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Hindi Essay on “Chai ki Atam Katha” , ”चाय की आत्मकथा” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

चाय की आत्मकथा

मै ‘चाय’ आज के युग की अमर देंन  हूँ | मै आज सारे विश्व में व्यापित हूँ | आधुनिक पेय पदार्थो में मेरा विशेष स्थान है | मेरे मन में किसी के प्रति लेशमात्र भी भेदभाव नही | मै सभी को समान स्फूर्ति प्रदान करती हूँ | बड़े – बड़े होटलों और भवनों से लेकर छोटी-छोटी झोपड़ियो तक मेरी पहुँच है | शादी – विवाह व स्वागत समारोहों में मै सबके आदर का पात्र बन जाती हूँ |

मेरा जन्म चीन में हुआ; परन्तु मुझे पालने – पोसने का श्रेय इंग्लैण्ड को जाता है | सबसे पहले चीन के एक दूत ने ही मुझे उपहार स्वरूप महारानी एलिजाबेथ को दिया था | धीरे – धीरे मै चीन से जापान और फिर यूरोप के देशो में फैलने लगी | उस समय मेरा मूल्य सौ रुपए प्रति पौण्ड तक रहता था | इंग्लैण्ड में मुझे बहुत सम्मान मिला | वहाँ की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने मेरा व्यापार प्रारम्भ कर दिया | वह मुझे जावा तथा चीन से मंगवा कर इंग्लैण्ड में बेचने लग गई | सन 1834 ई. में चीन ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मुझे देने से इंकार कर दिया , जिस पर कम्पनी ने मेरी खेती प्रारंभ कर दी | बाद में मेरी खेती भारत के कुमाऊँ क्षेत्र , असम के सादिया प्रदेश में होने लगी | कुछ समय बाद असम, दार्जिलिग तथा लंका के खेत मेरी उपज से लहलहाने लगे | मेरी माँग विश्वभर में बढती गई |

मेरे पौधे चार प्राकार के होते है जिसकी ऊचाई दस फुट से लेकर पचास फुट तक होती है | मेरी पत्तियों की चौडाई ढाई इंच से लेकर चौदह इंच तक होती है | धरती में मेरा बिज ही बोया जाता है | इसके लिए सरल मिट्टी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है | मेरे फूल सफेद रंग के होते है | जब मेरे पौधे तीन वर्ष के होते है तो उनकी पत्तियाँ चुनी जाती है | इन्हें विशेष सावधानी से चुना जाता है | ये पत्तियाँ चुनी जाने पर टोकरियो में भर ली जाती है और कारखानों में भेज दी जाती है | वहाँ पहले इन्हें सुखाया जाता है, फिर रोलर की सहायता से इनका चूर्ण बना दिया जाता है | फिर इनका वैज्ञानिक यंत्रो की सहायता से निर्माण किया जाता है | सुगन्धित तरल पदार्थ मिलाकर इन्हें सुगन्धित बनाया जाता है | फिर कही जाकर छोटे – बड़े डिब्बो में बन्द की जाती है तथा पेटियों में भरकर देश – विदेश में भेज दी जाती है |

आज मेरा चारो और अर्थात सारे विश्व में बोलबाला है | मुझमे अनेक गुण दोष भी है | मेरा सबसे बड़ा गुण यह है कि में अतिथियों के स्वागत के लिए सरलता से उपलब्ध हो जाती हूँ | परन्तु मुझमे दोष यह है कि मेरे अन्दर कुछ ऐसे उत्तेजक तत्त्व (जैसे निकोटिन) होते है जो रक्त में प्रवेश करके उसके स्वाभाविक गुणों को धीरे- धीरे नष्ट कर देते है | मेरा अधिक प्रयोग करने से मन्दाग्नि का रोग हो जाता है | अत : मेरा प्रयोग सीमा में रह कर ही किया जाना चाहिए |

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commentscomments

  1. vaibhav devade says:

    very helpful essay thank you

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