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Hindi Essay on “Antriksh me Manav ke Badhte Charan”, “अन्तरिक्ष में मानव के बढ़ते चरण” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

अन्तरिक्ष में मानव के बढ़ते चरण

Antriksh me Manav ke Badhte Charan

प्रस्तावना : लगता है आज के  विज्ञानी मानव के लिए यह धरती बहुत  छोटी पड़ गई है या फिर उसकी इच्छाओं का विस्तार इस सीमा तक हो गया है।कि वे धरती और आकाश को अपनी  बाहों में समेट कर भी सन्तुष्ट नहीं हो पा रही है।इसी कारण तो पिछले कई दशकों से वह धरती से ऊपर उठ आकाश में चारों ओर दूर-दूर तक पहुँच पाने के लिए व्याकुल होकर अपने डैने निरन्तर खोल और फैला रहा है। इतिहास साक्षी है।  कि इस कार्य में आज के विज्ञानी मानव ने काफी हद तक तो सफलता भी पा ली है। फिर भी अभी तक सन्तुष्ट नहीं है। निरन्तर क्रियाशील रह कर वह अन्तरिक्ष में स्थित और सभी ग्रह-नक्षत्रों पर अपनी जीत के झण्डे गाड़ देना चाहता है।

अन्तरिक्ष का आकर्षण : जिस प्रकार कभी ऊँचे आकाश में उड़ते पक्षियों ने मानव-चेतना को आकर्षित किया और तब उसने निरन्तर प्रयत्न करके वायुयानों का सफलतापूर्वक निर्माण किया उसके फलस्वरूप उसका पक्षियों की तरह उड़ने का आकर्षण और इच्छाएँतृप्ति का अनुभव कर सकींफिर जिस प्रकार कई जल-जीवों को सहसा डुबकी मार कर सागर के गहन धरातल तक उतर जाने की प्रक्रिया ने मानव को गोताखोरी करके सागर की गहराई में उतर कर उसके भीतरी रहस्यों को जानने की प्रेरणा दी, मानव ने वैसा कर पाने में पूर्ण सफलता भी अर्जित कर ली है। आज वह सागर की भीतरी गहराई को नाप पाने में तो सफल हो ही गया है। पनडुब्बियों का आविष्कार महीनों जल की, उत्ताल तरंगों और तहों के नीचे रह पाने में भी सफल हो गया है। इसी प्रकार आकाश में जगमगाते चाँद-सितारे, विभिन्न ग्रह और नक्षत्र भी उसका ध्यान अपनी ओर आरम्भ से ही आकर्षित करते आ रहे है।दूरबीन आदि के आविष्कार उस प्रकार के आकर्षण के ही परिणाम है।लेकिन मानव का स्वभाव किसी भी एक पड़ाव या एक सीमा-रेखा पर पहुँच कर रुक जाना नहीं है। जैसे ही उसे एक पड़ाव या सीमा रेखा का स्पर्श-सुख प्राप्त हो जाता है। वह से वह एक नए उत्साह से भर कर अगले पड़ाव और सीमा-रेखा की ओर चल पड़ता है। सो दूरवीक्षण यंत्र (दूरबीन) से अन्तरिक्ष मण्डल में स्थित चाँद-तारों, ग्रह-नक्षत्रों की शोभा को निहार कर ही वह शान्त नहीं हो गया, वहाँ तक पहुँचने का प्रयास भी करने लगासभी जानते है। कि अपने इस प्रयास में आज तक वह कई प्रकार से सफल हो सका है।

चन्द्रलोक की यात्रा : अन्तरिक्ष पर अपना विजय-अभियान  मानव ने खूब सोच-विचार कर आरम्भ कियाइसके लिए कई बार उसे यदि एक कदम आगे बढ़ा पाने में सफलता मिली, तो दो-चार कदम पीछे भी हटना पड़ा, फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारीएक-के बाद-एक परीक्षण कर नए कदम उठाता रहापरीक्षणों से लाभ उठाकर उसने कई प्रकार के नए उपकरण भी बनाए और अन्त में कल्पनाओं में सुन्दर-कोमल और अमृत-सरोवर से युक्त, पर वास्तव में उबड़-खाबड़ खण्डहरों से युक्त चन्द्रलोक में अपने कदम रखने में सफलता प्राप्त कर ही लीअब तो इस धरती की ‘लाइका’ नामक कुतिया भी वहाँ हो आई है। कई स्त्री-पुरुष भी वहाँ की यात्रा कर आए है।अन्तरिक्ष के वातावरण में भारत का एक स्क्वाड्रन लीडर  राकेश शर्मा भी चक्कर लगा आया है। सो कहा जा सकता है कि चन्द्रलोक की सफल यात्रा ने आज के वैज्ञानिक मानव के लिए प्रत्येक स्तर पर अन्तरिक्ष के द्वार तो खोल ही दिए है।, अन्य ग्रह-नक्षत्रों तक पहुँचने की उत्सुकता बढ़ा कर काफी सीमा तक मार्ग को प्रशस्त करके  सफलता पाने की सभी तरह की सम्भावनाओं से भी पूर्ण कर दिया है।

 भावी योजनाएँ : आज अन्तरिक्ष-यात्रा और उससे प्राप्त होने वाले लाभों की सम्भावना ने इस दिशा में अमेरिका और रूस आदि बड़े देशों को तो अनवरत अग्रसर किया ही है। ; पर हमारा देश भारत भी इस दिशा में किसी से पीछे नहीं है। भारत भी ‘आर्यभट्ट’ नामक उपग्रह से आरम्भ करके आज तक अपने कई कृत्रिम ग्रह अन्तरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर चुका है। उन्हीं के सहारे आज देश के कई टेलीविजन चैनल तथा अन्य कार्यक्रम संचालित हो रहे है।कई प्रकार के प्रक्षेपास्त्र-निर्माण में जो सफलता मिल पाई एवं निरन्तर मिल रही है। , वह भी वस्तुत: अन्तरिक्ष के क्षेत्र में उपयुक्त सफलताओं का ही परिणाम है। इसके सहारे प्रगति और विकास की कई- अन्य योजनाएँ भी चलाई जा रही है।इस क्षेत्र में सफल परीक्षण करने वाले अन्य  देश भी इस से कई प्रकार से लाभान्वित हो रहे है।परन्तु आज के विज्ञानी मानव इसी से सन्तुष्ट होकर नहीं रह गए है।अब वे बुध, मंगल और शनि ग्रहों तक पहुँचने के प्रयास कर रहे है।हो सकता है।  कि संसार को किसी अन्य ग्रह तक मानव के पहुँच जाने का समाचार जल्दी ही चौंका देसच तो यह है।  कि आज अन्तरिक्ष विमान एक स्वतंत्र वैज्ञानिक शाखा के रूप में सक्रिय होकर इसकी पर्ते उखाड़ फेंकने की दिशा में निरन्तर सक्रिय है। जाने कितने कृत्रिम या उपग्रह आज अन्तरिक्ष के चक्कर काटते हुए नए-नए मानवोपयोगी अनुसन्धानों की दिशा में सक्रिय है।उनकी सम्पूर्ण सफलता का आकलन भविष्य में ही सम्भव हो पाएगा।

उपसंहार : इस प्रकार हम कह सकते है। कि जिस प्रकार धरती और सागर आदि अधिक दिनों तक विज्ञानी मानव से अपने भीतरी रहस्य छिपाए नहीं रख सके उसी प्रकार अन्तरिक्ष भी अधिक दिनों तक मानव की समग्र पहुँच से दूर नहीं रह सकता कहा जा सकता है।  कि अपने नित्य प्रति बढ़ते जा रहे कदमों की दृढ़ता के बल पर एक दिन मानव समूचे अन्तरिक्ष एवं उसके सभी प्रकार के रहस्यों को भी अवश्य ही अपनी मुट्ठियों में कर लेगा ।

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