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Hindi Essay on “Badhti Jansankhya” , ” बढ़ती जनसंख्या : एक भयानक समस्या” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

जनसंख्या: समस्या एंव समाधान
Jansankhya Samasya evm Samadhan

Best 5 Hindi Essay on “Badhti Jansankhya”

निबंध नंबर :-01

हमारे देश में अनेकांे जटिल समस्याएँ हैं जो देश के विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं। जनसंख्या वृद्धि भी देश की इन्हीं जटिल समस्याओं में से एक है। संपूर्ण विश्व में चीन के पश्चात् भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। पंरतु जिस गति से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब यह चीन से भी अधिक हो जाएगी। हमारी जनसंख्या वृद्धि की दर का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् मात्र पाँच दशकों में यह 33 करोड़ से 100 करोड़ के आँकड़े को पार कर गई है।

देश में जनसंख्या वृद्धि के अनेकों कारण हैं। सर्वप्रथम यहाँ की जलवायु प्रजनन के लिए अधिक अनुकुल है। इसके अतिरिक्त निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण विचार आदि भी जनसंख्या वृद्धि के अन्य कारण हैं। देश मे बाल-विवाह की पंरपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में विद्यमान है जिसके फलस्वरूप भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं। शिक्षा का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण हैं। परिवार नियोजन के महत्व को अज्ञातवश लोग समझ नहीं पाते हैं। इसके अतिरिक्त पुरूष समाज की प्रधानता होने के कारण लोग लड़के की चाह में कई संतान उत्पन्न कर लेते हैं। परंतु इसके पश्चात् उनका व्यतीत भरण-पोषण करने की सामथ्र्य न होने पर निर्धनता व कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं।

देश ने चिकित्सा के क्षेत्र मंे अपार सफलताएँ अर्जित की हैं जिसके फलस्वरूप जन्मदर की वृद्धि के साथ ही साथ मृत्युदर मंे कमी आई है जिसके फलस्वरूप जन्मदर की वृद्धि के साथ ही साथ मृत्युदर में कमी आई है। कुष्ठ तपेदिक व कैंसर जैसे असाध्य रोगों का इलाज संभव हुआ है जिसके कारण भी जनसंख्या अनियंत्रित गति से बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या में बढ़ोतरी का मूल कारण है अशिक्षा और निर्धनता। आँकड़े बताते है कि जिन राज्यों मे शिक्षा-स्तर बढ़ा हुआ है और निर्धनता घटी है वहाँ जनसंख्या की वृद्धि दर में भी हास हुआ है। बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि प्रांतो में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक है क्योंकि इन प्रांतों मे समाज की धीमी तरक्की हुई है।

देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या आज अत्यंत भयावह स्थिति मंे है जिसके फलस्वरूप देश को अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने का दुष्परिणाम यह है कि स्वतंत्रता के पाँच दशकों बाद भी लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रही है। इन लोगों को अपनी आम भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। हमने निस्संदेह नाभिकीय शक्तियाँ हासिल कर ली हैं परंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज भी करोड़ों लोग निरक्षर हैं। देश में बहुत से बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक स्वस्थ भारत की हमारी परिकल्पना को साकार रूप देना कितना दुष्कर कार्य है।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर अकंुश लगाना देश के चहुमुखी विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब स्थिति हमारे नियंत्रण से दूर हो जाएगी। सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों को और विस्तृत रूप दें। जनसंख्या वृद्धि की रोकथाम के लिए प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं अपिंतु सामाजिक, धार्मिक एंव व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास आवश्यक हैं। सभी स्तरों पर इसकी रोकथाम के लिए जनमानस के प्रति जागृति अभियान छेड़ा जाना चाहिए।

भारत सरकार ने विगत वर्षों में इस दिशा में अनेक कदम उठाए हैं परंतु इन्हें सार्थक बनाने के लिए और भी अधिक कठोर उठाना आवश्यक है। देश के स्वर्णिम भविष्य के लिए हमें कुछ ऐसे निर्णय भी लेने चाहिए जो वर्तमान में भले ही अरूचिकर लगें परंतु दूरगामी परिणाम अवश्य ही सुखद हों – जैसे हमारे पड़ोसी देश चीन की भाँति एक परिवार में एक से अधिक बच्चे पर पांबदी लगाई जा सकती है। अधिक बच्चे पैदा करने वालों का प्रशासनिक एंव सामाजिक स्तर पर बहिष्कार भी एक प्रभावी हल हो सकता है। यदि समय रहते इस दिशा में देशव्यापी जागरूकता उत्पन्न होती है तो निस्संदेह हम विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना सकती हैं।

निबंध नंबर :-02

बढ़ती जनसंख्या : एक भयानक समस्या

Badhti Jansankhya ek bhayanak samasya

     भूमिका – भारत के सामने अनेक समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं | जनसंख्या-विस्फोट उनमें से सर्वाधिक है | एक अरब भारतियों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे | परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं |

     भारत की जनसंख्या – आज विश्व का हर छठा नागरिक  भारतीय है | चीन के बाद भारत भी आबादी सर्वाधिक है | 

     जनसंख्या-वृद्धि के कारण – भारतीय परंपराओं में बाल-बच्चों से भरा-पूरा घर ही सुख का सागर माना जाता है | इसलिए शादी करना और बच्चों की फौज़ जमा करने में हर नागरिक रूचि लेता है | यहाँ के लोग मानते हैं कि पिता का वंश चलाना हमारा धर्म है | ईश्वर-प्राप्ति के लिए पुत्र का होना अनिवार्य मन जाता है | परिणामस्वरूप लड़कियाँ होने पर संतान बढती जाती है |

     दुष्परिनाम – जनसंख्या के दुष्परिणामों की कहानी स्पष्ट और प्रकट है | जहाँ भी देखो, हर जगह भीड़ ही भीड़ का सम्राज्य है | भीड़ के कारण हर जगह गंदगी, अव्यवस्था और हौचपौच है | देश का समुचित विकास नहीं हो पा रहा | खुशहाली की जगह लाचारी बढ़ रही है | बेकारी से परेशान लोग हिंसा, उपद्रव और चोरी-डकैती पर उतर आते हैं |

     समाधान – जनसंख्या-वृद्धि रोकने के लिए आवश्यक है कि हर नागरिक अपने परिवार को सीमित करे | एक-से अधिक संतान को जन्म न दे | लड़के-लड़की को एक समान मानने से भी जनसंख्या पर नियंत्रण हो सकता है |

     परिवार-नियोजन के साधनों के उचित उपयोग से परिवार को मनचाहे समय तक रोका जा सकता है | आज जनसंख्या रोकना राष्ट्रीय धर्म है | इसके लिए कुछ भी करना पड़े, वह करना चाहिए |

 

निबंध नंबर :-03

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम

अथवा

बढ़ती जनसंख्याः भविष्य के लिए भयानक चुनौती

अथवा

जनसंख्या विस्फोट: एक समस्या

                विश्व की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट रूप से स्वीकार की गई है कि विश्व की जनसंख्या वृद्धि दर में जो कमी आई है, उसका कारण चीन सरकार द्वारा उठाए गए कारगर कदम हैं। चीन की सरकार यह भतीभँति जानती है कि जनसंख्या को रोक बिना आर्थिक उपलब्धियाँ नहीं हो सकती।

                यदि हम भारत की स्थिति पर विचार करें तो हमें ज्ञात होगा कि 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या 100 करोड़ को पार कर गई है। अब यह आँगडा़ 105 करोड़ छू रहा है। इतनी विशाल जनसंख्या को उपयोग की वस्तुएँ उपलब्ध कराना अपने आप में एक समस्या है। भारत एक गरीब देश हैं इसके संसाधन भी सीमित हैं। जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाए बिना देश में आर्थिक सम्पन्नता लाना अत्यंत कठिन है। जनसंख्या वृद्धि से बहुत अधिक समस्याएँ अत्पन्न होती हैं।

                जनसंख्या वृद्धि से अधिक आवासीय स्थजों की आवश्यकता होती है। अधिक मकान बनाने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है। इससे भूमि पर दबाव पड़ता है। कृष योग्य भूमि धन के लालच में बेच दी जाती हैै। कृषि-उत्पादन में गिरावट होती है। आज शहरीकरण के कारण सीमाएँ फैलती जा रही हैं। इस प्रवृति को रोका जाना नितांत आवश्यक है।

                अधिक आबादी के लिए अधिक वस्तुओं की आवश्यकता होगी । न केवल उदरपूर्ति के लिए बल्कि अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक संसाधन जुटाने होंगे। यदि साधन पर्याप्त न हुए तो देश की स्थिति विषम हो जायेगी। अधिक आबादी के लिए अधिक अनाज, अधिक तेल, अधिक कपडा़, अधिक पानी, अधिक यातायात के साधनों की आवश्यमता होगी। पेट्रोल की भी अधिक आवश्यकता होगी। यह सब कैसे प्राप्त किया जाएगा? पैट्रलियम उत्पादों के बारे मे विशेषज्ञों का मत है कि वह 40-50 वर्षो में समाप्त हो जायेगे।

                जनसंख्या-वृद्धि  के कारण शिक्षा-सुविधाओं का आभाव महसूस किया जा रहा है। देश की बहुसंख्या को शिक्षा की प्रथमिक सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही हैं। देश में पर्याप्त मात्रा में प्रथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल, काॅलेज व शैक्षणिक संस्थाओं का आभाव है। जब तक देश के सभी बच्चों को शिक्षा की सुविधा नहीं मिलेगी तब तक इस देश का सर्वांगीय विकास संभव नहीं है। इस देश की समस्त समस्याओं के मूल में अशिक्षा है।

                जनसंख्या-वृद्धि के कारण स्वास्थ्य सुविधाओं की भी बहुत कमी है। देश की अधिकांश जनसंख्या को स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधएँ भी प्राप्त नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों की संख्या सीमित है। जो सरकारी अस्पताल हैं उनमें बहुत अधिक भीड़ है। देश की गरीब जनता निजी अस्पतालों का महँगा खर्च वहन नहीं कर सकती। इस वजह से गरीब लोग इन सुविधाओं के आभाव में मरने को मजबूर हैं।

                हर व्यक्ति चाहता है कि उसे रोजगार उपलब्ध कराया जाए। इसके साथ-साथ अधिक संतान उत्पन्न करना भी प्रत्येक व्यक्ति अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। सरकार के लिए यह संभव नही है कि वह नियोजन के बिना सबको रोजगार उपलब्ध कराए। इसके साथ-साथ सबको रोजगार न मिलने पर अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इससे आर्थिक अपराध बढ़ते हैं। समाज मंे अव्यवस्था फैलती है। राज्य के राजस्व पर अधिक बोझ पड़ता है। इससे देश में असंतोष पैदा होता है। शासन-व्यवस्था में अस्थिरता आती है। इससे देश कमजोर होता है और उसकी एकता एवं अखंडता खतरे में पड़ जाती है। छोटी-छोटी सी समस्याओं को लेकर आंदोलन चलते रहते हैं। इसके लिए राजनीतिक दल भी पूरी तरह उत्तरदायी हैं। वे निकृष्टतम हथकंडे अपनाने तक को तैयार हो जाते हैं।

                उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि जनसंख्य-वृद्धि किसी भी दृष्टि से किसी भी देश के लिए हितकर नहीं है। इसे रोकना होगा। देश तभी प्रगति के तथ पर आगे बढ़ सकेगा जब परिवार नियोजित रहें। जनसंख्या वृद्धि सबसे अधिक निर्धन वर्ग में होती है। प्रश्न यह उठता है कि जनसंख्या पर काबू किन उपायों से पाया जा सकता है।

                जनसंख्या रोकने के लिए सर्वप्रथम जागरूकता का होना आवश्यक है। लोगों को यह समझाना होगा कि छोटा परिवार सुखी परिवार होता है। यदि परिवार छोटा होगा तो माता-पिता अपनी संतान का पालन-पोषण बेहतर ढ़ंग से कर सकंेगे, उन्हें बढ़िया कपडे़ , पौष्टिक भोजन एवं अच्छी शिक्षा दिलाई जा सकती है। बच्चों एवं माताओं के स्वस्थ रहने के लिए परिवार को नियंत्रण में रखना आवश्यक है।

                लड़के के पैदा होने की कामना भी जनसंख्या को बढ़ाती है। अब हमें लड़के-लड़की को एक समान मानना होगा। समाज में लड़की को सम्मान दिलाने से भेदभाव स्वयं मिट जाएगा। इसके बाद हम लड़की के बाद लड़के की कामना करना स्वयं छोड़ देंगे। ’एक ही संतान काफी है’ -यह विचार परिवार नियोजन के लक्ष्य को पूरा कर सकता है।

 

निबंध नंबर :-04

भारत की जनसंख्या की समस्या

Bharat ki Jansankhya Samasya 

भारत एक विशाल देश है। उसकी आबादी अधिक है। 1991 की जनगणना के अनुसार देश की आबादी 843,930,861 है। 1981 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार यह 683,810,051  थी। अप्रैल 1971 की जनगणना में देश की आबादी 547,949,809 थी।

जबकि 1961 में लगभग 44 करोड़ और 1951 में लगभग 36 करोड़ थी। पिछले दस वर्षों के दौरान जनसंख्या उल्लेखनीय रूप में बढ़ी है। इस प्रकार जन्म-दर में विशेष गिरावट नहीं आयी है, जबकि मृत्यु-दर में पर्याप्त कमी है। अधिकारिक सूचनाओं के अनसार 1961 से 1970 के बीच जन्म-दर प्रति हजार व्यक्ति 41.1 थी और उसी दौरान मत्य-दर प्रति एक हजार व्यक्तियों पर 18.9 थी। इस बात का पता लगाया जा चुका है कि अप्रैल 1974 में जन्म-दर प्रति हजार व्यक्ति केवल 35.4 थी। किन्तु हमारा पूर्व निश्चित लक्ष्य जन्म-दर को प्रति हजार व्यक्ति 32 करने का है।

अब जन्म-दर 30.05 प्रति हजार है तथा मृत्यु दर 10.02 प्रति हजार है। पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 1000 : 929 है।

इन आंकड़ों से यह प्रकट होता है कि देश एक बहुत बड़ी जनसंख्या सम्बन्धी समस्या का सामना करने वाला है। प्रत्येक बच्चे के विकास के साथ देश के साधन काफी सीमा तक प्रभावित होते हैं। जब वह बड़ा होता है तो उसे रोजगार तथा दूसरी अन्य सुविधाओं की जरूरत होती है, अतः सरकार का सबसे अधिक बल परिवार कल्याण के कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन पर है।

आपातस्थिति के दौरान सरकार परिवार नियोजन के कार्यक्रम को लागू करने की भरपूर कोशिश कर रही थी और मोटे अनुमान के अनुसार लगभग एक करोड़ आदमी उससे प्रभावित हुए थे। उस दौरान हालांकि परिवार नियोजन के क्षेत्र में सरकार को बहुत अधिक सफलता मिली थी, किन्तु अधिकारियों द्वारा अनुचित बल-प्रयोग का भी उसमें बहुत बड़ा हाथ था जिससे प्रजा में रोष फैल गया और त्राहि-त्राहि मच गई।

बाद में परिवार नियोजन कार्यक्रम की पद्धति में परिवर्तन किया गया और कार्यक्रम का नाम बदलकर ‘परिवार कल्याण कार्यक्रम’ कर दिया गया। सरकार ने उन लोगों की आर्थिक क्षतिपूर्ति भी की जो परिवार नियोजन के असफल आपरेशनों से प्रभावित हुए थे। साथ ही परिवार नियोजन में बल-प्रयोग की भर्त्सना की गई किन्तु विभिन्न प्रचार माध्यमों से लोगों के अन्तःकरण को परिवार नियोजन के महत्त्व के बारे में प्रभावित करने की नीति को अधिक प्रभावी माना गया।

लोग स्वेच्छा से चाहें तो कुछ विशेष जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर सकते हैं या आपरेशन का रास्ता अपना सकते हैं, किन्तु सरकारी प्रचार का माध्यम अखबार व अन्य संचार-साधन ही हैं। उनमें सिर्फ इसी बात का प्रचार किया जाता है कि परिवारों के आकार को छोटा किया जाए। सरकार का ध्येय है कि जनता की भलाई और सरकार किसी भी कार्यक्रम को जनता की इच्छा से ही क्रियान्वित करना बेहतर समझती है।

इसके साथ ही, सरकार योग व जड़ी-बूटियों द्वारा नियन्त्रण करने के साधनों का प्रचार भी कर रही है और चारित्रिक दृढ़ता को भी प्रमुखता दे रही है। इस प्रकार सरकार जनसंख्या को नियंत्रित करने के लगभग सभी सम्भव प्रयत्न कर रही है, किन्तु इस उद्देश्य के लिये बल-प्रयोग किया जाना बहुत ही कठिन कार्य है। सबसे अच्छा तरीका आत्म-नियन्त्रण तथा अन्य ऐसे ही साधन हैं। अतः वर्तमान सरकार परिवार सीमित करने के कार्यक्रम को लोकप्रिय बना रही है और साथ ही जनसंख्या की वृद्धि के प्रति सचेत भी है।

निश्चय ही जनसंख्या को बढ़ने से रोकना होगा, किन्तु केवल प्राकृतिक तरीकों से ही और जनता की स्वेच्छा से ही यह सम्भव हो सकेगा। बल प्रयोग करने से यह उद्देश्य घपले में पड़ जाएगा, जिसके लिए जनसंख्या नियन्त्रण का कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है। मनुष्यों को छोटे परिवार के गुणों तथा उनकी अपनी ही भलाई के बारे में अवगत कराया जाएगा।

निबंध नंबर :-05

बढ़ती हुई जनसंख्या समस्या और समाधान

Badhti Hui Jansankhya Samasya aur Samadhan

 

आज विश्व की जनसंख्या में जिस तीव्र गति से वद्धि हो रही है उसे देखते हए ऐसा प्रतीत होता है कि शीघ्र ही खाद्य पदार्थों की कमी हो जाएगी । माल्थस के सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या जयामितीय (Geometrical) गति से और उपज अंक-गणितीय (Arithmetical) के हिसाब से बढ़ती है। दोनों की गति में इतना अन्तर है कि एक दूसरे से सन्तुलन नहीं बैठाया जा सकता। भारत की बढती हुई जनसंख्या राष्ट्र की एक भयानक समस्या है । देश की समृद्धि के लिए सरकार द्वारा किए गये कार्यों में गतिरोध उत्पन्न होने का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का निरन्तर बढ़ना है। आज हमारी जनसंख्या एक अरब पचास लाख के लगभग पहुँच चकी है । प्रो. कार साण्डर्स का मत है कि यदि यह वद्धि इसी गति से होता रही तब पाँच सौ वर्षों के पश्चात् विश्व की जनसंख्या इतनी हो जाएगी कि मनुष्यों का रहना तो दूर पृथ्वी पर खड़े होने के लिए स्थान नहीं रहेगा ।

भारत में बढ़ती हुई इस जनसंख्या के अनुपात में यहां के आर्थिक उत्पादन नहीं बढ़ पा रहे हैं । भूमि और अन्य प्राकतिक साधन सीमित है । सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम गरीबी हटाओ और उत्पादन बढ़ाओ आदि भी इसीलिए विफल हो रहे हैं । औद्योगिक उत्पादन में भी पांच गुना वृद्धि हुई है परन्तु गरीबी जहाँ की तहाँ है । इसका मूल कारण है जनसंख्या में अनियन्त्रित वृद्धि ।

वेदों में दस दस पुत्रों की कामना की गई है । सावित्री ने यमराज से अपने लिए सौ भाइयों तथा सौ पुत्रों का वरदान मांगा था । कौरव सौ भाई थे। पंडित जी भी किसी को वरदान देते समय यही कहा करते थे ‘दूधो नहाओ, पुतों फलो’ या फिर तुम सातसात पुत्रों का मुँह धोओ । यह सब उस समय की बातें हैं जब जनसंख्या इतनी कम थी कि समाज की समृद्धि, सुरक्षा और सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या की वृद्धि की अत्यन्त आवश्यकता थी । आज की स्थिति बिल्कुल विपरीत है । 1981 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 68.4 करोड़ थी । 1991 में यह संख्या 88 करोड़ जा पहुंची है और अब 2000 में हम एक अरब पचास लाख की संख्या पार कर चुके हैं ।

वास्तव में देश की जनसंख्या ही उसकी शक्ति का आधार होती है परन्तु जब यह जनसंख्या अनियन्त्रित एवं असाधारण रूप से बढ़ती है तो यह देश पर एक बोझ ही होगा । सीमा से अधिक आबादी किसी भी देश के लिए गौरव की बात नहीं कही जा सकती है । भारत इस समय विश्व में जनसंख्या की दष्टि से दुनिया का दूसरा बड़ा देश है । चीन जनसंख्या की दृष्टि से पहला बड़ा देश है । यदि भारत की जनसंख्या इसी प्रकार बढ़ती गई तो ऐसा लगता है भारत चीन से भी आगे बढ़ जाएगा ।

परिवार नियोजन का लक्ष्य है परिवार के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए उपयुक्त वातावरण बनाना। यह काम और भी सरल हो जाए यानि क्रमिक उन्नति, दाम्पत्य जीवन सम्बन्धी विज्ञान तथा वैवाहिक जीवन में सामंजस और असामंजस्य के कारणों अथवा पारिवारिक जीवन की समस्याओं का अध्ययन किया जाए। परिवार नियोजन का असली लक्ष्य परिवार सीमित करने तक ही सीमित नहीं है । परिवार नियोजन के कार्य में केवल कम बच्चे उत्पन्न करना और उनके जन्म में अन्तर देना ही नहीं वरना ऐसे और भी कार्य हैं जो परिवार के कल्याण के लिए आवश्यक हैं जिससे परिवार की सामंजस्य पूर्ण वृद्धि और उन्नति हो ।

कुछ विद्वानों का विचार है परिवार नियोजन जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए एक अमानवीय उपाय यह है कि जीवन स्तर को गिरा दिया जाए, मृत्यु की दर को बढ़ा दिया जाए परन्तु यह बात एक सभ्य समाज में चल नहीं सकती । भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग हैं । देश में कुछ धार्मिक लोग हिन्दुओं की जनसंख्या घटने के कारण परिवार कल्याण जैसे कार्यक्रमों का विरोध करते हैं । ईसाई तथा इस्लाम धर्म को मानने वाले भी धार्मिक दृष्टि से ऐसे कार्यक्रमों का विरोध करते हैं । ऐसी देश विरोधी भावनाओं को देश के हित की दृष्टि से नष्ट करना ज़रूरी है।

आज भी भारत में रहने वाले निर्धन लोग जनसंख्या वृद्धि में गौरव का अनुभव करते हैं । केवल शिक्षित वर्ग ही इस बात को समझता है । इसीलिए वह परिवार कल्याण के कार्यक्रमों में विश्वास रखता है और अपनाता है । सरकार को चाहिए कि एक तो कम आय वाले लोगों और दूसरे दो बच्चों के पश्चात् कानूनी तौर पर नसबन्दी आप्रेशन आवश्यक हो । नहीं तो भारत का मानव केवल भोगवादी बनकर रह जाएगा । भोग में सख और शान्ति प्राप्त नहीं होती ।

अन्त में हम कह सकते हैं कि भारत सरकार ने स्वास्थ्य, चिकित्सा, परिवार नियोजन तथा शिक्षा प्रसार के अनेक प्रयत्न किए हैं । गर्भपात के लिए भी कानून बनाया है तथापि यह स्वीकार करना होगा कि सरकार द्वारा किए गए प्रयलों का फल उतना प्राप्त नहीं हुआ है जितना होना चाहिए । अत: यह आवश्यक है कि सरकार गम्भीरतापूर्वक विचार कर त्रुटियों को दूर करे तथा देश एवं जनता के कल्याण के लिए कठोर नीति अपनाकर दृढ़ता से जनसंख्या नियन्त्रण के उपायों को लागू करे । तभी देश उन्नति और विकास के पथ पर अग्रसर हो सकता है ।

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commentscomments

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