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Hindi Essay on “Nishastrikaran” , ”निःशस्त्रीकरण” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

निःशस्त्रीकरण

Nishastrikaran

निबंध संख्या: 01

                निःशस्त्रीकरण का अभिप्राय है घातक शस्त्रास्त्र पर नियंत्रण रखना और शस्त्रों की बढ़ती संख्या को रोकना। विश्व-शांति का मूल उपाय निःशस्त्रीकरण में ही निहित है। आज विश्व शस्त्रों के अम्बार के नीचे दमघोंटू परिस्थिति में पड़ा हुआ है। विज्ञान ने इतने शक्तिशाली बमों का निर्माण कर लिया है कि विश्व की शांति के लिए खतरा पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री नेहरू ने आधुनिक अस्त्रो की भीषणता का वर्णन करते हुए कहा-’’आज के भीषण हाइड्रोजन बमों के सम्मुख एक-एक बम जो हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए थे, खिलौने के तुल्य हैं।’’ इन अणुबमों के विनाशक प्रभाव को हिरोशिमा और नागासाकी मे देखकर लोग कांप उठे थे। उसकी स्मृति से मानवता का कलेजा कांप उठता है, किन्तु जब वे शस्त्र आधुनिक शस्त्रों के सम्मुख खिलौने के तुल्य हैं, तो बड़े शस्त्र कितने भंयकर होंगे, हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

                जब इतने भंयकर शस्त्रों का निर्माण हो चुका और दिन-प्रतिदिन उनकी भंयकरता मंे वृद्धि होती जा रही है, तब मानव का चिंतित हो उठना नितान्त स्वाभाविक है। आज विश्व की समस्या युद्ध और शांति है। युद्ध शस्त्रों से ही लड़े जाएंगे और इन भयानक शस्त्रों का प्रयोग प्राणिजगत को रसातल में पहुंचा देगा। अतः विचारकों और शांतिप्रिय विश्व नेताओं का मत है कि मानवता की रक्षा के लिए अस्त्रों का विनाश आवश्यक है। निरस्त्रीकरण ही इस अशांति का एकमात्र उपाय है।

                द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका देखकर प्रत्येक राष्ट्र चिंतित हो उठा और शांति-स्थापना के लिए सभी ने सामूहिक प्रयास आरम्भ किए। 1945 में निरस्त्रीकरण का प्रश्न बड़े-बड़े राष्ट्रों द्वारा उठाया गया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने युद्धों की विभीषिका को रोकने के लिए ’संयुक्त राष्ट्र संघ’ की स्थापना की। सन् 1946 में आणविक शस्त्रों पर नियंत्रण रखने के लिए अणुशक्ति आयोग का गठन किया गया और 1947 में सशस्त्र सेनाओं और हथियारों को घटाने के लिए परम्परागत शस्त्रास्त्र आयोग बनाया गया। 11 जनवरी 1952 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निरस्त्रीकरण आयोग की स्थापना की। इसके कर्तव्य निम्नलिखित थे-

                सभी सशस्त्र सेनाओं और इस प्रकार के हथियारों के नियमन, उसकी सीमा और उसे संतुलित करना।

                जनसंहार के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले सभी बड़े अस्त्रों को नष्ट करना।

                अणुशक्ति का प्रभावकारी, अन्तर्राष्ट्रीय निरीक्षण करने के लिए ऐसे प्रस्ताव तैयार करना।

                निरस्त्रीकरण को लागू करने, राज्यों के सैनिक बजटों के स्थिरीकरण करने, परमाणविक अस्त्रों के प्रयोग की समाप्ति की घोषणा करने, युद्ध प्रचार पर प्रतिबन्ध लगाने, समाजवादी और पूंजीवादी देशों के बीच अनाक्रमण संधि सम्पन्न करने, दूसरे देशों के प्रदेशों से फौजों को हटाने, परमाणविक अस्त्रों के और भी अधिक प्रसार करने के विरूद्ध कदम उठाने, आकस्मिक आक्रमण को समाप्त करने के लिए कार्यवाहियां करने सम्बन्धी उपायों को क्रियान्वित करने की नितांत आवश्यकता है। जब तक ईमानदारी एवं सद्भावना से बड़े राष्ट्र निःशस्त्रीकरण का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इसमंे सफलता की आशा नहीं की जा सकती। पश्चिमी शक्तियों ने दोरंगी चाल अपनाई है। एक ओर वे विश्व-शांति-सम्मेलन में भाग लेकर ऊंचे आदर्श और विचार रख रहे हैं, दूसरी ओर अपने परमाणु शक्ति परीक्षण में सतत प्रयत्नशील हैं।

                बहुत प्रसन्नता का विषय है कि आज संसार के अनेक देश निःशस्त्रीकरण की समस्या और उसके महत्व पर गम्भीरता से विचार करने लगे हैं। निःशस्त्रीकरण के लिए आज के बुद्धिवादी मनुष्य को सबसे अधिक आवश्यकता है-सहानुभूति, करूणा, प्रेम, दया, भाईचारा तथा विश्व बन्धुत्व की जिसमें संसार मंे शांति का वातावरण उत्पन्न हो सके। राष्ट्रपति डाॅ. राधाकृष्णन के ये शब्द, जो परमाणु हथियार विरोधी सम्मेलन में भाषण देते हुए कहे थे, कितने तर्कयुक्त, सामयिक एवं गम्भीरतापूर्ण हैं-

                अतः निःशस्त्रीकरण आज की मांग है और आवश्यकता इस बात की सबसे अधिक है कि उचित निदान द्वारा विश्वजनित मतभेदों को भुलाकर अशान्ति का माहौल खत्म किया जाए। अतः निःशस्त्रीकरण वरणीय, ग्रहणीय, सराहनीय एवं श्लाघनीय है। 

 

निबंध संख्या: 02

निःशस्त्रीकरण

Nishastrikaran

निःशस्त्रीकरण का शाब्दिक अर्थ है, घातक शस्त्रों पर नियंत्रण रखना और शस्त्रों की बढ़ती संख्या को रोकना। निःशस्त्रीकरण का एक और पहलू है, वह है, शस्त्रों के प्रयोग पर नियंत्रण। विश्व-शांति का मूल उपाय निःशस्त्रीकरण में ही निहित है। आज विश्वशस्त्रों के अंबार के नीचे दमघोंट परिस्थिति में पड़ा हुआ दिखाई पड़ रहा है। विज्ञान ने इतने शक्तिशाली अस्त्रों का निर्माण कर लिया है कि विश्व की शांति के लिए खतरा पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री नेहरू ने अस्त्रों की भीषणता का वर्णन करते हुए कहा था- “आज के भीषण उद्जन बमों के सम्मुख, एक-एक बम जो हिरोशिमा एवं नागासाकी पर गिराए गए थे, खिलौने तुल्य हैं।” हम अणु बमों के विनाशक प्रभाव से आज भी कांप उठते हैं।

जब इतने भयंकर शस्त्रों का निर्माण हो चुका है और दिन-प्रतिदिन उनकी भयंकरता में वृद्धि होती जा रही है। तब मानव का चिंतित हो जाना नितांत स्वाभाविक है। आज विश्व की समस्या युद्ध एवं शांति है। युद्ध शस्त्रों से ही लड़े जाएंगे और इन भयानक शस्त्रों का प्रयोग प्राणि जगत् को रसातल में पहुंचा देगा। अतः विचारकों व शांति प्रिय विश्व नेताओं का मत है कि मानवता की रक्षा के लिए स्त्रों का विनाश आवश्यक है।

द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका देखकर प्रत्येक राष्ट्र चिंतित हो गया और शांति स्थापना के लिए उसने सामूहिक प्रयास आरंभ कर दिया। सन् 1945 में निःशस्त्रीकरण का प्रश्न बड़े-बड़े राष्ट्रों द्वारा उठाया गया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति मि. विलियम ने युद्धों की विभीषिका को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। सन् 1946 ई. में आण्विक शस्त्रों पर नियंत्रण रखने के लिए अणु शक्ति आयोग का गठन किया गया।

सन् 1947 में सशस्त्र सेनाओं तथा हथियारों को घटाने के लिए परंपरागत शस्त्रास्त्र आयोग बनाया गया। 11 जनवरी, 1952 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निःशस्त्रीकरण आयोग की स्थापना की।

इसके कर्तव्य निम्नलिखित थे-

  1. सभी सशस्त्र सेनाओं और इस प्रकार के हथियारों के नियमन, उनकी सीमा और उसे संतुलित करना।
  2. जनसंहार के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले सभी बड़े शस्त्रों को नष्ट करना।
  3. अणुशक्ति का प्रभावकारी अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण रखने के लिए ऐसे प्रस्ताव तैयार करना।

शांति के मनीषी निरंतर निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्नशील रहे। मार्च 1960 में जेनेवा में 2 बैठकें हुईं। लेकिन ये निष्फल रही।

निःशस्त्रीकरण को लागू करने, राज्यों के सैनिक बजट का स्थिरीकरण करके आधुनिक अस्त्रों के प्रयोग को समाप्त करने की घोषणा करने, युद्ध-प्रचार पर प्रतिबध लगाने, साम्यवादी और पूंजीवादी देशों के बीच अनाक्रमक संधि संपन्न करने और दसरे देशों के प्रदेशों से फौजों को हटाने पर आण्विक अस्त्रों के और भी पसार के विरुद्ध कदम उठाने, आकस्मिक आक्रमण को समाप्त करने के लिए कार्यवाहियां करने संबंधी उपायों को क्रियांवित करने की नितांत आवश्यकता है। जब तक ईमानदारी एवं सद्भावना से बड़े राष्ट्र निःशस्त्रीकरण का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक सफलता की आशा नहीं की जा सकती है। भारत ने पश्चिम देशों की दोरंगी चाल के कारण सी.टी.वी.टी. पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है।

आज संसार के अनेक देश निःशस्त्रीकरण की समस्या और उसके महत्त्व पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं। 16 जून, 1962 को गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा परमाणु विरोधी सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यह सुझाव दिया कि भारत स्वयं निशस्त्र होकर आदर्श प्रस्तुत करे। परंतु, परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी ने सावधान रहने के लिए मजबूर कर दिया है।

निःशस्त्रीकरण आज की मांग है और आवश्यकता इस बात की है कि उचित निदान द्वारा विश्वजनित मतभेद भुलाकर अशांति का माहौल खत्म किया जाए। अतः निःशस्त्रीकरण एक सराहनीय कदम है।

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