांत उसका मात्र एक अंग है। देश एक समग्र दहाई है, तो प्रांत मात्र एक इकाई है। जिस प्रकार व्यक्ति समाज की सशक्त इकाई हुआ करता है, उसी प्रकार प्रांत किसी देश और राष्ट्र की एक सशक्त और जीवित इकाई माना जाता है। व्यक्ति की इकाइयां मिलकर समाज की दहाई का सृजन करती हैं। जैसे व्यक्तियों के मनमान व्यवहार और बिखराव से समाज का अस्तित्व टूट-बिखरकर समाप्त हो जाया करता है। उसी प्रकार प्रांतों के मनमाने व्यवहार और बिखराब की स्थिति में कोई एक देश या राष्ट्र भी अपनी स्वतंत्रता और अस्तित्व बनाए रख पाने में समर्थ नहीं हुआ करता। अत: समाज की सुरक्षा, विकास और उन्नति के लिए व्यक्तियों का सुसंगठित रहना जिस प्रकार अनिवार्य शर्त है, उसी प्रकार देश और राष्ट्र की सुरक्षा, विकास, उन्नति एंव अस्तित्व को जीवित  बना रखने के लिए सारे प्रांतों गा सुसंगठित एंव केंद्राभिमुख रहना भी अनिवार्य है। इसके बिना सुरक्षा, अस्तित्व और स्थायित्व का अन्य कोई उपाय नहीं, ऐसा सभी मानते हैं। स्वंय अपनी ही सुरक्षा के लिए ऐसा मानना। इन बातों का ध्यान रखना नितांत आवश्यक हो जाता है।

शरीर और उसके अंगों के समान ही देश अथवा राष्ट्र और प्रांतों की स्थिति रहा करती है। देश या राष्ट्र-रूपी शरीर की रचना प्रांत-रूपी अंगों के सुसमयोजन से ही संभव हुआ करती है। शरीर का कोई भी अंद यदि पीडि़त होता है, तो वेदना सारे शरीर को भोगनी पड़ती है। पेट को यदि शरीर का केंद्र मान लिया जाए, तो जिस प्रकार पेट की खराबी सारे शरीर को दूषित करके अनेक प्रकार के रोगों का कारण बन जाया करती है, विकृतियां पैदा कर देती है। उसी प्रकार यदि किसी देश का केंद्र अपय या अन्य प्रकार की दुर्बलताआों का शिकार हो जाए तो कष्ट सारे प्रांतों को भोगना पड़ता है। अत: केंद्र और प्रांत सीाी का स्वरूप सुनियोजित एंव परस्पर सुसंबद्ध रहना जरूरी है। किंतु विगत कुछ वर्षों से राजनीतिक या अन्य निहित स्वार्थों के कारण हमारे देश में प्रांतीयता की भावना एक अभिशाप बनकर उभरने लगी है, जिसे किसी भी दृष्टि और राष्ट्र की स्वस्थ सुदृढ़ता के संदर्भ में उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रवृति को रोका जाना चाहिए।

शारीरिक अंगों के समान ही देश की विशालता अंगभूत होने के कारण प्रत्येक प्रांत का समान महत्व है। प्रांतों की उन्नति, विकास और सभी प्रकार की स्थिरता पर ही देश की स्थिरता निर्भर करती है। प्रांतों की यदि कोई समस्यांए हैं, तो उनके निराकरण की आवाज उठाना उचित है, केंद्रों को उनका निराकरण प्राथमिक कर्तव्य के रूप में करना भी चाहिए। पर इसका अर्थ या छूट कदापि नहीं है कि देरी होने या किन्हीं आर्थिक आदि विवशताओं के कारण तत्काल निराकरण नहीं हो पाता, तो वे प्रांत स्वायतता, स्वतंत्रता या केंद्र की मुक्ति का नारा लगाने लगें। एक प्रांत दूसरे से अपने को अलग, महत्वपूर्ण, उच्च या विशिष्ट समझने लगे, यह भी कोई बात नहीं। सीमा या अन्य कुछ छोटे-मोटे प्रश्नों को लेकर प्रांतों में आपसी विवाद भी हो सकते हैं, पर इसका यह अर्थ तो नहीं कि उनमें से कोई प्रांत अपने को राष्ट्रीय धारा से अलग कर लेने की बात कहने लगे। इस विगत कुछ वर्षों से इस देश में इस प्रकार की प्रांतीयता को उजागर करने वाली घिनौनी बातें उठने लगी हैं। उन बातों को देश के स्वास्थ्य के लिए कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। एक समय था जब इसका सर्वाधिक घिनौना स्वरूप पंजाब में दिखाई दिया। आजकल कचहरी आदि में दीख पड़ रहा है। मुख्य रूप से ऐसी बातें सत्ता के भूखे कुछ स्थानीय लोग और ढाई ईंट की खिचड़ी पकाने वाले छुटभैया दल ही उठाया करते हैं। कभी वे भाषा की बात ले उड़ते हैं और कभी वे नदी, जल, प्रसारण या अन्यान्य महत्वहीन मुद्दों की बात लेकर सिर-फटौवल करते हैं। वे लोग यह भूल जाते हैं कि आज की परिस्थितियों में जब एक समुन्नत और विशाल राष्ट्र भी अकेला, अन्यों के सहयोग के बिना जीवित नहीं रह सकता, तो एक छोटा-सा, नगण्य और अविकसित-असमर्थ-स प्रांत कैसे अलग होकर अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है? अत: इस प्रकार की अलगाववादी भावनांए नहीं उठनी चाहिए। उठने पर तत्काल उनका गला घोंट दिया जाना चाहिए।

पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण हम किसी भी प्रांत के निवासी हो सकते हैं, पर हैं एक ही भारत नामक राष्ट्र-पुरुष के महत्वपूर्ण अंग। अत: सीाी प्रकार की अलगाववादी प्रवृत्तियों को निरस्त कर प्रयत्न यह करना चाहिए कि समूचा देश समान स्तर पर उन्नति और विकास करे, ताकि उसका समान लाभांश प्रांत और व्यक्ति होने के नोते हम सभी को प्राप्त हो सके। अंग रूप में कटकर हम अपनी हानि तो कर ही सकते हैं, राष्ट्र या देश-रूप शरीर को अपंग और कुरूप बनाने वाले भी सिद्ध हो सकते हें। अत: इस बारे में हर क्षण विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। इस प्रकार की जो शक्तियां विशेषकर देश के सीमांत प्रदेश में उभर रही हैं। वे फल-फूल कर नासूर बन पांए, इससे पहले भी उनका ऑपरेशन कर दिया जाना बहुत जरूरी है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *