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Hindi Essay on “Chatra Aur Shikshak ” , ” छात्र और शिक्षक ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

छात्र और शिक्षक

         

विचारबिंदु-. घरप्रारंभिक पाठशाला, मातापिता प्रथम शिक्षकविद्यालय में शिक्षक ही मातापिताशिक्षक का दायित्व : पढ़ाना, दिशानिर्देशन, सत्कार्यों की प्रेरणाछात्र का दायित्व, परस्पर संबंधदोनों परस्पर अपनेअपने दायित्वों को समझें।

घरप्रारंभिक पाठशाला, मातापिता प्रथम शिक्षकपूरा जीवन एक विद्यालय है। हर व्यक्ति विद्यार्थी भी है और शिक्षक भी। कोई भी मनुष्य किसी से कुछ सीख सकता है। बच्चे के लिए सबसे पहली पाठशाला होती है-घर । माता-पिता ही उसके प्रथम शिक्षक होते हैं। वे उसे ईमानदारी, सच्चाई या बेईमानी का मनचाहा पाठ पढ़ा सकते हैं। वास्तव में माता-पिता जैसा आचरण करते हैं, बच्चा उसी को सही मानकर ग्रहण कर लेता है।

विद्यालय में शिक्षक ही मातापिताविद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता के समान होते हैं। वे बच्चों को अपनी प्रिय संतान के समान मानते हैं। उन पर बच्चों को संस्कारित करने का दायित्व होता है। इसलिए वे अच्छे कुंभकार के समान बच्चों की बुरी आदतों पर चोट करते हैं तथा अच्छी बातों की प्रशंसा करते हैं। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों की बुरी आदतों का समर्थन न करें, अपितु उन्हें उचित मार्ग पर लाने का प्रयास करें।

शिक्षक का दायित्व : पढ़ाना, दिशानिर्देशन, सत्कार्यों की प्रेरणाशिक्षकों का दायित्व केवल पुस्तकें पढ़ाना नहीं है। उनका अपना विषय पढ़ना उनका प्रथम धर्म है। उन्हें चाहिए कि वे अपने विषय को सरस और सरल ढंग से बच्चों को पढ़ाएँ। दूसरा दायित्व है-बच्चों को सही दिशा बताना। अच्छे-बुरे की पहचान कराना। तीसरा दायित्व है-बच्चों को शुभ कर्मों की प्रेरणा देना।

छात्र का दायित्व, परस्पर संबंध-शिक्षा-प्राप्ति का कर्म छात्रों की सद्भावना के बिना पूरा नहीं हो सकता। जब तक छात्र अपने शिक्षक को पूरा सम्मान नहीं देता, तब तक वह विद्या ग्रहण नहीं कर सकता। कहा भी गया है-श्रद्धावान लभते ज्ञानम् श्रद्धावान को ही विद्या प्राप्त होती है। अपने शिक्षक पर संपूर्ण विश्वास रखने वाले छात्र ही शिक्षक की वाणी को हृदय में उतार सकते. हैं। अच्छा छात्र हमेशा यही कहता है-

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय।।

दोनों परस्पर अपनेअपने दायित्वों को समझें-विद्या-प्राप्ति का कार्य शिक्षक और छात्र दोनों के आपसी तालमेल पर निर्भर है। कबीर कहते हैं

सतगुरु बपुरा क्या करै, जे सिष माहि चूक।

यदि छात्र में दोष हो तो सतगुरु चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। इसके विपरीत यदि गुरु अयोग्य हो तो उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है

अंधेअंधा ठेलया, दोनों कूप पड़त।

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commentscomments

  1. sarthak262@gmail.com says:

    This is very good esay

  2. Bhumika joshi says:

    Best essay present in this site

  3. Bhumika joshi says:

    I liked it

  4. Happy Kumar says:

    Please upload a easy on
    “PARIKSHA ME KADACHAR KYU”

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