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Hindi Essay on “Pradushan ka Prakop” , ”प्रदूषण का प्रकोप” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

प्रदूषण का प्रकोप

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Essay No. 01

प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है। इस समस्या में विश्व के सभी नगर त्रस्त हैं। विभिन्न कारणों से जल, वायु ध्वनि और मिट्टी का पारस्परिक संतुलन बिगडऩा ही प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने वाले तत्वों में विकास उत्पन्न होने के कारण प्रदूषण का जन्म होता है। वास्तव में मानव द्वारा औद्योगिक वैज्ञानिक चाहत ही प्रदूषण बढ़ाने में कार्यरत है। नगरों में तेजी से विकास हो रहा है और ग्रामीण जनसंख्या का इस ओर पलायन भी हो रहा है। जिसके कारण देश में अनेग नगर महानगर बन गए हैं तथा वहां जनसंख्या का अधिक अपनी चरम सीमा को भी पास कर गया है।

देश की जनसंख्या सौ करौड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, इसके बाद भी गति नहीं रुकी यद्यपि चीन की जसंख्या हमारे देश से अधिक है। परंतु वह दिन दूर नहीं जब हमारी जनसंख्या चीन को भी पीछे छोड़ देगी।

देश में बढ़ते नगर तथा महानगर तथा बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या को जन्म देती है। वह समस्या है – प्रदूषण की समस्या। जनसंख्या के इस दबाव का सीधा प्रभाव वायुमंडल पर पड़ता है। इस जनसंख्या के लिए धरती कम पड़ जाती है। जिसके कारण झुज्गी-झोपडिय़ां, स्लत तथा झोपड़-पट्टियों की संख्या महानगरों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन स्थाना में वायुमंडल इतना प्रदूष्ज्ञित हो जाता है कि सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु भी नहीं मिलती। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कानपुर जैसे अनेक नगर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं।

महानगरों में कई प्रकार का प्रदूषण है। इसमें सर्वप्रथम आता है- वायु प्रदूषण यह अन्य प्रकार के प्रदूषणों में सबसे अधिक हानिकारक माना गया है। महानगरों में वाहनों, कल कारखानों और औद्योगिक इकाइयों की बढ़ती संख्या के कारण वातावरण प्रदूषित हो जाता है। सडक़ों पर चलने वाले वाहन रोज लाखों गैलन गंदा धुआं उगलते हें। जब यह धुआं सांस द्वारा हमारे शरीर में जाता है तो दमा, खंसाी, टी.बी., फेफड़ों और हृदय के रोग कैंसर जैसे घातक रोगों को जन्म देते हैं। आवास की समस्या को हल करने के लिए इन महानगरों में वृक्षों की अनियंत्रित कटाई की जाती है। जिसके कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। वृक्ष इनकी कटाई हो जाने से वातावरण की अशुद्धता दूर करने का कोई रास्ता नहीं बचता।

महानगरों में जल भी एक गंभीर समस्या बन गया है नगरों में जल के स्त्रोत भी दूषित हो गए। नगरों के आस-पास फैले उद्योगों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ तथा रासायनिक कचरा जब नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है तो जल प्रदूषित हो जाता है और पीने योज्य नहीं रहता। इस प्रदूषित जल को पीने से पेट की अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म लेती हैं।

महानगरों में ध्वनि प्रदूषण भी कम नहीं होता। वाहनों तथा कल कारखानों से निकलता हुआ शोर, सघन जनसंख्या का शोर तथा ध्वनि विस्तारकों आदि का शोर ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण है। ध्वनि प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कान के रोग आदि हो सकते हैं।

भूमि प्रदूषण भी अत्याधिक मात्रा में बड़े-बड़े शहरों में पाया जाता है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में व्याप्त गंदगी भूमि प्रदूषण को जन्म देती है। झुज्गी-झोपडिय़ों में शौचालयों, स्नानघरों आदि के अभाव के कारण भूमि प्रदूषण बढ़ जाता है। भूमि प्रदूषण में मक्खी-मच्छरों का प्रको बढ़ जाता है। तथा स्वास्यि को गंभीर रूप से हानि पहुंचती है।

शहरों में बढ़े प्रदूषण को रोकना नितांत आवश्यक है। इसे रोकने के लिए सबसे पहले जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है। सरकार का प्रयास होना चाहिए कि गांवों में लघु उद्योगों का इस प्रकार विकास करे कि गांवों की जनसंख्या नगरों की ओर पलायन न करे। साथ ही औद्योगिक इकाइयों को शहरों से दूर लगाया जाना चाहिए तथा इनसे निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों ओर कचरे को नदियों में बहा देने वाली इकाइयों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने संबंधी कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए। नगरों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए तथा हरे-भरे वृक्षों को काटने पर रोक लगाई जाए।

 

प्रदूषण का प्रकोप

Pradushan Ka Prakop

Essay No. 02

प्रदूषण इस समय संसार की सबसे विकट समस्याओं में से एक है। यह मानव के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। इसने संपूर्ण संसार तथा मानव जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। प्रदूषण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण। यद्यपि सभी प्रकार के प्रदूषणों का सारा कारण स्वयं मनुष्य है। मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए समय-समय पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है। फलस्वरूप प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है तथा प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। जल हमारे जीवन का आधार है। बिना जल के पृथ्वी पर जीवन असंभव है। किंतु हम अपने कार्यों से जीवन के इस आधार को भी खत्म कर रहे हैं। विभिन्न कल-कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी, नालों का पानी आदि सब नदियों में बहा दिया जाता है। इससे नदियों का जल इतना प्रदूषित हो जाता है कि प्रयोग के योग्य नहीं रहता। जल-प्रदूषण के कारण ही गंगा नदी भी स्नान करने योग्य नहीं रह गई है।

मोटर गाड़ियों, कल-कारखानों की चिमनियों तथा बड़े-बड़े विद्युत उत्पादन केंद्रों से निकलने वाला धुआँ वायु को । प्रदूषित कर देता है। इस धुएँ से वातावरण में ऑक्सीजन गैस, जिससे हम प्राणी साँस लेते हैं कम हो जाती है तथा उसमें हानिकारक गैसें मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न वाहनों, कल-कारखानों की मशीनों से जो तेज । ध्वनि निकलती है, वह ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। इन प्रदूषणों के अतिरिक्त मृदा प्रदूषण तथा रेडियोधर्मी प्रदूषण भी मानव जीवन के लिए भयंकर समस्याएँ हैं।

जब हम भूमि में कृत्रिम खाद, पॉलीथिन, कूड़ा, गंदा पानी आदि दबा देते हैं तो मृदा प्रदूषण फैलता है। ये प्रदूषण मनुष्य में हृदय, फेफड़े, गुर्दे, मधुमेह, आँख, कान के रोग उत्पन्न करते हैं। प्रदूषण से बहरापन, उच्च रक्तचाप होना सामान्य बात है। अतः हमें प्रदूषण की समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए तथा इसका समाधान करना चाहिए। हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए। कल-कारखानों में सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन होना चाहिए। रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल कम-से-कम करना चाहिए। मोटर गाड़ियों तथा । अन्य वाहनों में धुएँ को कम करने के लिए समय-समय पर इंजन की सफाई होनी चाहिए। यातायात विभाग को अधिक मात्रा में धुआँ छोड़ने वाले वाहनों पर दंड लगाना चाहिए। यदि हम इस समस्या को गंभीरतापूर्वक दूर करने का प्रयास करेंगे तो अवश्य ही यह समस्या खत्म हो सकती है।

Essay No. 03

प्रदूषण

प्रदूषण एक ऐसी बड़ी समस्या है। जिसका मनाव आज सामान कर रहा है। इसे वातावरण में अत्यधिक बड़ी संख्या में जहरीली और अनचाही वस्तुओं के समावेश का नाम दिया जा सकता है।

वास्तव में यह तीन प्रकार का होता है- वायु, जल और मिट्टी। जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनोओक्साईड, कार्बन डाईआक्साईड, सल्फर डाईआक्साइड आदि वायु में छोड़ी जाती हैं। ये गैसें अनगिनत औद्योगिक इकाइयों और वाहनों द्वारा हवा में छोड़ी जाती हैं कि जिससे कि जीवनदायिनी आक्सीजन का संतुलन खराब हो जाता है। वायु इस प्रकार 3 दूषित होकर सांस लेने के लिए अनुपयुक्त हो जाती है और कई बीमारियों को जन्म देती है।

बेकार अशुद्धियोंयुक्त पानी उद्योगों द्वारा नहरों और समुद्र में छोड़ दिया जाता है। ये पानी को दूषित करने के इलावा जल जीवों, किनारे और पीने के पानी के स्रोतों को भी दूषित करते हैं। मच्छी जो इन दूषित पदार्थों पर जीवत रहती हैं अपने अन्दर ज़हर बना कर रहती है। जब मनुष्य इन मछलियों को खाते है तो ज़हर उन भी चला जाता है। खेतों में बहुत ज्यादा और बेपरवाही से डाली गई खादें और कीटनाशक ज़मीन को दूषित कर देती हैं। यह इस लिए कि पौधे एक मात्रा तक ही खाद और कीटनाशक वहन कर सकते हैं। फालतू मात्रा धरती में जा कर उसकी दुबारा उगाने की क्षमता को नाश करके धरती को बंजर कर देती है। आमतौर पर बारिश होने पर यह फालतू खाद और कीटनाशक बह कर पास के तालाबों और नालों में चली जाती है और उन्हें भी विषैली कर देती हैं।

एक नया प्रदूषण जिस से वायु, जल और धरती को खतरा है वह आणविक कचरा और उसका निकलना है। यदि किसी आणविक संस्थान पर कोई दुर्घटना होती है तो वहाँ से किरणें धरती, वायु, अनाज, पानी आदि पर आ जाती है। और उन्हें सभ्यता के लिए अनुपयोगी बना देती है।

ओज़ोन में आए खाली स्थान से मानवता और दूसरे प्राणियों को भी बहुत खतरा हो गया है। इसे अवश्य रोकना चाहिए। हालांकि अभी सब नष्ट नहीं हुआ है। अभी हाल की तरक्की में प्रदूषण को काबू करना सम्भव कर दिया और इक्लरेटी को अपनी उत्तमता पर लोटाना भी सम्भव कर दिया है।

इलैक्ट्रोस्टेटिक अवक्षिप्त पदार्थ या औद्योगिक स्राव, वाहनों के स्राव की दिशा मोड़ना, औद्योगिक गंदे पानी तथा तरल पदार्थों को पुनरूप देने वाले तथा शुद्ध करने वाले प्लांटस तथा कृषि सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए जैविक खादों और कीटनाशकों में कुछ सुधार करके, प्रकृति को उसकी शुद्धता लौटाने के कुछ उपाय हैं।

इन सभी सुधारों के साथ हमें केवल जनता की प्रगाढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है ताकि एक बार फिर हम साफ वातावरण में जी सकें।

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commentscomments

  1. reena bhalse says:

    i loved it.kiss! kiss!

  2. Abdul salam says:

    Amazing essay on pullation.

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