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Hindi Essay on “Mera Priya Kavi ” , ” मेरा प्रिय कवि ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मेरा प्रिय कवि

‘पसंद अपनी-अपनी’ यह कहावत हर क्षेत्र में समान रूप से लागू होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का यह सौभाज्य रहा है कि समय-समय पर इसमें काव्य रचने वाले महान और युगांतकारी कवि जन्म लेते रहे ह और आज भी ले रहे हैं। सामान्य रूप से वे सभी मुझे पसंद भी हैं। क्योंकि अपने भाव और विचार-जगत में निश्चय ही वे सब अपना उदाहरण आप हैं। उनकी वाणी युगानुरूप जनमानस को प्रभावित और प्रेरित करने वाली भी है। महान कवि जिन भावों और विचारों को अपनी कविता का विषय बनाया करते हैं, वे शाश्वत हुआ करते हैं, फिर भी मेरे विचार में महान कवि वही होता या हो सकता है कि जिसकी वाणी एक नहीं बल्कि प्रत्येक युग का सत्य बनकर सामान्य-विशेष सभी प्रकार के लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। सूर-तुलसी आदि मध्यकालीन तथा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर आदि आधुनिक कवि निश्चय ही इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। पर मेरा ध्यान जिस सरल ओर सीधे, मन में उउतर जाने वाली कविता रचने वाले कवि पर जाकर केंद्रित हो जाता है, उसका नाम है- संत कबीर। निश्चय ही मेरा प्रिय कवि कबीर ही है, कोई अन्य नहीं। भक्ति-क्षेत्र का कवि होते हुए भी जिन्होंने सर्व-धर्म समन्वय, उच्च मानवतावाद, भावनात्मक एकता, आडंबरों-पाखंडों के विरुद्ध मानवता की उच्च भावना को बढ़ावा देने वाला प्रबल स्वर अपनी सीधी-सादी भाषा में मुखरित किया, वह कबीर ही थे, अन्य कोई नहीं। आज का भी कोई कविव उनकी समानता नहीं कर सकता। है न आश्चर्य की बात।

अपनी अप्रतिम वाणी से युग-युगों पर छा जाने वाले मेरे इस महान और प्रिय कवि का जन्म संवत 1455 में हुआ माना जाता है। इस महामानव और महाकवि का जन्म कैसे, कहां और किन परिस्थ्तिियों में हुआ , मैं इस सारे विवाद में नहीं पडऩा चाहता, यद्यपि इस बारे में तरह-तरह के मत पाए जाते हैं। मैं तो बस यह मानता और जानता हूं कि कबीर पूर्णतया समन्वयवादी विचारों को लेकर भक्ति और काव्य साधना के क्षेत्र में आए थे। उसी का प्रचार-प्रसार उन्होंने अपनी भावनात्मक वाणी या सीधी-सादी कविता के माध्यम से किया था। वे शायद स्कूली शिक्षा भी नहीं पा सके थे। पर ‘प्रेम’ शब्द में केवल ढाई अक्षर होते हैं, यह जानकारी रखने वाला व्यक्ति अनपढ़ भी नहीं हो सकता, अशिक्षित तो कदापि नहीं। मेरे इस प्रिय कवि ने प्रेम के ढाई अक्षर को ही मानवता, विद्वता और पांडित्य का मानदंड मानते हुए कितने सहज भाव से कह दिया कि :

‘पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम के, पढ़ै सो पंडित होय।’

इससे बढिय़ा उदार और महान, विशुद्ध मानवतावादी संदेश देश-विदेश का भला अन्य कौन-सा कवि सारी मनुष्य जाति को दे सका है? किसी भी प्रका के जातिवाद, छुआछूत और मनुष्यों के बीच पनपने वाले भेद-भाव से उउन्हें चिढ़ थी। उन्होंने उस राम रहीम का प्रचार किया, जो घट-घट वासी है, सभी का अपना सांझा है, जिसे केवल भावना स्तर पर ही पाया जा सकता है। अन्य किसी भी स्तर पर नहीं, उसके बारे में मेरे प्रिय कवि ने डंके की चोट पर कहा :

‘कहत कबीर पुकार के अदभुत कहिए ताहि।’

कबीर ने पाखंडवाद से घिरे मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुसलमान किसी को भी नहीं बख्शा। धर्म के नाम पर किए जाने वाले व्रत-उपवास, रोजान-नमाज, पूजा-पाठ आदि को व्यर्थ बताकर अपने भीतर और सारी मानवता में प्रभु को खाोजने की प्रेरणा दी। सच्चे अर्थों में मेरा यह प्रिय कवि शुद्ध मानवतावादी था। व्यावहारिक स्तर पर आत्म-विश्वास और स्वावलंबर का भाव जगाने के लिए उन्होंने उच्च स्वरों में पुकार कर और दृढ़ आत्मविश्वास के साथ कहा :

‘करु बहियां बल आपणी, छांड़ पराई आस

जाके आंगन है नदी, सो कत भरत पियास।’

इस ढंग से, इतनी गंभीर बात सरल भाषा शैली में अन्य कौन सा कवि कह सका है। भला इससे बढक़र सहज आर्थिक समभाव का विचार संसार का बड़े से बड़ा कवि और अर्थशास्त्री कहां दे सका है :

‘साई इतना दीजिए जामैं कुटुम समाय।

मैं भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए।।’

इस प्रकार जीवन के लोक परलोक सभी पक्षों से संबंध रखने वाले प्रत्येक विषय का वर्णन जिस सहज, सरल भाषा-शैली में मेरा यह प्रिय कवि कबीर कर पाया है, निश्चय ही अन्य कोई नहीं कर पाया। मेरे इस कवि का स्वर्गवास काशी के पास मगहर नामग बंजर में संवत 1575 में हुआ माना जाता है। उसी समसामयिकता आज भी असंदिज्ध रूप से बनी हुई है। सारी मानवता को उदात्त मानवीय प्रेरणा दे पाने में समर्थ है।

 

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