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Hindi Essay on “Chandni Ratri me Nauka Vihar” , ”चाँदनी रात्री में नौका-विहार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

चाँदनी रात्री में नौका-विहार

Chandni Ratri me Nauka Vihar

Best 3 Hindi Essay on ” Chandni Raat mein Nauka Vihar”

निबंध नंबर : 01 

प्रकृति विभिन्न रूपों में अपना सौंदर्यं प्रकट करती है। समय परिवर्तन के साथ इसका सौंदर्य भी अनेक रंगों में प्रकट होता है। प्रातः काल उगते हुए सूर्य की ललिमा एक ओर अद्भुत छटा बिखेरती है तो रात्रिकाल में चंद्रमा के प्रकाश में प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है। मनुष्य को यथासंभव प्रसन्न-चित्त रहना चाहिए। समय के साथ उसने अपनी खुशी के लिए अनेेक साधन विकसित किए हैं परंतु चाँदनी रात्री में नौका-विहार का अपना अलग ही स्थान है। इस आनंद का अनुभव मुझे तब हुआ जब पिछले वर्ष मैं अपने मित्रों के साथ नौका-विहार के लिए गया था।

बात पिछले वर्ष अप्रैल माह की है जब मैं अपने मित्रों के साथ बैठा हुआ कहीं घुमने के लिए योजना बना रहा था। रात्रि का पहला प्रहर था। मेरा एक मित्र खिड़की के बाहर दृश्य को देखकर अचानक बोल पड़ा कि ‘ बाहर क्या सुहावना दृश्य हैं, क्या चाँदनी रात हैं ? ‘ उसके इतना कहते ही अचानक मेरे मस्तिष्क में विचार आया कि क्यों न हम सभी नौका-विहार के लिए चलें । मेरा प्रस्ताव सभी कोे पसंद आया और हमने गाडी़ उठाई और गंगा तट पर जा पहुँचे। वहाँ हमारी तरह कुछ अन्य व्यक्ति भी नौका-विहार हेतु आए हुए थे।

वहाँ पहुँचने पर नदी के तट का दृंश्य देखते ही बनता था। तट के समीप किले की दीवार से झाँकता विद्युत का प्रकाश व चाँदनी रात में हल्के नीले रंग में नहाए हुए लोगों से भरा  नदी का किनारा अत्यंत मनोहारी प्रतीत हो रहा था। नदी में तैरती हुई नौकाएँ व लहलहाती हुई जल तरंगों का दृश्य किसी महान कलाकार की सजीव कृति-सा प्रतीत हो रहा था। हम सभी इस सुहावने दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो चुके थे।

हम सब उस मनोहारी दृश्य को देखने में ही इस प्रकार भाव-विभोर हो चुके थे कि थोड़ी देर के लिए तो हम भूल ही गए कि हम सब यहाँ नौका-विहार केक लिए आए हैं, तभी तट से एक मल्लाह की आवाज हमारे कानों में टकराई – ‘‘ बाबू जी, आइए मेरी नौका तैयार है इसका आनंद उठाइए । ‘‘ हमने तुरंत उससे पैसे पता किए और उसकी नौका में बैठ गए। हमारे बैठते ही उसने अपनी नौका को तट से खोल दिया। हमारे अतिरिक्त दो बूढे़ लोग भी थोडी़-सी देर में हमारे मित्र बन गए। दोनों व्यक्ति बडे़ ही अनुभवी थे, उन्हांेने पहले भी कई बार नौका-विहार का आनंद उठाया था। हम उनके पूर्व के अनुभवों को सुनकर हर्षित हो रहे थे।

नाव के चलते ही हम सभी हर्षपूर्वक करतल ध्वनि करने लगे। मल्लाह नाव को खेता हुआ नदी के मध्य की ओर ले चला। थोड़ी ही देर में जल की तरंगों की लय के साथ हमारी नौका चलने लगी। हम सभी हर्षाेल्लास से परिपूर्ण थे। कभी हम नदी के जल को हाथों से छूते तो कभी मल्लाह को नौका खेते हुए देखते । चाँदनी रात्री से नौका-विहार का वह अनुभव हम सभी को भाव-विभोर करने वाला था। नदी के मध्य से जल तरंगों के बीच नौका में विचरण करते हुए तट का दृश्य तो देखते ही बनता था। संपूर्ण वातावरण बहुत ही स्वच्छ, अद्भुत एवं शांत लग रहा था। सारा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी दूसरे लोक में पहुँच गए हों। जल तरंगों की मधुर कोलाहल ऐसी प्रतीत होती थी जैसे किसी यौवना ने सितार के तार छेड़ दिए हों । गंगा रदी का स्वरूप धवल चाँदनी में  नहाया हुआ किसी शांत निःशब्द तेपस्विनी की भाँति लगता था। हम सभी नौका-विहार का भरपूर आनंद उठा रहे थे कि हमें पता न चला कि मल्लाह नाव को तट पर कब ले आया।

                नौका-विहार के पश्चात् तट पर उतरते समय हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम अभी तक कोई सुखद स्वप्न देख रहे थे। आकाश का नीला विस्तार, गंगा की शाश्वत लहरें तथा चंद्रमा का धवल प्रकाश सभी कुछ मन को प्रसन्न कर रहा था। मन बार-बार यही कह उठता था कि ‘ हे प्रभु तुम्हारी रचना कितनी अद्भुत और कितनी सुंदर है।

निबंध नंबर : 02

चाँदनी रात में नौका-विहार

नौकायन यानि नाव चलाने में कुशलता का प्रदर्शन आज अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में एक महत्त्वपूर्ण खेल माना जाता है। इस की भी बाकायदा प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। नौकायन या नौका-विहार एक प्रकार का प्रतियोगी खेल तो है ही, इस कारण एक अच्छा व्यायाम भी है। लेकिन इस से भी बढ़ कर यह मनोरंजन का, भी एक अच्छा एवं उपयोगी साधन है। विशुद्ध मनोरंजन के लिए किए गए नौका-विहार में वातावरण की अनुकूलता का महत्त्व बहुत अधिक माना जाता है। नौका-विहार-स्थल के आस-पास यदि प्राकतिक सौन्दर्य से भरे दश्य हों तब तो कहना ही क्या ? उस पर यदि रात भी हो और वह भी पूर्णमासी की दूधिया या चान्दनी में नहाई उजली रात, तो सोने पर सुहागा होने की कहावत खुद ही चरितार्थ होती लगने लगती है।

हमारे देश में शरद ऋतु का बड़ा महत्त्व माना जाता है। वसन्त ऋतु यदि ऋतुओं का राजा है, तो शरद ऋतु को ऋतुओं की रानी कहा जाता है। रानी इसलिए कि इस ऋतु की प्राकृतिक शोभा तो वसन्त से अधिक हुआ ही करती है, गुलाबी ठण्डक का सुहावना मौसम भी उसमें कहीं अधिक बढ़ चढ़कर और सहनीय हुआ करता है। शरद् ऋतु हो और उस पर शरद् ऋतु की पूर्णमासी की तिथि, उसमें खिली चान्दनी, किस का मन नहीं मोह लिया करती? सो उस दिन अचानक यह सुनकर कि दो दिन बाद शरद पूर्णिमा है, हम मित्रों के मन में यह विचार बिजली की तरह कौंध गया कि क्यों न उस दिन नगर से कहीं दूर नदी तट पर जाकर दिन में पिकनिक और रात में नौका-विहार का आनन्द लिया जाए ? हमने अपने कुछ अन्य मित्रों से भी इस बात की चर्चा की। सभी ने कहा कि विचार बहुत ही अच्छा है। भई, मजा ही आ जाएगा चान्दनी रात में नौका-विहार का। हम सभी ने बातचीत करके अपने परिवार-जनों से भी आज्ञा ले ली। उन्होंने सावधान और मिल-जुल कर रहने का उपदेश देकर हमें आज्ञा दे दी।

दो दिन पहले से ही हम पिकनिक आदि के लिए सामान जुटाने लगे। शरद पूर्णिमा का दिन उगते ही दो मित्रों द्वारा लाई गई मोटर वेन में अपना सामान लाद कर हम नगर से 6-7 किलोमीटर दूर स्थित नदी-तट की ओर चल दिए। आधे घण्टे से भी कम समय में हम लोग वहाँ जा पहुँचे। वहाँ नदी-तट के आस-पास का वातावरण सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों से भरा-पूरा था। हम शरारती लड़कों के लिए वह नया-नया भी था। इस कारण हमें पहली नजर में ही सब कुछ बड़ा अच्छा लगा। एक वृक्षों का काफी खुला झुरमुट उसने साथ लाई बड़ी दरी बिछा दी। साथ लाया सामान वहाँ एक तरफ रख दिया। आस-पास के समस्त वातावरण और नदी तट तक घूम आए। वहाँ किनारे पर स्थित कों के पास जाकर रात के समय नौका-विहार करने के लिए दो नौकाएँ भी बुककरा आए। हमारे लौटने तक अपने आप को चाय बनाने में माहिर मानने वाले दो मित्रों बाय बना रखी थी। वह कच्ची-पक्की जैसी भी चाय थी, सचमुच बड़ी अच्छी लगी। में उसी तरह के बनाए गए कच्चे-पक्के पकौड़े-वाह ! उनका तो कहना ही क्या था।

इसके बाद बिछी दरी पर बैठकर हम लोग काफी समय तक शेरो-शायरी और चुटकलेबाजी का आनन्द लेते रहे। इधर-उधर की गप्पबाजी भी होती रही। इस के बाद कुछ मित्र पेड़ों पर चढ़ने की कोशिश करने लगे, कुछ चहकते पक्षियों की आवाज की नकल, कुछ पक्षियों के पाँवों की तरह दोनों हाथ फैलाकर उड़ने का अभिनय करते हुए एक-दूसरे के पीछे भाग-दौड़ करते रहे। मैंने बाकी तीन मित्रों को साथ लेकर कैरम बोर्ड पर अपने स्ट्रोक आजमाने शुरू कर दिए। दो-एक मित्रों को गाने का शौक था, सो वे बड़े ही मधुर स्वरों में गाने लगे। इस प्रकार समय बीतने का पता ही न चल पाया। खाने का प्रबन्ध हम लोग घरों से ही कर आए थे। सो एक-डेढ़ बजे के लगभग कुछ टिफिन कैरियर खोल कर हमने डटकर खाना खाया और उसके बाद ऊँघने, खेलने, गाने, गप्पें हाँकने या घूमने फिरने जैसा जो कार्य जिसे अच्छा लगा करने लग पड़ा।

कब शाम ढल आई, पूर्व दिशा में चन्द्रमा का पूर्ण बिम्ब उग आया, पता ही नहीं चल पाया। जल्दी से सुबह का बचा खाना खा-पी अपना सामान समेटकर हम लोग नदी-तट पर जा पहँचे। दो नावें लिए नाविक हमारा इन्तजार कर रहे थे, सो नावों पर सवार होते ही उन्होंने चप्पू चलाना आरम्भ कर दिया। धीरे-धीरे नावें मंझधार की ओर बढ़ती गई। उधर रात का राजा पूर्णिमा की चाँदनी में अधिक उजला होकर आकाश के मध्य तक आ गया। पानी में पड़ती आकाश की परछाईं में चाँद तारों के बिम्ब देख कर लगता था, जैसे उन्होंने भी हमारे साथ तैरते हुए चलना शुरू कर दिया है। दूधिया चाँदनी में नहाया आस-पास का प्राकृतिक वातावरण देख कर लगता था जैसे हम इन्द्र के नंदन कानन के बीचों-बीच बह रही आकाश गंगा में हंसों पर तैर रहे हों। तभी एक मांझी ने बड़े ही मधुर स्वर में किसी लोकगीत की धुन छेड़ दी। हमारे एक मित्र को भी वह लोकगीत आता था, सो वह भी उसके स्वर के साथ स्वर मिलाने लगा। लगा, जैसे इस से खुश होकर चाँद-तारे, नदी की धारा, आस-पास की सारी प्रकृति मुस्कराने-गाने लगी है।

इस चाँदनी रात के मदहोश कर देने वाले वातावरण में नावों पर सवार हम लोगों को तन मन की सुधि तक बिसर चुकी थी। समय कब बीत गया, हम कहाँ से कहाँ पर गए, कुछ पता न था। तभी कहीं से सुबह होने का घंटा बज उठा। कहीं पास के मन्दिर से शंख और घण्टे घडियाल की गूंज सुनाई देने लगी। पता चला, हम लोग बाँध के पास पहुँच चुके हैं। यह भी कि सुबह होने वाली है सो नाविकों ने नौकाएँ मोड दी। उधर सूर्य उग रहा था और इधर हम चलने ही वाले स्थान पर पहुँचकर नावों से उतर रहे थे। चाँदनी रात में नौका-विहार का आनन्द एक नशे की तरह हमारे मन-मस्तिष्क को छा रहा था-कभी न उतरने के लिए।

निबंध नंबर : 03

चाँदनी रात में नौका विहार

Chandni Raat mein Nauka Vihar

 

रात्रि के गहन अन्धकार में भी अपना ही सौन्दर्य होता है। विस्तृत आकाश और उस पर झिलमिल करते तारे कितने सुन्दर दिखाई देते हैं और सौभाग्यवश

यदि वह चाँदनी रात हो तो उस की शोभा कई गुणा बढ़ जाती है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई परी गगन से उतर रही है। एक अव्यक्त शब्द सा गूंजने लगता है।

ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरेधीरे

जिस निर्जन में सागर लहरी |

अम्बर के कानों में गहरी बातें कहती हों

मेरा मन पढ़ने में नहीं लग रहा था। सहसा ही पाँच साथी और भी आ गये जिनका पढ़ने का मूड नहीं था। हम सबने मिलकर नौका विहार करने का निश्चय किया । हम सब घाट की ओर चल दिए । विशाल घाटों के नीचे पंक्तिबद्ध नौकाएँ एक बहुत ही मनोहर दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं । नाविक से भाड़ा तय करके हम सब साथी नौका सवार हुए । बैठने से पूर्व कुछ साथियों ने गंगा जल चढ़ाया ।

निपुण नाविक ने ‘हर हर गंगे’, ‘जय गंगा मैया’ कहकर नाव को किनारे से खोल दिया । नाव के चलते ही पानी से लहरें उठने लगी और नदी का शान्त वातावरण टूट गया । आकाश में शरद पूर्णिमा का गोल चन्द्रमा प्रकट हुआ । चन्द्रमा की परछाईं झील में नृत्य करने लगी । ऐसा लगता था जैसे हम किसी स्वर्ग में पहुंच गए हों । कुछ साथियों ने गाना शुरु कर दिया । सभी वाह वाह की आवाजें लगा रहे थे और बीच बीच में कोई साथी तो गीत की विशेष पंक्ति को दुबारा गाने की प्रार्थना भी करते ।

दोनों किनारों के बीच बहती सफेद चाँदनी से नहायी हुई नदी अपनी तीव्र गति से इठलाती.बल खाती अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए मिलन के गीत गाती अग्रसर हो रही थी । जहाँ तक दृष्टि जाती थी जल ही जल दृष्टिगोचर होता था। कभी कभी तो ऐसा लगता था कि चन्द्रमा नदी के स्वच्छ पानी में अपना मुखड़ा देखने को बहुत ही उतावला हो रहा हो परन्तु उसे क्या पता था कि नदी का जल हमारे आने से लहरों से भर गया है। उसका सुन्दर मुखड़ा पानी में दिखाई तो पड़ रहा था, किन्तु टेढ़ा-मेढ़ा होकर ।

आसमान के बाद हमारा ध्यान फिर नदी की ओर गया । शान्त एवं स्वच्छ गलम चाद का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था। वह प्रतिबिम्ब आकाश के चाँद से कहीं आधक सुन्दर लग रहा था। कछ देर चुप-चाप बैठे रहने के उपारान्त मित्रों के आग्रह पर मैंने ‘रात चांदनी’ कविता सुनाई । फिर हमने डांडे सम्भाल ली और नाका धीरे धीरे खेने लगे । कभी-कभी मछलियाँ हमारी नाव के पास अपना मख दिखा जातीं परन्तु हमें खाली हाथ देखकर तुरन्त पानी में डुबकी लगा लेतीं।

कुछ समय तक गाना बजाना बन्द रहा परन्तु साथियों के हृदय में फिर इच्छा प्रकट हुई कि गाने बजाने का कार्यक्रम चलना चाहिए । फिर क्या था संगीत की स्वर लहरियां आकाश को छूने लगीं । संगीत की मधुर ध्वनि ने सभी को मन्त्र मुग्ध कर दिया । हमारी मित्र मण्डली ही नहीं, हमारा नाविक भी संगीत की मस्ती में झूमने लगा । तभी उधर से एक दसरी नाव आती दिखाई दी । नाव पास आने पर पूछने पर पता चला कि वे लोग भी नौका विहार का आनन्द लेने के लिए चाँदनी रात में निकले हुए हैं। उनसे परिचय हुआ ।

सहसा आकाश के एक कोने में छोटी सी काली बदली दिखाई दी, हवा तेज़ी से चल रही थी । सभी ने विचार किया कि अब जल्दी ही वापस लौटना चाहिए । सभी की नज़रें ऊपर की तरफ लगी हुई थीं । हमारी नाव किनारे की ओर तेजी से बढ़ रही थी । धीरे-धीरे हल्की-हल्की बून्दा-बांदी शुरू हो गई परन्तु किनारा अब दूर नहीं था। कुछ ही क्षणों में हमारी नाव किनारे पर आ लगी और हमने घाट पर.बने हुए सामने वाले मन्दिर में जाकर शरण ली । मल्लाह को किराया देकर विदा किया ।

सारा नगर सपनों की गहरी निद्रा में सोया था। केवल नगर के चौकीदार. आवारा कुत्ते तथा सड़कों के विद्युत बल्ब ही जाग रहे थे । हमने अपने गन्तव्य पर पहुंचने के लिए रिक्शे किए । हमने अपने होस्टल के चौकीदार को, जो बेचारा आधा सोया था आधा जागा था और हमारे आने की प्रतीक्षा कर रहा था जगाया, और अपने अपने कमरों की शरण ली ।

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