Hindi Essay on “Chandni Ratri me Nauka Vihar” , ”चाँदनी रात्री में नौका-विहार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
चाँदनी रात्री में नौका-विहार
Chandni Ratri me Nauka Vihar
प्रकृति विभिन्न रूपों में अपना सौंदर्यं प्रकट करती है। समय परिवर्तन के साथ इसका सौंदर्य भी अनेक रंगों में प्रकट होता है। प्रातः काल उगते हुए सूर्य की ललिमा एक ओर अद्भुत छटा बिखेरती है तो रात्रिकाल में चंद्रमा के प्रकाश में प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है। मनुष्य को यथासंभव प्रसन्न-चित्त रहना चाहिए। समय के साथ उसने अपनी खुशी के लिए अनेेक साधन विकसित किए हैं परंतु चाँदनी रात्री में नौका-विहार का अपना अलग ही स्थान है। इस आनंद का अनुभव मुझे तब हुआ जब पिछले वर्ष मैं अपने मित्रों के साथ नौका-विहार के लिए गया था।
बात पिछले वर्ष अप्रैल माह की है जब मैं अपने मित्रों के साथ बैठा हुआ कहीं घुमने के लिए योजना बना रहा था। रात्रि का पहला प्रहर था। मेरा एक मित्र खिड़की के बाहर दृश्य को देखकर अचानक बोल पड़ा कि ‘ बाहर क्या सुहावना दृश्य हैं, क्या चाँदनी रात हैं ? ‘ उसके इतना कहते ही अचानक मेरे मस्तिष्क में विचार आया कि क्यों न हम सभी नौका-विहार के लिए चलें । मेरा प्रस्ताव सभी कोे पसंद आया और हमने गाडी़ उठाई और गंगा तट पर जा पहुँचे। वहाँ हमारी तरह कुछ अन्य व्यक्ति भी नौका-विहार हेतु आए हुए थे।
वहाँ पहुँचने पर नदी के तट का दृंश्य देखते ही बनता था। तट के समीप किले की दीवार से झाँकता विद्युत का प्रकाश व चाँदनी रात में हल्के नीले रंग में नहाए हुए लोगों से भरा नदी का किनारा अत्यंत मनोहारी प्रतीत हो रहा था। नदी में तैरती हुई नौकाएँ व लहलहाती हुई जल तरंगों का दृश्य किसी महान कलाकार की सजीव कृति-सा प्रतीत हो रहा था। हम सभी इस सुहावने दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो चुके थे।
हम सब उस मनोहारी दृश्य को देखने में ही इस प्रकार भाव-विभोर हो चुके थे कि थोड़ी देर के लिए तो हम भूल ही गए कि हम सब यहाँ नौका-विहार केक लिए आए हैं, तभी तट से एक मल्लाह की आवाज हमारे कानों में टकराई – ‘‘ बाबू जी, आइए मेरी नौका तैयार है इसका आनंद उठाइए । ‘‘ हमने तुरंत उससे पैसे पता किए और उसकी नौका में बैठ गए। हमारे बैठते ही उसने अपनी नौका को तट से खोल दिया। हमारे अतिरिक्त दो बूढे़ लोग भी थोडी़-सी देर में हमारे मित्र बन गए। दोनों व्यक्ति बडे़ ही अनुभवी थे, उन्हांेने पहले भी कई बार नौका-विहार का आनंद उठाया था। हम उनके पूर्व के अनुभवों को सुनकर हर्षित हो रहे थे।
नाव के चलते ही हम सभी हर्षपूर्वक करतल ध्वनि करने लगे। मल्लाह नाव को खेता हुआ नदी के मध्य की ओर ले चला। थोड़ी ही देर में जल की तरंगों की लय के साथ हमारी नौका चलने लगी। हम सभी हर्षाेल्लास से परिपूर्ण थे। कभी हम नदी के जल को हाथों से छूते तो कभी मल्लाह को नौका खेते हुए देखते । चाँदनी रात्री से नौका-विहार का वह अनुभव हम सभी को भाव-विभोर करने वाला था। नदी के मध्य से जल तरंगों के बीच नौका में विचरण करते हुए तट का दृश्य तो देखते ही बनता था। संपूर्ण वातावरण बहुत ही स्वच्छ, अद्भुत एवं शांत लग रहा था। सारा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी दूसरे लोक में पहुँच गए हों। जल तरंगों की मधुर कोलाहल ऐसी प्रतीत होती थी जैसे किसी यौवना ने सितार के तार छेड़ दिए हों । गंगा रदी का स्वरूप धवल चाँदनी में नहाया हुआ किसी शांत निःशब्द तेपस्विनी की भाँति लगता था। हम सभी नौका-विहार का भरपूर आनंद उठा रहे थे कि हमें पता न चला कि मल्लाह नाव को तट पर कब ले आया।
नौका-विहार के पश्चात् तट पर उतरते समय हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम अभी तक कोई सुखद स्वप्न देख रहे थे। आकाश का नीला विस्तार, गंगा की शाश्वत लहरें तथा चंद्रमा का धवल प्रकाश सभी कुछ मन को प्रसन्न कर रहा था। मन बार-बार यही कह उठता था कि ‘ हे प्रभु तुम्हारी रचना कितनी अद्भुत और कितनी सुंदर है।