Hindi Essay on “Hamare Padosi Desh” , ”हमारे पड़ोसी देश” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
हमारे पड़ोसी देश
Hamare Padosi Desh
कहावत है कि अच्छा पड़ौसी साभाज्य से ही मिला करता है। भारत महान परंपराओं वाला एक महान देश रहा और आज भी है। कभी इसका स्वरूप एंव आकार-प्रकार सुदूर तक फैला हुआ बड़ा ही विशाल ओर सुविस्तृत था। आज के पड़ोसी कहे जानेव ाले बहुत से देश कभी विशाल भारत के ही प्रांत एंव अंग थे। समय के साथ-साथ कुछ तो प्राकृतिक और भौगोलिक कारणों से इससे अलग होकर स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आ गए, जबकि कुछ देशी-विदेशी राजनीति का शिकार होकर अलग हो या कर दिए गए। सिंगापुर, बर्मा, मलाया आदि अंग्रेजों द्वारा भारत से तोडक़र अलग किए गए ऐसे ही देश हैं, जिन्हें काफी पहले अलग किया गया था। सुदूर अतीत में जावा, सुमात्रा, काबुल-कांधार आदि देश भी विशाल भारत के ही अंग थे। सिंहलद्वीप या श्रीलंका को भी भारत का भाग बना लिया गया था। पर यह भी बहुत पुरानी बात है। निकट अतीत में जो देश भारतीय भू-भाग से अलग होकर स्वतंत्र अस्तित्व में, एक देश के रूप में सामने आए हैं, उनमें पाकिस्तान, बांज्लादेश और तिब्बत के नाम प्रमुख हैं। तिब्बत आज चीन का अंग है, जबकि पाकिस्तान और बांज्लादेश पहले एक होते हुए भी आज दो अलग-अलग स्वतंत्र राष्ट्र हैं।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि सीमाओं के स्पर्श की दृष्टि से भारत के आज के मुख्य पड़ोसी देश कौन-कौन से हैं और उनके साथ हमारे देश के संबंध किस प्रकार के हैं? मुख्य देश हैं-चीन, बर्ता, भूटान, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान और बांज्लादेश।हमारे पड़ोसियों में ही नहीं, सारे एशिया, बल्कि विश्व भर के देशों में चीन सबसे बड़ा देश है। भारत ओर चीन लगभग एक वर्ष के अंतराल में साथ-साथ ही स्वतंत्र हुए, यह भी संयोग ही है। यह भी एक तथ्य है कि अपनी स्वतंत्रता पाने के लिए भारत-चीन दोनों देशों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा।कई प्रकार के त्याग और बलिदान करने के बाद ही दोनों देश संप्रभूता-संपन्न राष्ट्र बन सके। जहां तक शासनतंत्र का प्रश्न है, दोनों देशों में बुनियादी अंतर है। भारत एक जनतंत्रवादी देश है, जबकि चीन साम्यवाद के प्रस्तोता रूस के इस मार्ग से हट जाने के बाद आज भी साम्यावादी शासन व्यवस्था वाला देश है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद कुछ वर्षों तक पंचशील के सिद्धांतो और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ जैसे नारे के तहत दोनों देश मित्रता की डोर में बंधे रहे। पर सन 1962 में उत्तर-पूर्वी सिमांचल प्रदेश में भारत-चीन में सीमा संघर्ष हुआ। चीन ने भारत के हजारों वर्ग मीटर इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया, जो आज भी बना हुआ है। वर्षों तक कुट्टी रहने के बाद आज फिर दोनों पड़ोसी देश संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया में गुजर रहे हैं। यह एक ठोस वास्तविकता है कि भारत-चीन यदि संबंध सुधारकर सहयोग करने लगते हैं, तो विश्व-राजनीति का संतुलन, जो आज अमेरिका की ओर झुका नजर आता है, बदल सकता है। एशिया की राजनीति विश्व-राजनीति को न केवल प्रभावित ही कर सकती है, बल्कि उसे नया नेतृत्व प्रदान करके उसका मार्ग-दर्शन कर पाने में भी समर्थ हो सकती है।
बर्मा भारत का एक अन्य पड़ोसी देश है। बर्मा जब स्वतंत्र हुआ, तो उसने भी भारत की तरह तटस्थ जनतंत्रवादी नीति अपनाने की घोषणा की थी। इस कारण भारत के साथ उसके संबंध स्वत: ही प्रगाढ़ एंव अच्छे हो गए। वर्षों तक उनका यही स्तर बना रहा। फिर एकाएक पता नहीं किस दबाव औरप्रभाव से जनरल नेबिल ने वहां बसे भारत मूल के लोगों को उखाडऩा और कट् टर इस्लाम की ओर उन्मुख होना शुरू कर दिया। इसका प्रभाव दोनों देशों के संबंधों पर पडऩा अनिवार्य था। सो धीरे-धीरे संबंधों की गर्मी घटती गई और उसमें ठंडापन बढ़ता गया। आज भारत और बर्मा के संबंध यद्यपि तनावपूर्ण तो नहीं है पर पहले जैसे उत्साहवद्र्धक भी नहीं है। बस, राजनय-शिष्टाचार निभाने वाले ही कहे जा सकते हैं। भूटान एक पहाड़ी राज्य है और अपने आप में संप्रूभता-संपन्न राज्य या राष्ट्र हैं। आज भी वहां राजतंत्र है। फिर भी भारत के साथ संधियों के अंतर्गत उसके संबंध बड़े ही अच्छे, गहरे और अपनत्व भरे बने हुए हैं। उसकी सुरक्षा का भार भी भारत पर है। यद्यपि वह विदेशों में अपने स्वतंत्र प्रतिनिधि भेज सकता है, फिर भी उसके विदेशी हितों की रक्षा का दायित्व भी भारत पर है। वहां के विकास में भारत ने महत्वपूर्ण योगदान और सहायता पहुंचाई है और आज भी पहुंचा रहा है।
हिंद महासागर के पार बसा होने पर भी श्रीलंका भारत का एक अन्य प्रमुख पड़ोसी देश है। वह भी संप्रभुता-संपन्न स्वतंत्र राष्ट्र है। देश-विदेश की सभी नीतियों, गतिविधियों का स्वंय नियंता औरभोक्ता है। भारत के साथ उसके संबंध अत्यंत प्राचीन काल से बने हुए हैं। कुछ वर्ष पहले वहां रहने वाले भारत मूल के लोगों को तंक किया और निकाला जाने लगा था। उनकी नागरिकता का प्रश्न भी उठा था।चीन आदि के प्रभाव में आकर वहां के राजनेताओं ने भारत को आंखे दिखानी भी शुरू कर दी थी। फिर भी भारत भडक़ा नहीं। वह श्रीलंका के प्रति बड़े भाई के कर्तव्यों का उचित निर्वाह करता रहा। वह भारत ही है कि निकट अतीत में जिसने अपनी शांति सेनांए वहां भेजकर अलगाववादी-उग्रवादी तत्वों के देश-विभाजन के प्रयास को विफल करके भाई और सहायक होने का, मित्रता का कर्तव्य निभाया। इतना होने पर भी वहां के प्रतिगामी तत्व भारत पर तरह-तरह के दोषारोपण करते रहे औरआज भी करते रहते हैं। इस पर भी ीाारत अपनी ओर से संबंधों की पवित्रता को भरसक बनाए रखकर अच्छे पड़ोसपने को निभाए जा रहा है। आज का श्रीलंका का प्रशासन भी पड़ोस धम्र का उचित निर्वाह करने लगा है। भारत के निकटतम पड़ोसियों में नेपाल सबसे निकट पड़ता है। वह इसलिए भी कि वह एकमात्र हिंदू देश है और उसकी या भारत की सीमाओं को आर-पार करके एक-दूसरे के यहां जाने-आने पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंधनहीं लगा हुआ है। दोनों देशों में व्यापार भी प्राय: मुक्त रूप से होता है। सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बहादुरशाह जफर को तो खैर नेपाल में कैद रखा गया था। पर तांत्या टोपे जैसे अनेक सेनानियों को वहां शरण भी दी गई थी। भारतीय नेता सरकारी स्तर पर तो उचित शिष्टाचार एंव राजनय का निभाव करते ही रहे वहां जन-आकांक्षाओं को लेकर चलने वाले आंदोलनों को सब प्रकार का समर्थन भी देते रहे। आज वहां जनतंत्र की स्थापना हो चुकी है और भारत के साथ उसके संबंध अच्छे और स्वाभाविक हैं।
निकट अतीत में भारत से अलग हुआ देश पाकिस्तान अपेन जन्मकाल से ही भारत-विरोधी रहा और आज भी है। सच तो यह है कि वहां चाहे निर्वाचित सरकार रही हो, चाहे सैनिक तानाशाही, दोनों का टिकाव भारत विरोध की भूमिका पर ही निर्भर करता रहा और आज भी करता है। पाकिस्तान इसका मूल कारण कश्मीर के प्रश्न को मानता, जबकि भारत कश्मीर को कोई प्रश्न न मान भारत का अविभाज्य अंग स्वीकार करता है। अन्य रियासतों की तरह कश्मीर का भी भारत में विधिवत विलय हुआ, आंखें मूंदे रहने वाले भी मन से यह तथ्य स्वीकार करते हैं। सच्चाई यह है कि नफरत के आधार पर बना पािकस्तान अपनी नफरत वाली मानसिकता से निजात प्राप्त ही नहीं कर पा रहा, कश्मीर या और मुद्दे तो महज बहानेबाजी है। इसी कारण वह तीन-चार बार भारत पर आक्रमण करने का कड़वा स्वाद भी चख चुका है।
यदि ये सारे देश भारत के नेतृत्व में वास्तव में संगठित होकर संबंध सुधार लें, तो एशिया में एक नवीन श ित का उदय हो सकता है, इसमें संदेह नहीं। अत: सभी देशों के जागरूक लोगों विशेषत: बुद्धिजीवियों, साहित्याकारों एंव अन्य कलाकारों को इस दिशा में प्रत्यन करने चाहिए।