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Hindi Essay on “Mahadevi Verma” , ”महादेवी वर्मा” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

श्रीमती महादेवी वर्मा

Mahadevi Verma

अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’कहने के कारण आधुनिक मीरा के नाम से जानी और मीरा ही मानी जाने वाली, प्रेम और वेदना की अनुभूति-भरी कवयित्री श्रीमती महादेव वर्मा हिंदी-साहित्य की एक महानतम उपलब्धि हैं। इनका जन्म सन 1907 में फर्रूखबाद के एक धार्मिक और एक संपन्न परिवार में हुआ था। पिता नामी वकील थे और माता ममता करूणा से भरी सह्दय गृहस्थ नारी। इनकी शिक्षा पहले जबलपुर और फिर इलाहाबाद में हुई। संस्कृत-साहित्य में एम.ए. करने के बाद प्रयास महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनकर कार्य करने लगी। शिक्षा जगत में कार्य करने के साथ-साथ समाज और साहित्य-सेवा भी आरंभ से ही करती रहीं। इस कार्य के लिए इन्होंने कुछ सामाजिक और साहित्यिक संस्थांए भी स्थापित कीं। वहां आने वाले प्रत्येक को मां और बहन का दुलार दिया। वे संस्थांए आज भी बनी रहकर इनकी यशोगाथा कह रही हैं।

महादेवी जी का विवाह छोटी आयु में ही हो गया था, पर घर-गृहस्थी के कार्यों में जन्म से ही रूचि न होने के कारण यह पति-गृह में कभी भी न रहीं। विवाह-संबंध सदभावना और स्वेच्छा से त्यागकर यह साहित्य, समाज और शिक्षा जगत की सेवा में दत्तचित हो गई। इनका स्वर्गवास 11 सितंबर 1987 को हो गया।

अपने शिक्षा-काल और छोटी आयु में ही इन्होंने कविता रचना शुरू कर दिया था। छोटी कक्षाओं में ही गांधी जी पर कविता रचकर उन्हीं के हाथों से इन्होंने पुरस्कार प्राप्त किया था। बाद में गांधीवादी आंदोलन में सक्रिय भाग भी लेती रहीं। कहा जा सकता है कि इनके द्वारा निर्धनों की सेवा-सहायता और ग्राम-शिक्षा का कार्य करने के मुल में गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों की प्रेरणा इनकी कविता का स्वर छायावादी चेतना से मुखरित हुआ था और अंत तक इन्होंने अकेले अपने ही दम से छायावादी काव्यधारा को बचाए तथा बनाए रखा था। इनके प्रकाशित काव्य-संकलनों के नाम हैं-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, दीपशिखा। इनकी ‘यामा’ और ‘संधिनी’ नामक रचनाओं में इनके प्रतिनिधि गीतों के संकलन हैं। ‘नीरजा’ पर इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से ‘सेक्सरिया पुरस्कार’ और ‘यामा’ पर ‘मंगलप्रसाद पारितोषिक’ भी प्राप्त हो चुका था। उत्तर प्रदेश के साहित्य-जगत ने भी एक लाख का पुरस्कार प्रदान कर इस महान कवयित्री और महामहीम नारी के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया।

कवयित्री होने के साथ-साथ यह एक कुशल चित्रकार और संगीतज्ञ भी थीं। संगीत का परिचय तो इनकी प्रत्येक कविता से मिल जाता है कि जिन्हें गीति-काव्य का श्रेष्ठ उदाहरण कहा जाता है। ‘दीपशिखा’ नामक रचना की प्रत्येक कविता के साथ भावानुकूल दिया गया चित्र इनके कुशल चित्रकार होने का मुंह बोलता गवाह है। इस सबके अतिरिक्त वह ‘चांद’ मासिक का संपादन कर कुशल संपादिका होने का परिचय भी दे चुकी थीं। गद्य-साहित्य के क्षेत्र में इन्हें एक प्रमुख शैलीकार माना जाता है। इनके लिखे शब्द-चित्र या रेखाचित्र या केवल हिंदी बल्कि विश्व-साहित्य की अजोड़ निधि माने जाते हैं। ‘अतीत के चलचित्र’ , ‘स्मृति की रेखांए’, ‘पथ के साथी’ और ‘श्रंखला की कडिय़ां’ आदि इनकी प्रमुख गद्य रचनांए हैं। इनका गद्य अपनी भावुकता, भावना ओर प्रवाहमयता के कारण वस्तुत: कविता-सा ही रोमांच उत्पन्न करने वाला है। इसी कारण गद्य के क्षेत्र में इन्हें एक प्रमुख शैलीकार स्वीकार किया जाता है। क्या काव्य क्षेत्र और क्या गद्य-क्षेत्र, दोनों पर इनकी अमिट छाप आज भी रेखांकित की जाती है। गद्य-रचनाओं में इन्होंने नारी की वेदना को तो विशेष मुखरित किया ही, उसकी स्वतंत्रता का समर्थन भी किया।

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