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Hindi Essay on “Olympic Khel Pratiyogita” , ”ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता

Olympic Khel Pratiyogita

                ओलम्पिक अन्तर्राष्टीय स्तर पर प्रत्येक चार वर्षों में आयोजित होने वाला विश्व का सबसे विशालतम खेल-मेला है जिसमें, विश्व के लगभग सभी देशाों के खिलाड़ी जाति, धर्म, राजनिति, भाषा एवं सम्प्रदाय का भेद-भाव भुलाकर एक जगह एकत्रित हो अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं। इन खेलों में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्तर के विजेताओं को क्रमाशः स्वर्ण, रजत एवं कांस्य-पदक प्रदान किया जाता है। ओलम्पिक में पदक जीतना खिलाडी़ एवं राष्ट्र दोनों के लिए गौरव का विषय है।

                ओलम्पिक का इतिहास काफी पुराना है। सर्वप्रथम 776 ई. पूर्व यूनान के नगर एथेंस के ओलम्पिया पर्वत की तलहटी में खेलों की एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। बाद में ओलम्पिया पर्वत के नाम पर ही इस आयोजन का नाम ओलम्पिक पडा़। समय के साथ-साथ इसकी परम्परा एवं स्वरूप में धीरे-धीरे संशोधन एवं परिवर्धन होते गए। अब ओलम्पिक सारे विश्व को अपने में समाहित किए हुए है। आधुनिक ओलम्पियन खेलों के आयोजन का मुख्य श्रेय यूनान-निवासी ’पियरे द कुबर्तिन’ को जाता है, जिनके अथक प्रयास के फलस्वरूप ओलम्पिक का वर्तमान विशाल स्वरूप विश्व के सामने हैं।

                ओलम्पिक का एक झण्डा है जिसक रंग सफेद है और इसमें आपस में जुडे़ पांच गोले अंकित हैं।  ये गोले पंाच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उद्घाटन के समय मशाल जलाकर हजारों कबूतरों को आकाशा में उड़ाया जाता है, जिसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं शांति का प्रतीक माना जाता है।

                आधुनिक ओलम्पिक का प्रथम आयोजन सन् 1896 में यूनान के एथेंस नगर में ही हुआ था। इसके बाद से प्रति चार वर्षो के अन्तराल पर विश्व के बडे़-बड़े नगरों में ओलम्पिक का आयोजन होता चला आ रहा है। अंतराल आया केवल दो बार, जब प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इन खेलों का आयोजन रद्द का देना पड़ा था।

खेल में हार और जीत का विशेष महत्व पहीं होता । महत्व होता है अनुशासन, भइचारे ओर इमानदारी का। 1996 ई. के आलम्पिक में इन्हीं कारणों से भारत को हाॅकी में ’फेयर प्ले एवार्ड’ मिला। जिस खेल-स्पर्धा में उŸाम खेल तकनीक के साथ-साथ जितना अधिक अनुशासन, ईमानदारी और बन्घत्व का भाव रहता है, उस खेल का उतना ही उत्कृष्ट माना जाता है। ओलम्पिक -आयोजन का उद्देश् खेलों के माध्यम से सारे जगत को एक सूत्र में जोडनस है। वस्तुतः ’वसुधैव कुटुम्बकम’ ही ओलम्विक का नारा है। 

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