Hindi Essay on “Badh – Karan aur Prabandh” , ”बाढ़ – कारण और प्रबंधन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
बाढ़ – कारण और प्रबंधन
Badh – Karan aur Prabandh
बाढ़ का सामान्य अर्थ है किसी नदी के जलस्तर में यकायक बढ़ोत्तरी और परिणामस्वरूप निचले इलाके में पानी भर जाना। बाढ़ अकेली एक ऐसी प्राकृतिक आपदा रही है जिसके कारण इस धरती से कुछ मानव सभ्यताएं सामाप्त होती जा रही हैं। बाढ़ सर्वाधिक आवृत्ति एवं सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाली प्राकृतिक आपदा है। इसकी परिणति मृत्यु, विनाश विकृति और विस्थापन के रूप में होती है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहां लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि ऐसी है जिस पर सदैव बाढ़ आने की आशंका बनी रहती है। भारत में बाढ़ का प्रभाव एक समान नहीं रहता। देश के कई राज्यांे, केन्द्र शासित प्रदेशों जैसे, असम, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल में बाढ़ का असर सबसे अधिक पड़ता है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाण पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और अन्य पूर्वाेत्तर राज्यांे में भी बाढ़ का प्रकोप होता रहता है। लेकिन एक ही वर्ष में इन सभी राज्यों में एक साथ बाढ़ नहीं आती। एक नदी प्रणाली से दूसरी नदी प्रणाली की बाढ़ की समस्या भिन्न है। देश में बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों को केन्द्रीय जल आयोग ने चार श्रेणियों में विभक्त कर दिया है- 1. ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र, 2. उत्तर-पश्चिम नदी क्षेत्र, 3. गंगा नदी क्षेत्र, 4. दक्कन नदी क्षेत्र।
भारत में बाढ़ का सबसे बुरा असर असम में पड़ता है। इसका मुख्य कारण ब्रह्मपुत्र, बराक और उसकी सहायक नदियों का तटबंध से ऊपर बहना है। गंगा नदी क्षेत्र में गंगा के उत्तर में स्थित इलाकांे में बार-बार बाढ़ आती है। ताप्ती, शारदा, घाघरा और गंडक नदियों से उत्तर प्रदेश में और बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी और कुछ अन्य नदियों से बिहार में व्यापक क्षेत्र में बाढ़ आती है। पं. बंगाल में महानंदा, हुगली, अजय और दामोदर से बाढ़ आती है। जम्मू और कश्मीर में झेलम, चिनाब और अन्य सहायक नदियों से समय-समय पर बाढ़ आती है। मध्य भारत में और दक्कन क्षेत्र को छोड़कर बाढ़ कहीं भी गंभीर समस्या नहीं है। उड़ीसा में महानदी, ब्राह्मणी और वैतरणी की वजह से बाढ़ आती है। पश्चिम की ओर बहने वाली ताप्ती और नर्मदा से गुजरात के तटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आती है। गोदावरी और कृष्णा नदी क्षेत्रों से निकासी की समस्याओं के कारण तट क्षेत्र में बाढ़ आती है। भारत में बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्र का आधे से अधिक हिस्सा तीन राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और पं. बंगाल में आता है। भारत में बाढ़ प्रबन्धन के मुख्यतः तीन घटक हैं- 1. पूर्वानुमान, 2. संरचनागत उपाय, 3. गैर संरचनागत उपाय।
बाढ़ प्रबन्धन का सबसे प्रभावी उपाय बाढ़ का पूर्वानुमान करके उसके बारे में शीघ्र चेतावनी देना है। बाढ़ पूर्वानुमान किसी नदी और उसकी सहायक नदियों के दैनिक जलस्तर के आधार पर तैयार किया जाता है। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र के कम्प्यूटर ‘निकटेक’ के जरिये पूर्वानुमान सभी जिलों में उपलब्ध कराया जाता है।
बाढ़ से निपटने के संरचनागत उपाय वस्तुतः परम्परागत उपाय हैं। इसके अन्तर्गत जलाशयों, बाढ़ तटबंधों, बाधों में निकासी चैनलांे का निर्माण, भूमि-कटाव निरोधक कार्य, चैनल सुधार कार्य, बेसिन अवरोधन आदि उपाय किए जाते हैं। सरकार द्वारा किए गए बाढ़ प्रबन्धन उपायों के अन्तर्गत अभी तक विभिन्न राज्यों में 16,200 कि.मी. से अधिक बाढ़ तटबंधांे तथा 32000 कि.मी. से अधिक निकासी चैनलों का निर्माण किया जा चुका है। करीब 4,721 गांवों को ऊंचा उठाया जा चुका है और अब तक किए गए बाढ़ प्रबंधन उपायों से देश भर में 144 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से उचित संरक्षण प्रदान किया जा चुका है।
बाढ़ पूर्वानुमान और अग्रिम चेतावनी बाढ़ का असर कम करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और संरचनागत उपायों में से एक है। गैर संरचनागत उपायांे के अन्तर्गत अन्य उपाय इस प्रकार हैं-
बाढ़ क्षेत्र अंचल बनाना जिनका लक्ष्य समय-समय पर बाढ़ से होने वाली क्षति को नियंत्रित रखने के लिए भूमि के उपयोग को नियमित बनाना है।
बाढ़ की आशंका वाले स्थानों की पहचान और उनका आकलन करना, ताकि बाढ़ के नुकसान की मात्रा और विस्तार पर नियंत्रण के लिए ऐसे क्षेत्रों को विकास के अन्तर्गत लाया जा सके।
बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों के निर्धारण के लिए उपयुक्त पैमाने के साथ मानचित्र तैयार करना, जिनका इस्तेमाल पिछली घटनाओं के आंकड़ों के साथ किया जा सके।
सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे मानचित्र लगाने से लोगों को बाढ़ क्षेत्र प्रबन्धन की आवश्यकता के बारे में शिक्षित किया जा सकेगा।
वर्तमान में भारत में 157 बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्र मौजूद हैं जिनकी स्थापना केंद्रीय जल आयोग ने की है। ये केन्द्र प्रति वर्ष लगभग 5500 बाढ़ भविष्यवाणियां जारी करते हैं। इनमें से अधिकतर भविष्यवाणियां मानसून के महीनों में जारी की जाती हैं। मई से अक्टूबर के बीच 4 महीने में बाढ़ के मौसम के दौरान और इसी प्रकार पूर्वोत्तर मानसून, जिससे पूर्वी तट के क्षेत्र में बाढ़ आती है, की अवधि में अक्टूबर से दिसम्बर तक प्रत्येक दिन पूर्वानुमान जारी किए जाते हैं। सबसे ज्यादा 36 पूर्वानुमान केन्द्र बिहार में हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल का स्थान है जहां 33 पूर्वानुमान केन्द्र हैं। इसी प्रकार असम में 23, पं. बंगाल में 14, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में प्रत्येक में 11, गुजरात में 10, महाराष्ट्र में 7, कर्नाटक में 4 मध्य प्रदेश में 3, हरियाणा में 1 तथा दिल्ली और दादरा एवं नागर हवेली में 2-2 बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्र कार्यरत हैं।
भारतीय मौसम विभाग ने विभिन्न स्थानों पर 10 बाढ़ मौसम वैज्ञानिक कार्यालय स्थापित किए हैं। पूरे बाढ़ मौसम में ये कार्यालय, केन्द्रीय जल आयोग को संबंधित नदियों या नदी खण्डों के बारे में बाढ़ चेतावनी जारी करने में बहुमूल्य मौसम वैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराते हैं।
बाढ़ प्रबन्धन मंे विश्व की भागीदारी के लिए ‘डर्थ माउथ फ्लड ऑब्जर्वेटरी’ का नाम उल्लेख्य हैं। अमेरिका में हैनोवर के डर्थ माउथ काॅलेज में नासा के सहयोग से इसकी स्थापना की गई है। यह बाढ़ वेधशाला विश्व भर में बाढ़ की समस्त घटनाओं का पता लगाने, बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों के मानचित्र तैयार करने और बाढ़ के प्रभाव का मूल्यांकन तथा विश्लेषण करने के लिए उपग्रह दूर संवेदन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करती है। डी.एम.ओ. (डर्थ माउथ ऑब्जर्वेटरी ) से बाढ़ के बारे में ताजा जानकारी प्राप्त होती है। यह संगठन बाढ़ के बारे में आकड़े के रख-रखाव के लिए बाढ़ अभिलेख भी रखता है।