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Hindi Essay on “Nadi Ki Atamkatha” , ” नदी की आत्मकथा ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

नदी की आत्मकथा

निबंध नंबर : 01

मै नदी हूँ | मेरे कितने ही नाम है जैसे नदी , नहर , सरिता , प्रवाहिनी , तटिनी, क्षिप्रा आदि | ये सभी नाम मेरी गति के आधार पर रखे गए है | सर- सर कर चलती रहने के कारण मुझे सरिता कहा जाता है | सतत प्रवाहमयी होने के कारण मुझे प्रवाहिनी कहा गया है | इसी प्रकार दो तटो के बीच में बहने के कारण तटिनी तथा तेज गति से बहने के कारण क्षिप्रा कहलाती हूँ | साधारण रूप में मै नहर या नदी हूँ | मेरा नित्यप्रति का काम है की मै जहाँ भी जाती हूँ वहाँ की धरती , पशु- पक्षी , मनुष्यों व खेत – खलिहानों आदि की प्यार की प्यास बुझा कर उनका ताप हरती हूँ तथा उन्हें हरा- भरा करती रहती हूँ | इसी मेरे जीवन की सार्थकता तथा सफलता है |

आज मै जिस रूप में मैदानी भाग में दिखाई देती हूँ वैसी में सदैव से नही हूँ | प्रारम्भ में तो मै बर्फानी पर्वत शिला की कोख में चुपचाप , अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी | कुछ समय पश्चात मै एक शिलाखण्ड के अन्तराल से उत्पन्न होकर मधुर संगीत की स्वर लहरी पर थिरकती हुई आगे बढती गई | जब मै तेजी से आगे बढने पर आई तो रास्ते में मुझे इधर – उधर बिखरे पत्थरों ने , वनस्पतियों , पड़े – पौधों ने रोकना चाहा तो भी मै न रुकी | कई कोशिश करते परन्तु मै अपनी पूरी शक्ति की संचित करके उन्हें पार कर आगे बढ़ जाती |

इस प्रकार पहाडो , जंगलो को पार करती हुई मैदानी इलाके में आ पहुँची | जहाँ – जहाँ से मै गुजरती मेरे आस-पास तट बना दिए गए, क्योकि मेरा विस्तार होता जा रहा था | मैदानी इलाके में मेरे तटो के आस-पास छोटी – बड़ी बस्तियाँ स्थापित होती गई | वही अनेको गाँव बसते गए | मेरे पानी की सहायता से खेती बाड़ी की जाने लगी | लोगो ने अपनी सुविधा की लिए मुझे पर छोटे – बड़े पुल बना लिए | वर्षा के दिनों में तो मेरा रूप बड़ा विकराल हो जाता है |

इतनी सब बाधाओ को पार करते हुए चलते रहने से अब मै थक गई हूँ तथा अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसमे समाने जा रही हूँ | मैंने अपने इस जीवन काल में अनेक घटनाएँ घटते हुए देखी है | सैनिको की टोलियाँ , सेनापतियो , राजा – महाराजाओ , राजनेताओं , डाकुओ , साधू-महात्माओं को इन पुलों से गुजरते हुए देखा है | पुरानी बस्तियाँ ढहती हुई तथा नई बस्तियाँ बनती हुई देखी है | यही है मेरी आत्मकथा |

मैंने सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है | मै आप सभी से यह कहना चाहती हूँ की आप भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओ को पार करते हुए मेरी तरह आगे बढ़ते जाओ जब तक अपना लक्ष्य न पा लो |

निबंध नंबर : 02

नदी की आत्म-कथा

Nadi ki Atmakatha

नदी, नहर, सरिता, प्रवाहिनी, तटिनी. क्षिप्रा आदि जाने कितने नाम हैं मेरे। सभी नाम मेरे रूप रूप को नहीं, बल्कि गति को ही प्रकट करने वाले हैं। सर-सर सरकती चलती रहने कारण मुझे सरिता कहा जाता है। सतत प्रवाहमयी होने के कारण मैं प्रवाहिनी है और आम शब्दों में नहर हूँ मैं जी हाँ, नहर या नदी। कहीं भी पहुँच जाऊँ, वहाँ की , पशु-पक्षी आदि सभी प्राणियों, मनुष्यों और खेत-खलिहानों की प्यास बुझा, उनका, ताप हर, ठण्डा और फिर कुछ ही देर में हरा-भरा कर देना मेरा नित्य प्रति का काम है। यह काम करते रहने में ही मेरे जीवन की सफलता एवं सार्थकता है। मैं नदी जो हूँ।

मैं नदी हूँ। आज मेरा जो स्वरूप तुम सब को दिखाई दे रहा है, वह हमेशा ऐसा नहीं था। कभी मैं किसी सजला हरी और बानी पर्वत शिला की कोख में से तरह चुपचाप, अनजान और निर्जीव सी पड़ी रहती थी, जैसे माता कि कोख में किसी जीव का भ्रूण पड़ा रहा करता है। फिर समय आने पर जैसे प्रसव वेदना से करार कर नारी एक सन्तान को जन्म दिया करती है, उसी प्रकार पहाडी के उस शिलाखण्ड के अन्तराल से एक दिन मेरा जन्म हुआ। जैसे जन्म के बाद उसके रोने से सारा घर-प्रागण गूंज उठा करता है, उसी प्रकार शिलाखण्ड की गोद से मेरे उतरते ही वह सारी घाटी एक प्रकार के मधुर संगीत से, सरस सुरीली स्वर-लहरी की गूंज से जैसे गा उठी। बस मुझ में और मानव-सन्तान में अन्तर केवल इतना ही है कि वह जन्म लेने के तत्काल बाद चलने नहीं लगता, जबकि मैंने उसी क्षण चलना आरम्भ कर दिया। चलते हुए आगे-ही-आगे बढ़ती गई। पीछे रह गई धारा के रूप में मानो अपना आँचल फैला कर उसे मेरी धारा आँचल के साथ बान्ध कर मेरे साथ अपना सम्बन्ध तो बनाए रखा, साथ ही अपने प्रवाह-वेग से मुझे आगे-ही-आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा और उत्साह भी बाँधती रही।

मैं सरिता हूँ न, सो सर-सर सरकती ही गई। मेरे जन्म के सभी पहाडी शिलाखण्ड, इधर-उधर बिखरे पत्थर, इधर-उधर की वनस्पतियाँ, अखुए, पेड़-पौधे आदि मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरे आँचल को पकड़-थाम मेरी राह रोकने का प्रयास करने लगे, पर मैं कहाँ रुकने वाली थी। नहीं रुकी। कई बार किसी बड़े शिलाखण्ड ने आगे आ कर मेरा पथ रोकने की कोशिश की। तब मेरी कष-काया रुकती-रुकती हई-सी प्रतीत हुई. पर कुछ ही देर में मेरे भीतर जाने कहाँ से उत्साह भर आता कि अपने तन को संचित और शक्ति को उभार कर फिर आगे बढ़ आती। इसी प्रकार कई बार राह में आ कर कोई गड्डा, कोई खाई मुझे अंक में भर कर वहीं बैठी और मुझे बिठाए रखना चाहती; पर मैं उसकी बाँहो की गर्मी के कुछ क्षण तो सुख का अनुभव करती, फिर जैसे ऊब एवं घुटन का अनुभव करते हुए मैं उछल कर निकली और फिर आगे चलने लगी। कई बार ऐसे ही हुआ कि जैसे अकेली जाती छरहरी युवती को निहार मनचले छोकरे उस से छेड़खानी करने लगते हैं. उसी प्रकार घने जंगलों में से गजरते हुए अपनी लम्बी डालियाँ रूपी बाहें फैला कर राह में आने वाले वृक्ष मुझ नदी से छेड़-छाड़ करने लगते। अपनी सईसर्राह रूप में उन पर गुर्राती हुई आगे बढ़ती गई।

इस प्रकार पहाड़ों, जंगलों को पार करते हुए मैं मैदानी इलाके में आ पहुँची। जहाँ से भी गुज़रती, वहाँ मेरे आस-पास किनारे बना दिए जाने लगे। पटरियाँ भी बनने लगीं। ‘मेरे कदम निरन्तर आगे बढ़ते गए, निरन्तर मेरा पाट फैलता गया। उस पर वैसे ही किनारे, पटरियाँ, आदि बनाए जाते रहे। यहाँ तक मेरे तटों के आस-पास छोटी-बड़ी बस्तियाँ आबाद होती गई। गाँव बसे। मेरे पानी से सींची जाकर वहाँ खेती-बाडी भी होने लगी। जगह-जगह सुविधा के लिए लोगों ने मुझ पर छोटे-बड़े पुल बना लिए। कई स्थानों से मुझे काट कर छोटे नाले भी बना लिए, ताकि उनसे खेती-बाडी को सींचा जा सके। उस पानी का अन्य प्रकार से भी उपयोग सम्भव हो सके। जो हो, इस तरह अनेक स्थानों से गुजरती, अनेक बाधाओं को पार करती हुई मैं निरन्तर आगे-ही-आगे बढ़ती चली गई। आपने मुझे रोक कर मेरी कहानी सुननी चाही, सो मैंने चलते-चलते सुना दी।

अब मैं अपने प्रियतम सागर से मिलकर उसी में लीन होने जा रही हूँ। मैंने अपने आस-पास कई बार कई तरह की घटनाएँ भी घटते देखी हैं। सैनिकों की टोलियाँ, सेनापतियों, राजाओ-महाराजाओं, राजनेताओं, दंगाइयों, धर्मदूतों आदि को मैंने इन पुलों से गुजरते हुए देखा। राज्य परिवर्तित होते हए देखा है। पुरानी बस्तियाँ ढहते और नई बस्तियों बसते हुए भी देखी हैं। सभी कुछ धीरज से सुना और सहा है। मै आप सब से भी यही आगे बढ़ जाना चाहती हूँ। चाहती हूँ कि तुम लोग भी हर कदम पर आने वाली विघ्न-बाधाओं को पार करते लगातार मेरी ही तरह आगे-ही-आगे तब तक चलते-बढ़ते रहो कि जब तक अपना अन्तिम लक्ष्य न पा लो।

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commentscomments

  1. माऊली says:

    छान आहे आत्मकथा

  2. Nidhi says:

    It’s Nice

  3. Monika says:

    So Good

  4. Rupali says:

    Very very nice 👍

  5. चेतन says:

    मस्त आहे

  6. Aditya says:

    Its good essay guys

  7. Vishal says:

    REALLY A NICE STORY GUYS

  8. Anubhav kushwaha says:

    Very nice

  9. Vritti says:

    Nice one

  10. Bhoomi says:

    Its really nice

  11. Naman says:

    Very nice& useful

  12. Yogita says:

    Very nice 👍👌👍👌
    VERY NICE I LIKE THIS ESSSAY SO MUCH
    send or more nice essays

  13. Pratiksha Bhosale says:

    It’s been very helpful and useful to me thanks

  14. Gayatri pawar says:

    Very intresting and nice😊😊

  15. Mohd Aejaz says:

    It’s Nice

  16. Samir mulik says:

    it is very nice essay please send more essay

  17. Tanzila Quazi says:

    Thank you
    It is very nice

  18. Mamta gautam says:

    Very good
    “It is nice”

  19. MAYURI NATEKAR says:

    Very Nice 👍👌👍👌
    VERY NICE I LIKE THIS ESSAY SO MUCH. IT IS VERY MUCH INTERESTING ESSAY.

    THANK-YOU SO MUCH 😘😘

  20. jatin lamba says:

    THANK You SO MUCH
    I LIKE THIS ESSAY

  21. sakshee says:

    its very nice essay it helped me very much

  22. Prathmesh says:

    Awesome 🌟 🌟

  23. Reena says:

    Pls send stone’s autobiography

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