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Hindi Essay on “Gandhivad Aur Bharat” , ”गांधीवाद और भारत” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

गांधीवाद और भारत

Gandhivad Aur Bharat

कई बार कुछ महारुपुष किसी राष्ट्र के प्रतीक भी बन जाया करते हैं। महात्मा गांधी के बारे में ऐसा कहा जा सकता है। वे आधुनिक और स्वतंत्र भारत के जनक माने जाते हैं। हमनें स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए जो लंबा संघर्ष किया, वह वस्तुत: गांधीवादी चेतना पर ही आधरित था, इसी कारण ऐसा कहा जाता और उन्हें राष्ट्र का प्रतीक माना जाता है। जिसे गांधीवाद कहा जाता है, उसका मूल आधार है-सत्य, प्रेम, अहिंसा, आत्मनिग्रह, परोपकार, असहाय और असमर्थ मानवता के उद्धार का प्रयत्न, समानता एंव सभी प्रकार से विशेषकर उदात्त मानवीय एंव आध्यात्मिक मूल्यों से समृद्ध वर्गहीन समाज की रचना। ऐसा समाज, जिसमें समान स्तर पर सभी की बुनियादी आवश्यकतांए पूरी हो सकें, किसी का शोषण न हो, किसी के साथ अन्याय-अत्याचार न हो, सभी लोग अपने-अपने विश्वासों में जीते हुए एक राष्ट्र और उससे ऊपर उठकर महान मानव बनकर रह सकें। ऐसी समाज-रचना को ही गांधीजी ने रामराज का नाम दिया था। इसी की प्राप्ति के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया था और इसी सबकी रक्षा के लिए वे बलिदान भी हो गए थे। खैर, ये तो बड़ी-बड़ी बातें हैं। निश्चय ही इन पर गांधी जैसा महान व्यक्तित्व ही चल सका था। देखना यह है कि गांधीवादी बातों एंव सिद्धांतो पर उनका भारत कहां तक चल पा रहा है और कहां तक चल पा रहे हैं अपने आपको उनका अनुयायी मानने वाले?

स्वतंत्रता संग्राम के दिनों गांधी जी ने सबके लिए कल्याणकारी स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी। उन्होंने चाहा था कि स्वतंत्र भारत में भारत की सभी अच्छी परंपराओं को पुनर्जीवन मिले। इसी कारण उन्होंने बुनियादी शिक्षा, ग्राम-सुधार और कुटीर-उद्योगों को महत्व दिया था। परंतु जहां तक स्वतंत्र भारत का प्रश्न है, उसमें इन सब बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप शिक्षा तक भी सभी के जी का जंजाल बन चुकी है। ग्रामों की दशा आर्थिक दृटि से चाहे सुधरी हो। पर गांव-संस्कृति का अंत हो चुका है ओर परंपरागत उद्योग-धंधे समाप्त हो चुके हैं। यह अलग बात है कि आज फिर उन सबकी आवश्यकता और महत्ता का बुरी तरह से अनुभव किया जाने लगा है। इस दिशा में कुछ प्रयत्न भी होने लगे हैं। गांधी जी ने ट्रस्टीशिप का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि समर्थ और धनी लोग अपने-आपको संपत्ति एंव अधिकारिों का स्वामी न समझ, केवल संरक्षक समझें। पर भारत में इससे सर्वथा विपरीत हुआ और हो रहा है। परिणामस्वरूप सारा तंत्र ही भ्रष्ट होकर रह गया है। गांधीवादी मूल्य अतीत की कहानी बनकर रह गए हैं। गांधी का दरिद्रनारायण गरीब गरीबी की रेखा से नीचे पहुंच अपने अंत के निकट पहुंच चुका है, जबकि अमीर की संपत्ति का कोई अंत ही नहीं रह गया। संपत्ति और सविधाओं की इस दौड़ के कारण गांधीवादिायें की नाक के नीचे समस्त मानवीय मूल्य, नैतिकतांए और सात्विक प्रवृतियां प्रतिक्षण ध्वस्त होती जा रही हैं। कई बार तो स्वंय गांधी-भक्त ही इस ध्वंस का कारण बनते दिख पड़ते हैं। इस प्रकार भारत में गांधीवाद एक प्रकार का मजाक बनकर रह गया है। सरकारी-गै-सरकारी कार्यालयों में उनके लगे चित्रों के नीचे बैठकर मानवता की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। रिश्वत, भ्रष्टाचार और चोरबाजारी का बाजार खुलेआम गरम है। लोग गांधी का नाम लेकर ही सारे कुकर्क कर रहे हैं।

गांधीवाद ने सहिष्णुता का उपदेश दिया पर आज सहिष्णुता का कहीं नाम तक दिखाई नहीं देता। गांधी चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार में बैठे छोटे-बड़े सभी लोग अपने को जनता का स्वामी नहीं सेवक समझें पर आज के सत्ताधारियों में चपरासी के मंत्री तक द्वारा अपने को मालिक से भी कहीं ऊपर समझा और व्यवहार किया जाता है। गांधीजी हिंसा के कट्टर विरोधी थे, अश्लीलता के निदंक थे। परंतु आज जीवन-समाज में चारों ओर इन्हीं तत्वों का बोलबाला है। यों नाम आज भी सभी गांधी और गांधीवाद का लेते है पर मात्र आड़ के लिए। परिणामस्वरूप गांधी के अपने ही देश में आज जितनी उनकी, उनकी मान्यताओं-आस्थाओं की छीदालेदर हो रही है, उतनी कट्टर विरोधी देशों में भी नहीं। गांधी जी ने स्वतंत्र भारत की एक भाषा होने की बात कही थी। यहां तक कि सन-1948 में कश्मीर का मसला सेना के बल पर सुलझा लेने का सुझाव दिया था, किंतु उनकी बातें नहीं तानी गई। परिणामस्वरूप अब ये दोनों समस्यांए कभी सुलझती हुई नजर नहीं आती। भविष्य में कोई सुलझाव हो पाएगा, कतई नहीं लगता।

इस प्रकार स्पष्ट है कि हमारे सारे व्यवहार गांधीवादी चेतना से सर्वथा विपरीत पड़ रहे हैं। आज हर पल कदम-कदम पर गांधवादियों द्वारा ही उनकी आत्मा की हत्या की जा रही है। गांधी जी ने जिस सत्याग्रह, भूख-हड़ताल आदि का प्रयोग सामूहिक हित के लिए किया था, आज उसी का प्रयोग भ्रष्टाचारी लोग वैयक्तिक स्वार्थों और भ्रष्टाचाों की पूर्ति के लिए किया करते हैं। यहां तक कि गांधीवादी के नाम पर बने और पनपे अनेक प्रकार के प्रतिष्ठान भी आज भ्रष्टाचार के अड्डे बन चुके हैं। उनके नाम को भी निहित स्वार्थी लोक निजी स्वार्थों के लिए भुना लेना चाहते हैं। अत: यह कहने के लिए विवश होना पड़ता है कि गांधी का देश आज गांधीवाद से कोसों दूर भटक चुका है। इस भटकाव के कारण ही हमें अनेकविध देशी-विदेशी समस्याओं का बुरी तरह से सामना करना पड़ रहा है। आज भी गांधीवाद एक आलोक-स्तंभ के समान हमारे सामने विद्यमान है। वह आज भी न केवल भारत आलोक-स्तंभ के समान हमारे सामने विद्यमान है। वह आज भी न केवल भारत बल्कि सारे विश्व को जीवन का सही प्रकाश दे सकता है। पर तभी जब हम उनके नाम को भुलाने का प्रयत्न छोडक़र उनके बताए मार्ग पर चलने का सच्चे मन से प्रयत्न करेंगे। अन्यथा भटकाव और उसका अंतिम परिणाम विनाश न केवल भारत बल्कि सारे विश्व का मार्ग जोह रहा है। उस पर बढऩे में अन्य कोई नहीं बचा सकता। गांधीवाद ही भारतीय सभ्यता-संस्कृति की रक्षा कर पाने में आज भी समर्थ हैं।

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