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Hindi Essay on “Mera Priya Kavi Kabirdas” , ”मेरा प्रिय कवि कबीरदास” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मेरा प्रिय कवि कबीरदास

Mera Priya Kavi Kabirdas

निबंध नंबर:- 01 

                हिन्दी साहित्य के अथाह समुद्र में अनेंक रत्न भरे पड़े है, पसन्द अपने-अपने मन की बात है। मैं जब कभी भक्तिकालीन संत कवि कबीरदास को पढ़ता हुँ तो मेरा मस्तक उनके सम्मुख श्रद्वा से नत हो जाता है तब मुझे वही संत सबसे अधिक प्रकाशवान् प्रतीत होता है। मेरे प्रिय कवि उस समय ज्ञान का दीपक लेकर अवतरित हुए, जब समस्त संसार अज्ञान के अंधकार मंे डूबा हुआ था। उन्होंने अपने ज्ञान-रूपी दीपक का प्रकाश जन-जन के कत्याण के लिए फैलाया।

                मेरे प्रिय कवि कबीर का जन्म 1339 ई. में काशी में हुआ। कहा जाता है कि दनका जन्म एक धिवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ और वह लोक-लाज के डर से इन्हें लहरतारा नामक तालाब के निकट छोड़ गई। नीम और नीरू नामक जुलाहा दम्पति ने इनका पालन-पोषण किया। इनकी शिक्षा-दिक्षा ठीक ढंग से नही हो पाई। इन्होने स्वयं लिखा है-

                                ’’मसि कागद छुऔ नांहि, कलम गही नहिं हाथ।’’

                मुझे कबीर का निडर स्वभाव बहुत भाता है। उन्होंने सामाजिक क्रांति का कार्य साहसिक ढंग से किया। उन्होंने तत्कालीन समाज में फैले हुए ढोंग, आडंबरों, जाति-पाति के भेदभाव  एवं अन्य कुरीतियों पर डटकर प्रहार किया। उन्होंने कहा-’’जाति-पाति पूछे न कोई, हरि को भजै सो हरि का होई।’’

                कबीरदास युग संधि पर पैदा हुए थे। उस समय समाज पर हठयोगियों, नाथपंथी साधुओं का बडा प्रभाव था। कबीर ने पक्षपात रहित होकर हिन्दुओं और मुसलमानों को उनके ढोंग-आडम्बरों के लिए फटकारा। तीर्थ, व्रत, माला फेरना, रोजा, नमाज आदि पर चोट की। उन्होने माला फेरने का विराध करते हुए कहा।

                                माला फेरत जुग भया, फिर न मन का फेर।

                                कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।

इसी प्रकार मुसलमानों के मस्जिद में अजान देने की रीति को व्यर्थ बताते हुए कहा-

’’कांकार-पत्थर जोरि के, मस्जिद लई बनाय।

ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।’’

                 कबीर के व्यक्तित्व में विरोधी तत्वों का समन्वय था। एक साथ ही वे हिन्दू भी थे और मुसलमान भी। संत भी वे थे और गृहस्थ भी। वे कवि और समाज सुधारक थे और समाज के विभिन्न वर्गो में एकता उत्पन्न करने वाले उपदेशक भी थे। उन्होंने स्वयं कोई धर्म-संप्रदाय नहीं चलाया, पर आज भी हजारों व्यक्ति स्वयं को कबीरपंथी कहने में गर्व का अनुभव करते है। इन्हीं विशेषताओं के कारण कबीरदास मेरे प्रिय कवि बने है।

                संतो और महात्माओं का सत्संग कबीर को बहुत अच्छा लगता था। संतों-महात्माओं से उन्होने बहुुत ज्ञान प्राप्त कर लिया था। अपने अनुभव से उन्हें जो ज्ञान मिलता था, उसे वे पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान से महत्व देते थे। उन्होंने स्वयं कहा है-

                                ’’पोथी पढि-पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।’’

                मेरे प्रिय कवि कबीर लोई नामक स्त्री से विवाह करके पूर्ण गृहस्थ बन गए थे। उनका गृहस्त -जीवन सुखी था। दोनों मिलकर अपना व्यवसाय चलाते थे। उनके एक पुत्र भी हुआ। उसका नाम कमाल था। जब वह बड़ा हुआ तो उसने परिवार के व्यवसाय को संभल लिया और कबीरदास धर्म के कामों में पूरी तरह लग गए।

                कबीरदास अपने गुरू का बड़ा सम्मान करते थे। मुझमें गुरू के प्रति श्रद्धा उन्हीं के इस दोहे के पे्ररणास्वरूप आई है-

                                ’’गुरू गोविंद दोऊ खडे, काके लागूँ पाँय।

                                ब्लिहारी गुरू आपने जिन गोविंद दियौ मिलाय ।’’

                उनका कथन था कि गुरू की कृपा से ही ईश्वर ज्ञान प्राप्त होता है।

कबीरदास का देहांत लगभग छः सौ वर्ष पूर्व हो गया था, फिर भी वे आज भी जन-जन के प्रिय कवि हैं। मेरे तो सर्वप्रिय कवि हैं ही।

निबंध नंबर:- 01 

मेरा प्रिय कवि

Mera Priya Kavi

हिंदी साहित्य अत्यंत समृद्ध है। हिंदी काव्य वाटिका में अनेक पुष्प विकसित हैं। हिंदी के कवियों पर दृष्टिपात करने के बाद यदि किसी ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया, किसी ने सर्वाधिक मेरे मानस-पटल पर अपनी छाप छोड़ी तो वे हैंसमाज-सुधारक संतकवि कबीर। कबीर ने अन्य महान कवियों की तरह न तो कोई महान काव्यों की रचना की तथा न ही उनकी भाँति शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की और न ही पारिवारिक संस्कार। कबीर का जन्म स्थान, समय, माता-पिता, शिक्षा दीक्षा आदि के संबंध में विवाद है। इनके जन्म के संबंध में तो अनेक किंवदंतियाँ हैं जिनमें एक जो सर्वाधिक प्रचलित है कि इनका जन्म एक विधवा के गर्भ से हुआ और एक जुलाहा दंपति ने इस बच्चे का पालन पोषण किया। निर्धनता के कारण कबीर पढ नहीं पाए तथा पिता के कार्य में हाथ बँटाने लगे। कबीर ने अपनी साखियों, सबदों आदि के दवारा तत्कालीन समाज से टक्कर ली। इस अशिक्षित जुलाहे के सामने बड़े-बड़े पंडित और मौलवी भी निरुत्तर हो जाते, क्योंकि कबीर के तर्कों का उनके पास कोई उत्तर नहीं होता था। मूर्ति-पूजा, जाति-पाति, छुआछूत, रूढ़ियों, अंधविश्वासों तथा ढोंग-ढकोसलों को जिस पैनी नज़र से कबीर ने देखा और जनता की भाषा में व्यक्त किया, वह अद्भुत है। कबीर ने अपनी वाणी द्वारा अंधविश्वासों और रूढ़ियों की जड़ों को हिलाकर रख दिया तथा ढोंग-ढकोसलों को ध्वस्त कर दिया। भारतीय समाज की अनेक कुरीतियों का संत कबीरदास ने अपने संदेशों से समाधान कर दिया।

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commentscomments

  1. prativa murmu says:

    This essay on “Mere Priya Kavi Kabirdas” is wow. whoever has written this essay from me Iam very thankful you that you memorise us the life story of kabirdas who has been greatest poet in the world.

  2. Essay Hindi says:

    बहुत बढ़िया आर्टिकल स्टूडेंट के लिए बहुत ही फायदेमंद, निबंध से परीक्षा में अच्छे मार्क्स पाने का अवसर होता हैं.

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