Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Indira Gandhi” , ” इन्दिरा गांधी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Indira Gandhi” , ” इन्दिरा गांधी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

श्रीमती इन्दिरा गांधी

Shrimati Indira Gandhi

निबंध नंबर : 01

भारतीय नारी को राजनितिक उच्चता के गौरव शिखर तक पहुँचाने वाली श्रीमती इन्दिरा गांधी का वास्तविक नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी था | वह दुरदर्शिनी और और साहसी नारी थी | वे भारत की पहली महिला प्रधानमत्री थी |

इन्दिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 19 नवम्बर सन 1917 ई. को इलाहाबादके आनन्द भवन , यानि अपने पैतृक निवास में हुआ था | वे राष्ट्र- पुरुष पं. जवाहरलाल नेहरु की एकमात्र पुत्री थी | उनकी आरम्भिक शिक्षा सिव्टजरलैण्ड में हुई | उनकी शेष शिक्षा कलकता के शान्ति निकेतन तथा आक्सफ़ोर्ड में पूरी हुई | आक्सफोर्ड समरविले में अध्ययन करते समय ही इन्दिरा जी का राजनीति के साथ कुछ –कुछ सम्बन्ध जुड़ गया था | वहाँ से भारत आने पर सन 1938 में जब वे मात्र इक्कीस वर्ष की थी , तब उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया था | इसके बाद वे प्रत्येक राष्ट्रीय आंन्दोलंन में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी | 26 मार्च, 1942 ई. को उनका विवाह  श्री फिरोज गांधी के साथ हो गया हो स्वय एक देश –भक्त कार्यकर्ता थे | तभी से वह इन्दिरा गांधी कहलाने लगी | विवाह होने के कुछ समय पश्चात वे ‘भारत छोडो आंदोलन’ के कारण जेल चली गई | सन 1959 में वे ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की अध्यक्ष चुनी गई |

ज्यो-ज्यो वह अधिकाधिक राजनीति में सक्रिय होनी गई , पीटीआई से उनका एक प्रकार का अनकहा दुराव भी बड़ता गया , पर इसी बीच वे संजय एव राजीव नामक दो बेटो की माँ बन चुकी थी | सन 1962 में चीनी आक्रमण के बाद राष्ट्र – रक्षा के यज्ञ की तैयारी के लिए अपने समस्त आभूशने का दान देकर उन्होंने अपनी उदारता व् राष्ट्रीयता का अभूतपूर्व परिचय दिया था |

सन 1964 ई. पं. जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री – सरकार में श्रीमती गांधी सुचना एव प्रसारण मंत्री बनी | सन 1966 ई. में श्री लाल बहादुर शास्त्री के देहांन्त हो जाने पर वे भारत की प्रधानमंतत्री बनी | प्रधानमत्री बनने के बाद उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए जिनसे उनका नाम सारे विश्व में प्रसिद्ध हो गया | उहोने सन 1969 ई. में बैको का राष्ट्रीयकरण किया | राजाओ के प्रिवीपर्स बंद कर दिए | अनाज की दृष्टि से देश को आत्मनिर्भर बनाया | सन 1971 में पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करके बैगलादेश की स्थापना की | सन 1975 में निर्धनों तथा पिछड़े वर्ग के लोगो के उद्धर के लिए 20-सूत्री कार्यक्रम बनाया | सन 1982 में नई दिल्ली में एशियाई खेल करवाए तथा सन 1983 में निर्गुट सम्मेलन आयोजित करके प्रशंसा प्राप्त की |

बड़े दुर्भग्य की बात है कि भारत की इस दृढ व निर्भीक महिला की इनके अपने अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर सन 1984 को गोली मारकर हत्या कर दी | परन्तु इनका देश के लिए किया गया यह बलिदान सदैव अमर रहेगा |

निबंध नंबर : 02

इंदिरा गांधी

Indira Gandhi

क्रांतिवादिनी श्रीमती इंदिरा गांधी ने समय-समय पर :ष्ट्र की अनेक आन्तरिक व बाहरी चुनौतियों का सामना किया और उनकी कसौटी पर खरी उतरीं। आपने स्वराष्ट्र की स्थितियों को बदला और विभिन्न समस्याओं का समाधान करके विकास की नई दिशाओं की खोज की।

श्रीमती इंदिरा गांधी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू की सुपुत्री थीं। आपका जन्म 19 नवम्बर सन् 1917 ई० को राष्ट्रवादी आन्दोलन के तीर्थ स्थल इलाहाबाद में हुआ था। आपके व्यक्तित्व पर पितामह श्री मोतीलाल नेहरू और पिता श्री जवाहरलाल नेहरू जी की अमिट छाप अंकित थी। आपके सार्वजनिक जीवन का प्रारम्भ 3 वर्ष की अल्पावस्था में ही हो गया था। आपने सन 1930 ई० में कांग्रेस की बैठक में पहली बार भाग लिया था जबकि आपके माता-पिता सरकारी मेहमान बने हुए थे।

दस वर्ष की अवस्था में आपने ‘वानर सेना’ बनाई थी जो कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सहायता पहुँचाया करती थी। इस तरह आपका बचपन देश की घटनाओं क साथ जुड़ा हुआ है। आपका विवाह पत्रकार फीरोज गांधी जी से हुआ था, जो आगे चलकर सुयोग्य संसद सदस्य और एक अंग्रेजी पत्र के सम्पादक बने। 1959 ई० में आप सर्वसम्पति से काग्रेस दल की अध्यक्षा चुनी गई थीं। सन 1960 ई० में पति के आकस्मिक निधन से आपको गहरी चोट पहुँची थी; किन्तु संतान को पिता का साया उठ जाने का दुःख महसूस नहीं होने दिया। दोनों पुत्रों को लन्दन में शिक्षा दिलाई थी।

श्री लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी 48 वर्ष की अवस्था में 24 जनवरी 1966 ई० को भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी थीं। सन 1967 ई० के आम चुनाव में बहुमत पाने के बाद प्रधानमंत्री बनी रही थीं। सन् 1971 ई० में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया; परन्तु उसे पराजित होना पड़ा। इतना ही नहीं, पाकिस्तान का एक बड़ा भाग पूर्वी पाकिस्तान स्वतन्त्र होकर ‘बांग्ला देश’ कहलाया। यह सब आपके नेतृत्व में हुआ। आपने बांग्ला देश को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद दी थी। सारे राष्ट्र ने आपके साहस की खूब सराहना की। 24 मार्च सन् 1977 ई० तक आप प्रधानमन्त्री बनी रही थीं।

आपकी स्थिति सन् 1975 ई० में कुछ कारणवश बिगड-सी गई। फलतः आपात्काल की घोषणा करनी पड़ी। विपक्ष के नेता जेलों में बन्द कर दिए गए। इससे जनता अन्दर ही अन्दर क्षुब्ध हो उठी। 18 जनवरी, 1977 ई० को लोक सभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी गई। इस चुनाव में आपको भारी हार मिली और ग्यारह वर्ष तक प्रधानमन्त्री बने रहने के बाद यह पद छोड़ना पड़ा। इस तरह आपके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आये। जनता सरकार ने आपको जेल भेजा। विशेष अदालतों का गठन करके आप पर मुकदमे चलाए गए। इस बीच नवम्बर, 1978 ई० में आप चिकमंगलूर से संसद सदस्या चुनी गईं; किन्तु संसद की विशेषाधिकार समिति ने आपको विशेषाधिकार के हनन का दोषी पाया। अन्त में आपको जनता पार्टी की आपसी फूट का लाभ पहुँचा। आपने पहले चौधरी चरणसिंह को समर्थन देकर मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी और बाद में वही समर्थन वापस लेकर चौधरी चरणसिंह की सरकार की भी वही दशा कर दी।

इसके बाद 3 जनवरी और 7 जनवरी, 1980 ई० में लोकसभा के चुनाव हुए। इसमें आपको आशा से बढ़कर कामयाबी मिली। आपकी पार्टी कांग्रेस (इ०) दो-तिहाई बहुमत से विजयी हुई। 14 जनवरी, सन् 1980 को आपके प्रधानमन्त्रित्व में स्थायी सरकार बन गई। इस तरह आपको राष्ट्र को विकसित करने का पुनः अवसर मिला। विश्व इतिहास की यह पहली घटना थी कि चुनाव में हार के ढाई साल बाद ही कोई राजनीतिज्ञ पुनः बहुमत से देश की बागडोर संभालने में समर्थ हुआ था। इस अपूर्व तथा अद्भुत घटना से पता चलता है कि श्रीमती इंदिरा गाँधी क्रांतिवादिनी थीं। 

31 अक्टूबर 1984 को आपके अंगरक्षकों ने गोली मारकर इनकी हत्या कर दी थी।

 

निबंध नंबर : 03

इन्दिरा गांधी

श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 24 जनवरी, 1966 को भारत के प्रधानमंत्री का पद सम्भाला तथा 1977 तक उसे संभाले रखा। लगभग तीन वर्षों के उपरान्त 1980 में हुए चुनावों में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करके वह विजयी घोषित हुई तथा पुनः प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया।

श्रीमती इन्दिरा गांधी (प्रियदर्शिनी) का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद में हुआ था। वे पंडित मोती लाल नेहरू की पौत्री थीं तथा स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री तथा आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल लेहरू की इकलौती सन्तान थीं। उनके प्रख्यात पिता एक प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने शान्ति निकेतन तथा स्विट्जरलैण्ड में शिक्षा ग्रहण की। वे एक मेधावी बालिका थीं। ‘जैसे पिता, वैसी पुत्री’।

वे राजनीति की दुहिता थीं। उन्होंने राजनीति में असीम अनुभव प्राप्त किया। सहजात तथा वपौती गुणों के समान उन्होंने दरदर्शिता, देशभक्ति, उद्यम, दृढ़ संकल्प तथा साहस आदि गुण अपने पिता से ग्रहण किए। उनके स्वभाव में स्वतः ही एक प्रकार का राजनैतिक पुट था। उन्होंने सारे राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया तथा कई बार जेल-यात्रा भी की। 1942 में उनका विवाह फिरोज गांधी के साथ हुआ जो कि एक पारसी राष्ट्रवादी थे। राजीव तथा संजय नामक उनके दो पुत्र थे। दुर्भाग्यवश वायुयान दुर्घटना में 23 जून, 1980 को संजय की मृत्यु हो गई। वे अपने पीछे अपनी विधवा पत्नी मेनका तथा नवजात पुत्र वरुण को छोड़कर चल बसे।

ताशकन्द में शास्त्री जी की मृत्यु के उपरान्त वे 1966 में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुईं। वे लगभग 15 वर्ष तक भारत को मार्ग-दर्शन देती रहीं तथा उनकी देखरेख में भारत ने बहमुखी तथा बहद उन्नति की। बैंकों तथा कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करके उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे निर्धन जनता की रक्षक थीं। आर्थिक कठिनाइयों, नैतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शक्ति का दुरुपयोग तथा मिलावट का निराकरण तथा उसके द्वारा देश भर में कमजोर वर्गों के स्तर को ऊपर उठाना ही उनके बीस-सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम का लक्ष्य था। असामाजिक तत्त्वों से समझौता करना उन्होंने कभी नहीं सीखा था।

बंगलादेश को स्वतन्त्र कराने में उनके योगदान ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की। भारत-सोवियत मैत्री संधि द्वारा उन्होंने आर्थिक तथा औद्योगिक क्षेत्रों को सबल बनाया। कुछ लोगों ने उन्हें ‘तानाशाह’ कहना शुरू कर दिया । लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन आन्दोलन प्रखर हो उठा था। अतः श्रीमती गांधी को संकटकालीन स्थिति की घोषणा करवानी पड़ी। सारे भारत में एक भयावह आतंक की स्थिति पैदा हो गई। विरोधी राजनैतिक दलों ने उनके विपरीत कई दूषित अफवाहें फैला दी तथा उन्हें 1977 के आम चुनावों में करारी पराजय दी। वे शक्ति-विहीन हो गईं। उन्होंने बिना किसी क्रोध और बड़बड़ाहट के शासन कार्य विजयी जनता पार्टी को सौंप दिया। उन्होंने सभी आयोगों तथा अभियोगों का बहादुरी से मुकाबला किया। कई स्वार्थी दलों के संयुक्त दल ‘जनता पार्टी’ ने देश भर में अराजकता फैला दी।

निराश जनता ने अपनी भूल का एहसास किया तथा 1980 में उन्हें प्रबल बहुमत से निर्वाचित करके सत्तारूढ़ कराया। एक बार फिर धमाके के साथ वे प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुईं। उन्होंने इस भारी उत्तरदायित्व को शान्त स्वभाव से निभाया। उन्होंने चिर-विलुप्त स्थिरता, सुरक्षा तथा समृद्धि को पुनः बटोरा। उन्होंने क्षत-विक्षत तथा पंगु अर्थव्यवस्था को संवारा तथा तीव्र गति से बढ़ने वाली मुद्रा स्फीति को कुचला। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय अदालत में अपने राष्ट्र की शान की सुरक्षा की। उन्होंने बड़ी कठोरता से अशान्तिप्रद प्रवृत्तियों तथा साम्प्रदायिक उपद्रवों को दबोच दिया। अव्यवस्था, विघटन तथा प्रतिक्रियाकारी शक्तियों के विरुद्ध उन्होंने निरन्तर अथक युद्ध किया।

उन्हीं के सुरक्षा दल के कर्मचारियों बेअन्त सिंह तथा सतवन्त सिंह ने 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी निर्मम हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के समाचार ने देश भर में दुःख की लहर फैला दी। एक नवम्बर को राजधानी तथा बारह अन्य राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसाओं, अव्यवस्था तथा अशान्ति का साम्राज्य रहा। कयूं लगा दिया गया तथा देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए। विश्व के 104 प्रतिनिधि 3 नवम्बर, 1984 को उनके दाह-संस्कार के समय भारत पधारे। उनकी चिर-पोषित आकांक्षा थी कि वे भी महात्मा गांधी की तरह शहीद हों। उन्हें ऐसी मृत्यु ही गौरवशाली जंचती थी जिसमें उनके खून का हर कतरा इस राष्ट्र के विकास और इसे अत्यधिक शक्तिशाली और गतिशील बनाने में सहायक होगा। वे भारतीय राजनीति की धुरी थीं। उनके हृदय में उदार एवं समुन्नत विचार पनपे।

कम्पनशील भार को आधुनिकीकरण की दौड़ में अग्रसर करने में इन्दिरा गांधी के बृहद योगदान के लिए इतिहास हमेशा साक्षी रहेगा। उनकी सूझबूझ, प्रशासनिक पटुता, राजनीतिक दूरदर्शिता तथा समूचे देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता के कारण राष्ट्र उन्हें युग-युगान्तरों तक भूल नहीं पाएगा। परमात्मा उनकी दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें!

 

इंदिरा गाँधी

Indira Gandhi

निबंध नंबर : 04

परिचय-श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की एकमात्र संतान थी। इनका जन्म इलाहाबाद में 19 नवंबर, सन् 1917 को हुआ था। इनकी माता कमला नेहरू बचपन में ही स्वर्ग सिधार गई। ये दादा मोतीलाल नेहरू और अपने पिता की देखरेख में पली। पिता जवाहर लाल नेहरू पत्र लिखकर जेल से ही ज्ञान की बातें बतलाते थे।

शिक्षा-इनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में ही हुई। बाद में इन्हें पुणे भेज दिया गया, जहाँ से इन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की। इनकी आगे की शिक्षा इंग्लैंड में हुई। वहाँ से लौटने पर वे बहुत दिनों तक ‘शांति निकेतन’ में सवींद्रनाथ ठाकुर की देखरेख में शिक्षा पाती रही। यहाँ उन्हें भारतीय कला और संस्कृति की शिक्षा मिली।

जीवन और कार्य-राजनीति की समझ और परख उन्हें महात्मा गाँधी और पिता जवाहरलाल नेहरू से मिली। बचपन से ही वे सामाजिक कार्य करने लगी। जब गाँधी जी देश की आजादी के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चला रहे थे। इन्होंने इलाहाबाद में ‘बाल सेना’ संगठित कर देश-सेवा का कार्य किया।

सन् 1948 में इनका विवाह फिरोज गाँधी से हुआ। उनके दो पुत्र हुए-राजीव गाँधी और संजय गाँधी। सन् 1964 में पिता जवाहर लाल नेहरू की भी छाया उठ गई और वे अकेली राजनीति की आँधियाँ झेलती रही। लेकिन इंदिरा के अटूट धैर्य और दृढ़ निश्चय ने उसे सफल बनाया।

राजनीति-अपने महान पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ वे सदा रहीं, क्योंकि उनके और कोई संतान न थी। वे प्रखर बुद्धि की थीं। उन्हें राजनीति की गहरी समझ थी। सन् 1949 में वे कांग्रेस की अध्यक्षा बनीं। सन् 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के बाद सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनी। शास्त्री जी के निधन के बाद वे देश की प्रधानमंत्री बनीं।

कार्य-देश को विकसित करने और देश-विदेश में भारत का सिर ऊँचा रखने के लिए उन्होंने अनेक काम किए। उन्हीं के उत्साह और प्रयासों का फल है कि भारत आज अंतरिक्ष पर विजय करने वाले देशों के साथ खड़ा है। देश की गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। देश के लाभ के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराया।

उपसंहार-इंदिरा जी सन् 1966 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे जनता को चाहती थी और जनता उन्हें। देश तेजी से आगे बढ़ रहा था। 31 अक्टूबर, सन् 1984 को उनकी सुरक्षा में लगे प्रहरियों ने षड्यंत्र में शामिल होकर उनकी हत्या कर दी। इनके आखिरी शब्द थे-‘अपनी देश की अखंडता की रक्षा खून की एक-एक बूंद से करूँगी।’

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *