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Hindi Essay on “Jeevan me Swachata ka Mahatva” , ”जीवन में स्वच्छता का महत्व” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

जीवन में स्वच्छता का महत्व

Jeevan me Swachata ka Mahatva

एक कहावत है ‘कुत्ता भी जब बैठता है तो पूंछ झाडक़र बैठता है।’ इसका अर्थ यह है कि जब कुत्ता किसी स्थान पर बैठता है तब सबसे पहले उसे पूंछ से साफ कर लेता है, अर्थात कुत्ता भी स्वच्छताप्रिय होता है। फिर मनुष्य को तो सफाई का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। वास्तव में, स्वच्छता जीवन में अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव स्वच्छता से रहे। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘सत्य के बाद स्वच्छता का स्थान है।’

सफाई दो प्रकार की होती है। बाह्य और आंतरिक। बाह्य सफाई से प्रयोजन शरीर, वस्त्र, निवास आदि की स्वच्छता से  है। आंतरिक स्वच्छता से तात्पर्य मन और हदय की स्वच्छता से है।

इन दोनों में श्रेष्ठतर ‘आंतरिक’ स्वच्छता है।  इसमें आचरण की शुद्धता जरूरी है। शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा तेजोमय होता है। सब लोग उसको आदर की दृष्टि से देखते हैं। उसके समक्ष प्रत्येक व्यक्ति स्वंय ही अपना मस्तक झुका लेता है। उसके प्रति लोगों में अत्यंत श्रद्धा होती है। बाह्य स्वच्छता में बालों की सफाई, नाखूनों की सफाई, कपड़ों की सफाई इत्यादि शामिल है। इसकी अवहेलना करके मनुष्य स्वच्छ नहीं रह सकता। इसकी उपेक्षा करने से बड़े दुष्परिणाम नजर आते हैं। मनुश्य रोगग्रस्त होकर नाना प्रकार के दुखों से पीडि़त रहता है। वह मनुष्य क्या कभी स्वस्थ रह सकता है, जो सर्वदा स्वच्छ जलवायु से वंचित रहता है? अत: यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य-रखा के लिए स्वच्छता अविार्य है। यह प्राय: सभी लोगों का अनुभव है कि जो मनुष्य गंदे रहते हैं, वे दुर्बल और रुज्ण होते हैं। जो मनुष्य स्वच्छ रहते हैं, वे हष्ट-पुष्ट और निरोग रहते हैं।

स्वास्थ्य के अतिरिक्त बाह्य सफाई से चित्त को प्रसन्नता भी मिलती है। जब कोई मनुष्य गंदे वस्त्र पहने रहता है तब उसका मन मलिन बना रहता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है, परंतु यदि वही मनुष्य स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेता है तो उसमें एक प्रकार की स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचरण हो जाता है। आपको यदि ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाए, जहां कूड़ा-करकट फैला हो, जहां मल-मूत्र पड़ा हो तो क्या आपका चित्त वहां प्रसन्न रहेगा? नहीं। क्यों? इसलिए कि आपको वहां दुख होगा, घृणा लगेगी।

बाह्य स्वच्छता से सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। एक स्त्री जो फटे, मैले-कुचैले वस्त्र धारण किए हुए है, उसकी ओर कोई देखता तक नहीं। परंतु यदि वही स्त्री स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेती है तो सुंदर दिखाई देने लगती है। धूल-धूसरित बनने की अपेक्षा स्वच्छ बालक सुंदर तथा प्रिय लगते हैं।

मनुष्य मात्र में स्वच्छता का विचार उ पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार करना अनिवार्य है। शिक्ष्ज्ञा पाने से व्यक्ति स्वत: स्वच्छता की ओर प्रवृत हो जाता है। ध्यान रहे, बाह्य स्वच्छता का प्रभाव आतंरिक स्वच्छता पर भी पड़ता है। इसके अतिरिक्त आतंरिक स्वच्छता सत्संगति से मिलतीहै। सचमुच यह दुर्भाज्य ही है कि हममें से अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे पाते। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का मूल है।

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commentscomments

  1. Rohil says:

    Nice essay

  2. Lovely singh says:

    Keep it up !
    Nice essay:)

  3. Neelansh says:

    BRO IT WAS A NICE ESSAY …….THANKS……
    👍👍😘

  4. Chandana g roy says:

    VERY VERY nice essay. Thoughtful
    Thank you very much

  5. Alok kumar says:

    Nyc thought

  6. Cuty says:

    How many words

  7. Arun kumar says:

    Ramsipur post Kashipur varanasi

  8. kavya kapoor says:

    it was too nice for youngsters

  9. blaster AJ says:

    good bro nice so important now………………….;

  10. Prince says:

    Very very nice👌👌👌

  11. Shivi mishra says:

    Its very helpful

  12. Sangital De says:

    Very nice and helpful content.

  13. Yogesh Gohil says:

    Very helpful for my schools essay………. Thank you

  14. Om says:

    Katai koda essay hai

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