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Hindi Essay on “Kartavya” , ”कर्त्तव्य- पालन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

कर्त्तव्य- पालन

निबंध नंबर : 01

संसार में सभी मनुष्य अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सत्कार्य करते है | इस प्रकार के सत्कार्य ही उनके कर्त्तव्य कहलाते है | तथा इनका भी प्रकार पालन करना ही कर्त्तव्य –पालन कहलाता है | हमारे कर्त्तव्य-पालन करते रहने से संसार की व्यवस्था बनी रहती है | इनसे समाज की रीति-नीतियों बनी रहती है | कर्त्तव्य-पालन से ह हमारे जीवन में सच्चरित्र गुणों का समावेश हो पाता है | यदि मानव अपने जीवन में अपने कर्त्तव्यो का पालन भली प्रकार करता रहता है , तो वह अजर-अमर बन जाता है | पिता-पुत्र, शिक्षक-शिक्षार्थी , राजा-प्रजा सभी अपने कर्त्तव्यो के सूत्र में बंधे हुए है | ये सभी अपने –अपने कर्त्तव्यो का पालन करते हुए एक दुसरे के निकट आते है और अपने समाज व राष्ट्र का उत्थान करते है |

परिवार , समाज, राष्ट्र और विश्व की प्रगति का एकमात्र आधार कर्त्तव्य –पालन है | कर्त्तव्य-पालन से ही मानव के जीवन की अनेक समस्याओ का समाधान हो पाता है | समाज में उसकी यश-पताका फहराती है | कर्त्तव्य-पालन करने वाला मानव ही अधिकारों को पाने में सक्षम हो पाता है इनके अतिरिक्त आत्मतुष्टि, परहित, सहनशीलता व आत्मविश्वास आदि सद्गुण भी इसी कर्त्तव्य पालन की देन है |

कर्त्तव्य – पालन का गुण मानव में ही नही प्रकृति में भी सदैव से देखने को मिलता है | सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र नित्य सृष्टि को प्रकाश प्रदान कर अपने कर्त्तव्य का पालन करते रहते है | इसी प्रकार जल और वायु  प्राणी को जीवन प्रदान करते है , धरती अनेक प्रकार के पदार्थो की पूर्ति करती रहती है | यह परम्परा प्रकृति के आरम्भ से चली आ रही है | इस परम्परा को निभाने वालो के अनेक उदाहरण है – जैसे महर्षि दधीचि का अस्थिदान, दानवीर कर्ण का कुंडल-कवच दान, महाराजा शिवि का मास दान, महादेव का विषपान, योगिराज कृष्णा का गीतोपदेश तथा महात्मा गांधी का आत्म-बलिदान आदि | इस प्रकार के कर्त्तव्य – परायण व्यक्तियों के अनेक उदाहरण हमारे इतिहास से भरे पड़े है |

कर्त्तव्य – पालन जीवन की वह सार्थकता है जिसकी महत्ता का बखान विश्व के कोने – कोने में किया जाता रहा है और भविष्य में भी किया जाता रहेगा | कर्त्तव्य-पालन से विमुख होने वाला व्यक्ति अपने अधिकार पाने का भी अधिकारी नही रह पाता | यदि हम दुसरे राष्ट्रों के समान अपने राष्ट्र को भी आगे बढ़ाना चाहते है तो हमे निरन्तर अपने कर्त्तव्यो के पालन में लीं रहना चाहिए | यही इसका एकमात्र रास्ता है |

निबंध नंबर : 02

कर्तव्य-पालन

मानव का यथाशक्ति और आवश्यकतानुसार कार्य करना ही उसका कर्तव्य-पालन हलाता है। मानव जीवन कर्तव्यों का भण्डार है। उसके कर्तव्य उसकी अवस्थानुसार छोटे और बड़े होते हैं । इनको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास, आत्मिक शान्ति और यश मिलता है। बचपन में माता-पिता तथा परिजनों की आज्ञा मानना ही कर्त्तव्य कहलाता है। विद्यार्थी-जीवन में गुरु की आज्ञा ही उसका कर्तव्य बन जाता है। युवावस्था में उसके कर्तव्य परिजनों, पड़ोसियों के अतिरिक्त राष्ट्र के प्रति भी हो जाते हैं। उसके कन्धों पर साज और राष्ट्र की उन्नति का भार आ पड़ता है, उसे स्वयं या अन्य कृपाल व्यक्तियों केदारा अशिक्षितों के लिए विद्यालय, प्रौढ़ शिक्षालय, समाज केन्द्र और रोगियों के लिए अस्पताल खुलवाने पड़ते हैं। उसे देश की कारीगरी, कला-कौशल और व्यापार की उन्नति नी पडती है। उसका जीवन सदा त्याग, तपस्या और सेवा भाव में लिप्त रहता है।

जिस प्रकार प्रत्येक शासक का कर्तव्य अपने शासितों की रक्षा करना है, उसी प्रकार उनका कर्तव्य भी उसकी मंगल कामना करना है। शिक्षक का कर्तव्य अपने छात्रों के हृदय पर से अज्ञानता का आवरण हटाकर उन्हें आदर्शवादी बनाना है। यही सब मानव के कर्तव्य हैं। इनको पूर्ण करने के लिए उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसको प्राकृतिक शक्तियाँ अपने कर्तव्यों का पालन करती हुई पूर्ण सहयोग देती हैं। इस पर भी जो कर्तव्य के पथ से विचलित हो जाता है, उसका समाज में निरादर होता है और उसका अपयश सर्वत्र फैल जाता है जो मानव लज्जा, भय, निन्दा और विघ्नों की चिन्ता न करके अपने-अपने कर्तव्य पालन पर दृढ रहते हैं, वे अपने जीवन में सफल होते हैं।

कर्तव्य-पालन करने वाले व्यक्ति का अन्तःकरण स्वच्छ और सरल हो जाता है। वह साहसी और निर्भीक हो जाता है। उसके जीवन में उत्साह और आकाँक्षाओं की लहरें कल्लोले मारने लगती हैं। उसके शत्र उससे कोसों दूर भाग जाते हैं। उसकी विघ्न-बाधाएँ उसके मार्ग को छोड़ देती हैं। उसका सम्मान सर्वत्र होता है। वह महापुरुषों के रूप में पुजा जाता है। उसकी शक्ति पर लोगों को विश्वास होता है। पन्ना धाय ने अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान कर दिया था। कर्तव्यपरायण प्रताप कष्टा को सहन किया. पर मुगलों के सामने नतमस्तक नहीं हुए। श्री राम ने यणता से वशीभूत होकर गर्भवती सीता का परित्याग किया। लक्ष्मण ने भाई की आज्ञा को कर्तव्य समझकर पालन किया। राष्ट्रपिता गांधी ने इसके पीछे अपने अमूल्य आहुति दे दी। नेताजी ने इसके पीछे ही विदेश में जाकर टक्करें मारी और का इस पर बलिदान कर दिया। इन सभी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित ही नहीं अपितु प्रत्येक भारतीय की जिव्हा पर है।

जीवन की आहुति द अपने जीवन को इस में कर्त्तव्य-पालन ही एक ऐसी वस्तु है, जिसके द्वारा हम स्वर्गीय आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं। इसके आनन्द से मस्त मानव मातृ-भूमि की रक्षा के हेतु हर्षित मन में फाँसी के तख्ते पर लटक जाता है। उसकी अमर गाथा पुष्प-पराग के समान सर्वत्र फैल जाती है। अतः प्रत्येक मानव को कर्तव्य-पालन करना चाहिए।

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